खुद में नायक/नायिका ढूंढे

war1

आसमान में युद्ध के बादल फिर से

उमड़ घुमड़ कर छा रहे

हाय! कमजोड़ ह्रदय वाले नर-नारी

भेड़सम घबरा रहे

एक शेर है इन भेड़ो में

पर वह किंकर्तव्यविमूढ है

पिछली मिली हार के कारण  

आज वह सन्देहमय है

पिछला जब रण हुआ था ,

भीषण वो संगम हुआ था

रक्त की नदियां बही थी

नेत्र अश्रुमग्न हुआ था

असत्य सत्य पर भारी था

मानवता बर्बरता से हारा था

छल प्रपंच से भरे रण में

नायक भी सर्वस्व हारा था

हारा बैठा था नदी किनारे

गिन रहा था गगन के तारे

तभी एक सयोंग घटा

नदी के तट पर उसे साधु दिखा

देख उन्हें उसने नमन किया

साधु ने भी आशीर्वचन दिया

साधु अंतर्यामी था

दशा से उसके ज्ञानी था

नायक के मन को वे टटोल गए

उत्साह बढे जिससे नायक का

कुछ ऐसे वचन वो बोल गए

“चुप हो क्यों , शोर मचाते नहीं

युद्ध के इस भीषण घड़ी में

अपने सस्त्र क्यों उठाते नहीं

तुम्हारी ये अकर्मण्यता देख

शत्रु अब थर्राते नहीं

वीरता को हर पल ,

प्रमाणित करना पड़ेगा

एक ऋतु के काटे फसल से

कहो पूरा जीवन कैसे चलेगा ?

याद करो इतिहास में

तुमने जब जब गुर्राया था

देख जिसे दुर्जनो का

अंतर्मन तक थर्राया था .

चलो उठो साहस जुटाओ

नभ तक हो ऊँची सत्य की

ऐसी पताका फहराओ”!!!

……..अभय………

शब्द सहयोग:
किंकर्तव्यविमूढ: क्या करें क्या न करें की स्थिति, indecisiveness.

Advertisement

12 thoughts on “खुद में नायक/नायिका ढूंढे”

  1. बहुत अच्छा सन्देश है आपकी कविता का | क्या थोड़े बड़े अक्षरो (फोन्ट) मे लिखना संभव है ?

    Liked by 1 person

    1. हाँ मैंने भी यह अनुभव किया था , अच्छा किया आपने जो बताया। कोशिश करूंगा फॉन्ट को बड़ा करने की। 😊

      Liked by 1 person

Leave a Reply

Please log in using one of these methods to post your comment:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: