मैं और तुम
मैं सूरज बन आता हूँ
तुम चंदा बन जाती हो,
तिमिर चीर कर मैं
पास तुम्हारे आता हूँ,
और तुम अपनी छटा
कहीं और बिखराती हो !!!
लाख यत्न कर,
मिलन की आस लिए
बन बादल मैं,
आसमान पर छाता हूँ
तुम बारिश की बन बूंदें
धरती पर उतर आती हो!!!
अगणित तारे सदियों से
देख रहे इस खेल को,
मैं भी हूँ मूक बना
और तरसता मेल को
पर मन में दृढ विश्वास लिए
सोचता हूँ, एक दिन ऐसा भी आएगा
सूरज चंदा साथ में एक दिन
विश्व भ्रमण को जायेगा!!!
बुँदे कहेगी बादल से
कुछ दिन नभ में ही रुक जाते हैं
फिर दोनों मिलकर इकट्ठे
धरती की प्यास बुझाते हैं!!!
…………अभय…………
शब्द सहयोग:
तिमिर: अंधकार या अँधेरा
बहुत ही सुन्दर कविता |
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अरे सर, धन्यवाद 😊
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बहुत सुंदर
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Thank You!
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क्या खूब लिखा—-बहुत सुंदर कविता।
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धन्यवाद ☺️
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बहुत ही खूबसूरत रचना है आपकी।
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शुक्रिया रजनी जी
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Reblogged this on the ETERNAL tryst.
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