अनुभव

कुछ दिनों पहले मुझे एक आध्यात्मिक  कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला. उसका एक भाग सांस्कृतिक भारत के प्रदर्शन को समर्पित था. उस कार्यक्रम में भारत के कुछ सांस्कृतिक नृत्य जैसे भरतनाट्यम, ओडिशी और कुचिपुड़ी प्रस्तुत किये गए. कार्यक्रम की काफी सराहना हुई. पर सच कहूँ तो मुझे नृत्य में उतनी रूचि न होने के कारन, मैंने कार्यक्रम में उतना ध्यान नहीं दिया. सांस्कृतिक कार्यक्रम समाप्त हुआ और अंत में मुख्य वक्ता का उद्बोधन हुआ. मेरे मन में उनके प्रति विशेष सम्मान है और इसलिए उनके उद्बोधन का इंतज़ार भी था. उनके उद्बोधन की एक पंक्ति ने मुझे कला के प्रति दूसरे ढंग से सोचने पर मजबूर किया. उन्होंने कहा  ” We should not crave for defeating the world through arms and ammunition, rather we should try to win them through our Incredible Culture.” (हमें विश्व को हथियारों और असला बारूदों से नहीं हराना है, बल्कि उनको अपनी अतुल्य संस्कृति से जीतना  है)

घर लौटा और सोचा तो उनकी बात बहुत ही प्रासंगिक लगी. अमेरिका आज विश्व में सुपर पावर है इसका मतलब सिर्फ यह नहीं की उसकी सिर्फ आर्मी  शक्तिशाली है बल्कि इसका असर अलग अलग आयामो में भी  दिखता है. ब्लू जीन्स, मैकडोनाल्ड या सबवे में खाना, अमेरिकन बैंड को सुनना, विश्व की अर्थव्यवस्था को डॉलर में आंकना इत्यादि सब सांस्कृतिक पहलु ही तो हैं. मैंने आज तक एक भी ऐसा उदहारण नहीं देखा कि किसी ने नक़ल कर परीक्षा में प्रथम स्थान पाया हो, हाँ पास जरूर हो सकते हैं. हमें अब यह तय करना होगा की हम भारत के लिए क्या सिर्फ पास होने से संतुष्ट हैं या कुछ और चाहते हैं?

संस्कृति के अलग अलग आयाम हैं. उसमें कला एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. नाच-गान, साहित्य, कविता, नाटक इत्यादि इसके अंग हैं. भारत विविधताओं से भरा देश है. यहाँ की विविधता दुनिया के किसी भी देश से ज़्यादा है. यह हमारी शक्ति हो सकती है, सिर्फ भरोषा करने तक की देरी है.

अब मैं आपको कला के क्षेत्र में ले चलता हूँ। विद्यापति मैथिलि में वही स्थान रखते हैं जो बांग्ला में रविंद्रनाथ  या अंग्रेजी में विलियम शेक्सपीयर. मैथिलि, बांग्ला और उड़िया में काफी समानता है, कारन यह कि तीनो की उत्पत्ति एक ही भाषा परिवार (Indo-European language Family) से हुई है. विद्यापति के बारे में कहा जाता है कि वे शिव जी के अनन्य भक्त थे, पर उनकी कविता में राधा कृष्णा का भी वर्णन आता है. उनकी ऐसी ही एक कविता मैंने पढ़ी और मुझे बहुत अच्छी लगी . मैं जनता हूँ कि आज कल हिंदी पढ़ने वालों कि संख्या में भारी गिरावट आ गयी है और मैथिलि जैसी स्थानीय भाषाओं का हश्र तो और भी बुरा है. फिर भी मैंने सोचा कि शिकायत करने के बजाये कुछ काम किया जाये .

तो आज मैं विद्यापति की कविता को आपके समक्ष रखूँगा हिंदी, मैथिली, बांग्ला  समझने वाले थोड़ा प्रयत्न करने पर समझ जायेंगे, पर थोड़ी तकलीफ होगी जरूर. इसलिए मैंने उसका अनुवाद भी कर दिया है. पर, इसकी भी गारंटी नहीं की अनुवाद १०० फीसदी सही होगी. अनुरोध है कि भाव को समझिये|

विद्यापति ने इस कविता में  भगवान श्री कृष्णा द्वारा राधारानी को रिझाने के प्रयाश का वर्णन किया है

अम्बरे वदन झपावह गोरी
राज सुनैछिअ चांदक चोरी ||1||

हे गौरवर्ण वाली राधा! आप अपना मुख आँचल से ढक लो
सुना है आज चाँद की चोरी हो गयी है

घरे घरे पहरी गेल अछि जोहि
अबही दूषण लागत तोहि ||2||

घर घर जा कर प्रहरी इसकी जांच कर रहे हैं
देखना कहीं ये आरोप तुम पर न लग जाये

कतहि नुकाओब चंदक चोरी
जतहि नुकाओब ततहि उजोरि ||3||

आप अपने मुख रुपी चाँद को कहाँ छुपाओगी?
जहाँ छुपाओगी वही उजाला हो जायेगा

सुन सुन सुन्दरि हित उपदेश
सपनेहु जनु हो विपदक लेश ||4||

हे सुंदरी मेरे इस हितोपदेश को सुनो
जिसके सुनने से सपने में भी कभी विपदा नहीं आएगी

हास सुधारस न कर उजोर
धनिक बनिके धन बोलब मोर ||5||

आप हंस कर इतना उजाला न फैलाओ
वरना सभी धनवान को लगेगा की उनका सारा धन आपके पास है

अधर समीप दसन कर जोति
सिंदुर सीप वेसाऊली मोती ||6||

आपके अधरों के बीच से इस प्रकार प्रकाश फैला रहे है
माने सीप के बीच मोती राखी हुई हो

भनहि विद्यापति होहु निसंक
चन्दहू का किछु लागु कलङ्क ||7||

विद्यापति कृष्णा द्वारा राधा से कहते हैं की आप बिना शंका के रहो
प्रहरी को बता दूंगा जिस चाँद को वे ढूँढ रहे हैं  उसमें तो दाग है, पर ये तो बेदाग है|

 

आशा हैआप सभी पाठकों को कविता अच्छी लगी होगी, नमस्कार !!!

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