साहित्य के जानकारों और बुद्धिजीवियों का मानना हैं “विरह में प्रेम अपने शिखर पर होता है”. ख़ैर, मैं कोई साहित्यकार या विचारक तो हूँ नहीं कि इस कथन पर टीका या टिपण्णी करूँ, आप तक एक कविता ही पहुँचता हूँ. ये ताज़ी तो नहीं है, मैंने पहले कभी लिखी थी और एक-दो गोष्टि में भी सुना चूका हूँ. पर वर्डप्रेस पर पहली बार लिख रहा हूँ 🙂 आशा है आपको पसंद आएगी…..
विरह गीत
प्रियतम तेरे प्रेम में प्यासे
बैठा था मैं पतझर से
आँखों से अब अश्रु भी नहीं गिरते
सूख गए बंजर से
जब विरह की हुई शुरुआत
लगा ह्रदय पर शूल सम घात
प्राणवायु के बहने पर भी
न कटते थे मेरे दिन रात
दिन कटा सोचकर तेरे
यादों के अविचल मेले
मचल पड़ा मेरा मन फिर से
सावन में मिलने को अकेले
पर, दिल की कहा सुनी जाती है
यह तो शीशा है शीशा
विरह के पत्थर से टकराकर
चूर चूर हो जाती हो
जाने ये मंजर क्यों आता है
जब कोई अपना दूर जाता है
बेमौशम बारिश होती है
आँखे बादल में बदल जाती है
………..अभय………..
शब्द सहयोग
विरह: Separation
प्राणवायु: Oxygen
Very beautiful… Aur ek baat sahi bhi hai.. jab dil udaas hota hai to kavitayen apne aap banne lagti hai, par khushi may bhi to banti hai.. nahi kya?? 😄
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धन्यवाद 😊
जी बिलकुल सही फरमाया आपने। कविताएँ संवेदनाओं के एहसास से जनित होती है और उदासी या खुशी दोनों ही तो संवेदनशीलता के आयाम हैं।
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बहुत ही सुन्दर शब्दो के माध्यम से आपने अपने विचार व्यक्त किये है |
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अरे सर, बहुत बहुत धन्यवाद😊😊
आपकी प्रतिक्रिया का हमेशा इन्तज़ार रहता है।
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नववर्ष की आपको हार्दिक शुभकामनाये | ईश्वर आपकी सभी मनोकामनाये पूरी करे, और आपका जीवन सुख, शांति और संतुष्टि से भर जाये |
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आपको भी शुभकामनाएं😊🎉🎉
लिखते रहिये और प्रेरित करते रहिये।
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अभय, लय पर ध्यान दें । पहले और दूसरे छंद में 1,2,4 ; तीसरे में 2,4 ; चौथे में कोई नहीं ; और पाँचवे में 1,2,3,4 है । कविता अभी यथोचित रूप से संपादित नहीं हुई है । वैसे प्रयास अच्छा है । नव वर्ष की शुभकामनाएँ ।
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अमित जी सबसे पहले बहुत बहुत धन्यवाद, इतनी बारीकी से अध्ययन कर अपनी राय व्यक्त करने के लिए और आपको नव वर्ष ढ़ेरों की शुभकामनाएं । मैं आपको बता दूँ कि मैं स्वाभाविक कवि नहीं, अपितु परिस्थितिजन्य कवि हूँ। मुझे लय का ज्ञान नहीं है। चीजें मन को छूती हैं और मैं लिखता हूं।
पर आपका ध्यान कविता के एक अभिन्न आयाम की तरफ खींचना चाहूंगा. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ हिंदी के सर्वोत्तम कवियों में से एक थे. वे लिखते हैं ” मनुष्यों की मुक्ति की तरह कविता की भी मुक्ति होती है . मनुष्य की मुक्ति कर्म के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छंदों के शासन से अलग हो जाना है”.
गीतों का लयबद्ध होना आवश्यक है, गीत कविताओं का एक हिस्सा है, कवितायेँ बिना लय के भी चलन में आती है.
कुछ भी हो, मैं आगे से मैं इस आयाम पर अवश्य ध्यान दूंगा, और आपसे अनुरोध रहेगा की आप मेरी पिछली कविताओं के संग आने वाले कविताओं का आंकलन जरूर करेंगे. 🙂
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I agree with u.!!!
Poems have there boundless sky…!!!
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I reiterated what Nirala ji has said about the Poems. 😊
Thank you.
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😊
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नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएँ 💐
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आपको भी अजय जी🎉
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Beautifully carved…!!!
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Thanks, pleased to know that you liked it.
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😊
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बहुत खूब।
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शुक्रिया 🙂
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