शनिवार. वीकेंड का पहला दिन, दिन भर की फुरसत और फुरसत में दिमाग कुछ ज्यादा चलता ही है. आज चला और कुछ विचार निकले. फिर उसने एक कविता का रूप लिया.आपके सामने है. आज ही लिखी , और सोचा आज ही पोस्ट कर दूँ, ज़्यादा रिव्यु नहीं कर पाया…
अग्रिम चेतावनी: प्रेमी प्रेमिका मेरे कविता की “परछाई” में अपने प्रेमी प्रेमिका को ढूंढने का प्रयास न करें, वरना कविता के अंत में अफ़सोस होगा 😜😛
मैं, मेरी परछाई
मैं, मेरी परछाई
आज शाम संग बैठे थे
भीड़ से दूर…
एक दूजे के करीब…
परछाई कहने लगी ,
प्रश्न है बहुत दिनों की ,
इज़ाज़त हो तो बयां करूँ
मैं हँसा और हँस के बोला
पूछना, जो पूछना हो ?
उसने बोला
“सबसे करीब तुम्हारे
बोलो कौन है ?
शोर मचाती है जो मन में
पर जुबान पर मौन है ?”
जो मैं कुछ बोलता ,
मन की गठरियों को
सामने उसके खोलता
उसके पहले वो बोल पड़ी
“अरे वो मैं हूँ पगले , मैं हूँ “!!
मैं थोड़ा चकराया ,
मासूमियत भरे उत्तर पर
मंद मंद मुस्काया
और पूछा
“वो कैसे ! फरमाइए “
अपने विचार पर ज़रा
LED वाला प्रकाश तो लाइए
भावना में वो बह गयी ,
और फिर जाने मुझसे क्या क्या कह गयी ,
आपको मैं सुनाता हूँ
बदले में आपका पूरा अटेंशन चाहता हूँ
वो बोली
“संग तुम्हारे हूँ तब से ,
है वज़ुद तुम्हारा जब से ,
तुम चलते हो
मैं चलती हूँ
रुकने से थम जाती हूँ
बिना अपेक्षा के आशा के
साथ तुम्हारे रहती हूँ
दुःख हो या सुख हो
हर भाव मैं सहती हूँ
कितने सावन बीत गए ,
और जितने भी सावन आयेंगे
जो कोई रहेगा साथ तुम्हारे तो
वो मैं हूँ बस मैं हूँ “
मैं बोल पड़ा
“बस कर पगली
अब क्या रुलायेगी ?
इतने दिनों की कहानी
सब ही आज कह जाएगी “
भावुक होता देख उसे
मैं बोला चलो चलते हैं
गाल फूला के आँख झुका के
संग मेरे हो चली
निकल पड़ा घर की ओर
सूरज भी ढलने लगा था
परछाई लंबी होने लगी थी
मैं छोटा लगने लगा था
तभी अचानक
अँधेरा छाया ,
ओर मैं खुद को अकेला पाया
कहाँ गयी मेरी परछाई ?
जो वफाई की दे रही थी दुहाई ?
अँधेरा आते ही सरक गयी
पतली गली से खिसक गयी
तभी मन में विचार आया ,
कभी परछाई आपकी ,
आपसे भी लंबी हो जाती है ,
पर बिन प्रकाश के वो भी ,
साथ छोड़ जाती है .
कोई साथ रहता जो अंधकार में आपके
वो आपकी परछाई भी नहीं है
“केवल आप हो, और कोई नहीं है”
अब प्रश्न है कि आप कौन हो ?
…………अभय…………
Good one bro!
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धन्यवाद
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बहुत अच्छे !!!
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धन्यवाद 😊
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शानदार पोस्ट ……..💐💐💐💐💐💐
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Wah….aatm-manthan….jabardast
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हाँ जी, कर लेते हैं कभी कभी आत्म मंथन। धन्यवाद भाई। 😊
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मैं मेरी परछाई पर आपने बहुत अच्छा लिखा है। और सही भी है परछाई क्या सब साथ छोड़ देते हैं। अकेले आना हुआ और अकेले ही संघर्ष करते जाना है।
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बहुत बहुत धन्यवाद आपका ☺️
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Bhut achhe
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धन्यवाद! ☺️
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बहुत बढ़िया—-
उजाले के सभी साथी ,
अँधेरे में मेरा मैं हूँ,
खिसक जाती है परछाई,
अँधेरे में मेरा मैं हूँ,
ये मैं कौन—बहुत गहराई —जिसका जवाब कहाँ—?बहुत खूब
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क्या बात है, शुक्रिया 😀
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आज पीछे जाने का मूड हुआ —बहुत कुछ सीखने के लिए बहुत कुछ पढ़ना पड़ता है— बहुत अच्छा लिखा है आपने
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देखा मैंने, आपने मेरी बहुत सारी पोस्ट पढ़ डाली। कभी कभी सोचता हूँ कि क्या वाकई मैं ऐसा लिखता हूँ कि लोग पलट कर देखें 🤔
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आप बहुत अच्छा लिखते हैं ,कभी कभी लोग मुद्दे तलासते है जो किसी का लेख पढ़कर ही मिल सकता है—साथ ही कोई अच्छा हो या नहीं मुद्दे तो मिल ही जाते हैं —वैसे आपका लिखा बहुत अच्छा होता है।
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जानकर खुशी हुई कि कम से कम मुद्दे तो रहते हैं लेखनी में
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नहीं भाई —मुद्दे के साथ जबर्दस्त लेखनी है आप गलत बोल गए—हमारी तीन चार लेखनी आपकी कविता से प्रेरित है।
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शुक्रिया 😊
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