विश्वास और परिश्रम

अंग्रेजी कैलेंडर में नया वर्ष आ चुका है, वर्ष 2017. सोचा कि वर्डप्रेस पर अंग्रेजी नववर्ष की शुरुआत, नए वर्ष में लिखे अपने एक मुक्तक से करूँ. वैसे तो आप सब जानते होंगें कि मुक्तक काव्य शैली की ही एक विधा हैं. मुक्तक वह काव्य है जिसमें विचार का प्रवाह किसी एक निश्चित दिशा में नहीं होता बल्कि टेढ़ा-मेढ़ा (नॉन-लिनियर) चलता है, पर यह आवश्यक शर्त (necessary condition) नहीं है और यह कविताओं कि तरह लंबी भी नहीं होती. पढ़िए और मुझ तक पहुँचाइये कि आपको कैसी लगी.

विश्वास और परिश्रम

बाधायें बन पर्वत आती है तो आये

दुविधाएं, जो लोगों के मन को विचलित कर जाये

पर होता जिसे खुद पर दृढ़ विश्वास है,

मंज़िल तब दूर नहीं , बिलकुल उसके पास है

 

सुबह की धुन्ध को “आलसवस” , जो रात समझ कर थे सो गए

अपने चुने ही रास्तों में , जाने कहाँ वो खो गए

पर रुके नहीं जो रातों में , शर्दी में या बरसातों में

मिलते उन्हें ही हैं रास्ते  , जो जीते हैं सदा लक्ष्य के वास्ते

……………….अभय………………..

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7 thoughts on “विश्वास और परिश्रम”

  1. बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है आप ने | आलस्य मानव का सबसे बड़ा दुश्मन है, और सभी को अपनी क्षमता के अनुसार काम करना चाहिए |

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