गांव का एक और दिन

एक और यात्रा एक और कहानी. जीवन भी तो ऐसी ही है न? हर एक की अलग अलग कहानी। कुछ भविष्य तक टिक पाती है, कुछ इतिहास में समा जाती है. पर होती सबकी है. चलिए तर्क में न जाकर, यात्रा वृतांत सुनाता हूँ. तर्क नीरस होती है, घटनाएं रोचक.

वर्षों बाद अपने पैतृक गांव जाने का प्रयोजन बना. कुछ काम से ही, वहां से निकलने के बाद वर्ना गांव लौटता कौन है?
खैर मैं बहुत उत्साहित था. घर पहुंचा, तो हैरान हुआ. वातावरण पूरी तरह बदला हुआ सा था. सड़क पक्की, बिजली 20 घंटे, घरों के छत पर कभी खप्पड़  राज किया करती थी, अब अल्पसंख्यक हो गई है, सड़कों से बैलगाड़ी तो डायनासोर की तरह   विलुप्त हो गई है, साप्ताहिक हाट की जगह घर के पास ही सभी आवश्यक चीजों की दुकान जम गई थी. मोटर साइकिल जो इक्के दुक्के दिखते थे, अब बहुतायत उपलब्ध है.

सोचा गांव के आसपास का एक चक्कर लगा लूं. एक पड़ोसी  से मोटरसाइकिल का अनुरोध किया तो वे  सहज ही तैयार हो गए और चाभी बढ़ा दी। निकलने वाला ही था कि परिवार के एक सदस्य ने कान में फुसफुसा के गाड़ी में पेट्रोल डलवा देने का इशारा किया। मैंने भी झट से कहा “हाँ-हाँ  ये भी कोई कहने की बात है”.
पड़ोस के एक बच्चे को पकड़ा, उससे नाम पूछा, उसने बोला “सिपाही”. मैंने कहा “तुम क्या बना चाहते हो यह नहीं पूछ रहा, बस नाम पूछ रहा हूँ “. उसने कहा “गांव में सब सिपहिया ही कहते हैं, वैसे स्कूल में मास्टर जी हाजिरी के समय राहुल कहते हैं”. मैं मुस्कुराया और बोला चलो गांव घुमा के लाता हूँ, वो बोला कि “आप घुमायेगें या मैं”? मैंने कहा “ठीक है तुम ही घूम लेना “और हम निकल पड़े .

गाड़ी में किक लगाया, थोड़ी ही दूर जाने पर अनायास ही निगाहें पेट्रोल के कांटे पर गयी। पाया कि, बाढ़ की कोसी नदी के समान यह भी उफान पर थी. उसका  कांटा खत्म होने के निसान के विपरीत दिशा को छू रहा था. मन में मंद मंद मुस्कुराया। नोटबंदी के दौर में 100 रूपये कीमत आप लोगों से भी छुपी नहीं होगी.

5-10 गांव छान मारा। सड़क बहुत ही अच्छी थी. ठंडी हवा शरीर को छू रही थी। चलाने का मजा ही कुछ और था। कुछ तस्वीरें भी ली।

तभी अचानक मोटर साइकिल ने जर्क लिया और बंद हो गई. 5-10 किक के बाद भी स्टार्ट नहीं हुई तो निगाहें फिर से पेट्रोल के कांटे की तरफ गई। अरे ये क्या 20-25 किलोमीटर चलने के बाद भी इसके स्तर में कोई गिरावट नहीं हुई थी।  उसकी विश्वसनीयता पर संदेह हुआ और गाड़ी को  हिला डुला के देखा. और संदेह विश्वास में बदल गया.

पेट्रोल खत्म!!!!!

पीछे बैठे राहुल (सिपाही कहना अजीब लग रहा था ) से पूछा पेट्रोल पंप कितनी दूर है। उसने जवाब दिया ” 7 किलोमीटर और मरे हाथ में दर्द भी है “.मैंने बोला “हाँ-हाँ समझ गया। तुम धक्का नहीं देना चाहते”. पर 7 किलोमीटर……

तभी वह  उछला और बोला पीछे देखिये, और मैं मुड़ा और ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा जब मैंने देखा कि एक दुकान पे खुले में ही पेट्रोल बिक रही है

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पेट्रोल की दुकान, जो मेरी रक्षा को आयी

भगवन का वरदान ही तो था, नहीं तो 7 किलोमीटर तक धक्का लगाना पड़ता.
दुकान पे पहुंचा तो देखा कि एक महिला बैठी हुई थी, मैंने बोला एक बोतल मुझे दे दीजिये. उसने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और भड़क कर थोड़ी मैथिलि थोड़ी हिंदी में बोली, “ये बोतल वोतल यहाँ नहीं चलता है हाँ, ये सब बाहरी आके ही बिहार को बदनाम करते हैं, हमारी सरकार ने बंद करके रखा है यहाँ पे. चाहिए तो जहाँ से आये हो वहीँ जाओ.

मैंने तुरत हिंदी से मैथिलि में स्विच किया और बताया कि मैं ये जो बाहर में रखी बोतल है उसकी बात कर रहा हूँ. वो मुस्कुराई और बोली “अरे! ऐसा बोलो न कि पेट्रोल चाहिए और बोल रहे थे बोतल चाहिए”. मैंने सोचा गलती स्वीकारने में ही भलाई है. और पूछा कि हाफ लीटर का कितना हुआ, वो बोली 40 रुपैया में आधा लीटर और 80 में एक लीटर. मैंने सोचा कि थोड़ा हास्यबोध (sense of humor) का उपयोग किया जाये, और बोला कि आपका तो नुकसान हो गया. वो बोली “वो कैसे”? मैंने बताया कि मेरे गाड़ी का  पेट्रोल खत्म हो गया था और आपका दुकान नहीं रहता तो 7 किलोमीटर धक्के देकर जाना पड़ता, सो आप 200 भी मांगती तो मज़बूरी में देना ही पड़ता.

वो लपक कर बोली ऐसे थोड़ी न होगा, पेट्रोल का दाम 100 रुपये में आधा लीटर ही है, मैं थोड़ा हंसने लगा और सोचा कि वो मजाक कर रही है . वो बोली हिहिया क्या रहे हैं, सच कह रहे हैं हम, आधा लीटर का 100 ही लगेगा, लेना है तो लीजिये वरना जाइये. मैंने कहा पर आपने कहा था कि 80 रुपये लीटर है. वो बोली तब कहा था सो कहा था अब 100 ही लगेंगे. मैंने 100 का नोट बढ़ाया और बोला आधे लीटर दे ही दीजिये, उसने माज़ा (Mazza) के हाफ लीटर बोतल में भरा पेट्रोल और एक कीप मेरी तरफ बढ़ाया. इससे पहले कि पेट्रोल का दाम और बढे, मैंने झट से पेट्रोल को टंकी में डाला. सेंस ऑफ़ ह्यूमर भरी पड़ गया था और सिपाही हंस रहा था.

 पेट्रोल डालते समय कुछ अंश हाथ में लग गया था,  अनायाश ही उसका सुगंध नाक में आयी, पर मैं हैरान हो गया कि उसमें से पेट्रोल की खुशबु कम और केरोसिन या मिट्टी तेल की खुशबु ज़्यादा आ रही थी. भारी मात्रा में मिलावट कि गयी होगी, ऐसा प्रतीत हुआ. अब मुझे संदेह हुआ कि मिट्टी तेल से गाड़ी चलेगी भी कि नहीं. किक मारने वाला ही था कि वो महिला आयी और 60 रुपये  वापस किया और मुस्कुराके बोली हम लोग भी मजाक कर सकते हैं और चली गयी. मुझे ये तरीका अच्छा लगा और हंसी भी आयी.

तभी दुकान के पास एक 20-22 साल का लड़का जो ये सब देख रहा था, मेरे पास आया और बोला इसका पति पियक्कड़ है, दिन भर दारू पी के  धुत्त रहता है, घर भी यही चलाती है.

किक मारा. गाड़ी एक किक में शुरू हो गयी, अब समझ कि वो बोतल सुनके इतना चिल्लाने क्यों लगी थी. गाडी चली  भी और पेट्रोल पंप तक पहुँच भी गया. हवा ठंडी ठंडी ही चल रही थी.किसान खेत में धान काट रहे थे, पूरी धरती सोने सी लग रही थी. सिपाही से पूछा “मेरे देश कि धरती सोना उगले…. ये गाना सुना है?” उसने कहा “हम पुराना गाना नहीं सुनते हैं”. मैंने पूछा कि “कौन सा गाना सुनते हो”? उसने कहा “कमरिया करे लपालप…..”. और वह जोर जोर से गाने लगा. मैंने भी गाड़ी के एक्सीलरेटर पे जोर लगाया. मोटर साइकिल पेट्रोल से चल रही थी कि केरोसिन से पता नहीं….

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मनुष्य और रहस्य

छठ की शुभकामनायें !!! अंग्रेजी में एक लेख पढ़ रहा था, उसमे एक पंक्ति कुछ यूँ लिखी हुई थी कि “Man’s life is reflection of his thought, if he can change his thought then surely he can change his life” (मनुष्य का जीवन उसके सोच का परावर्तन है, अगर वह सोच बदल सकता है तो निश्चय ही जीवन भी). पढ़ कर उस वाक्य के विषय में सोचने लगा और पाया कि कितना सही लिखा था लेखक ने. कुछ और मन में विचार आता, इससे पहले मेरी चचेरी बहन जो कि मात्रा साढ़े ४ साल कि होगी, उसने तुतलाते हुए बोला, “क्या आप नदी नहीं जायेंगे छठ में”? मेरा मन नहीं कर रहा था, तो मैंने मना कर दिया और कहा कि सुबह को जाऊंगा. फिर उसने कहा “ठीक है आप ना मेरा ना एक सेल्फी (वह हरेक किस्म के फोटो लेने को सेल्फी ही कहती है ऐसा मैं समझा) तो ले लीजिये, देख नहीं रहे नया कपड़ा है”. मैं मासूमियत पे मुस्कुराया, पर उसकी मासूमियत का भ्रम थोड़े ही देर में दूर हो गया जब उसने फोटो लेने के बाद कहा, “आप ना इसको ना व्हाट्सअप (व्हाट्सएप्प नहीं ) और फेसलुक ( फेसबुक के बजाये) पर डाल दीजिये” मैं थोड़ा चकरा गया और सोचा कि इसको क्या हो गया है? इतनी छोटी है और व्हाट्सएप्प और फेसबुक की बात करती है. समझा कि अब मोगली, विन्नी द पूह, शक्तिमान और दादी कि कहानियों का दौर नहीं है.

थोड़ी देर बाद घर से सब चले गए और मैं अकेले में फिर से उस वाक्य को सोचने लगा, तभी अचानक कुछ पंक्तियाँ लय में मन में आने लगी और मैं मोबाइल फ़ोन पे लिखता गया, बाद में थोड़ी एडिटिंग के बाद उसने जो रूप लिया, आपके सामने है. एकदम ताजी, अभी-अभी तोड़ के लाया हूँ 🙂

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मनुष्य और रहस्य 

सुना है, हर कोई अपने दिल में
एक राज़ छिपाकर रखता है
लाख पूछ ले दुनियां
पर फिर भी वह चुप ही रहता है

सोचता हूँ, ऐसी भी क्या मज़बूरी होती
ऐसी भी क्या परेशानी है
सीने में जो दफ़्न होती
उसकी कोई अज़ीज कहानी है

कोई उन बातों को यादकर
इतिहास में डुबकी लगाता है
तो दूसरा उन्हें भूलकर
भविष्य की ओर कदम बढ़ाता है

पर फिर एक ऐसा मंज़र भी आता है
जब उन बातों से जुड़ा व्यक्ति पास आता है
लाख यतन करने पर भी
उन बातों को वो दबा नहीं पाता है

दिल में जमी जो बर्फ थी सदियों की
पल भर में पिघल जाती है
फिर वो बातें या तो जुबां से या आँखों से
झरझर कर बह आती है

मन हल्का सा लगने लगता है
चेहरा भी मुस्काता है
किसी तरह वह फिर हिम्मत करके
उन बातों पर फिर से परत चढ़ाता है

…………अभय…………