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Thank You All !!!

हिन्दी के सभी पाठक मित्रों का विशेष आभार, स्नेह बनाये रखें!

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अपनी राह ..

 

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Clicked it, Yesterday Morning

अपनी राह..

 

राहों को अपनी, मैं खुद ढूंढ लूंगा
बन पथप्रदर्शक तुम, मुझे न उलझाओ||

मेरे उम्मीदों को अब, पर जो लगें है
अपनी आसक्तियों की, न जाल बिछाओ||

कष्टों का पहाड़ सीधे सिर पर सहा है
राह के रोड़ों से तुम, मुझे न डराओ||

सच है जो कड़वा, मैंने खुद चख लिया है
उसपर झूठ की मीठी तुम, परत न चढ़ाओ||

मंज़िल है मुश्किल औ’ लंबा सफर है
जो बीच में हो जाना, शुरू से साथ न आओ||

ज्ञान की दीपक अब जो जली है
अपने आंसुओं से उसे न बुझाओ||

जाना जहाँ है, राहों में कांटे बिछे हैं||
मेरे लिए अभी फूलों की हार न लाओ||

निराश लोगों की लम्बी पंगत लगी है
सांत्वना भरे गीत तुम, उन्हें ही सुनाओ||

नम्रता में मैंने जीवन है जीया
मेरे खुद पे भरोसे को, मेरा अहम् न बताओ||

………..अभय…………

 

 

शब्द सहयोग: पथप्रदर्शक: Guide; पर: Wings; रोड़ों: Pebbles; आसक्ति: Attachment; पंगत: Queue,  Line ;

नम्रता : Humility ;  अहम् : Ego ; सांत्वना: Sympathy; Condolence, Console.

यह कौन सा मौसम है?

 

 

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Jubilee Park, Jamshedpur. Credit: Google Image.

 

शाम को पार्क में बैठा था. हवा में ठंडक थी, मानो पेड़ एयर कंडीशन में बदल गये हों. उसके हरेक झोके मन को सुकून पहुँचाने वाले थे.

तभी, अचानक एक लड़के ने “चिप्स, आलू का चिप्स ” की आवाज़ लगायी. मेरी ओर बढ़ा और पूछा क्या आप लोगे ? मैंने उसे देखा. 14-15 साल का होगा. चेहरा मासूम सा. मैंने पूछा कितने के दिए? उसने कहा 10 की एक पैकेट. फिर, मैंने उससे नाम पूछा और पूछा कि कहाँ रहते हो. उसने नाम बताया “मुन्ना” और जहाँ रहता था उस बस्ती का नाम बताया. फिर मैंने पूछा कि स्कूल नहीं जाते? उसने बोला “हाँ जाता हूँ न, मैथ्स में कुछ पूछिये”.

उसका आत्मविश्वास देख में हतप्रभ था. शायद ही मैं किसी को इतने विश्वास से कुछ पूछने को कह पाता. मैंने कहा एक पैकेट दे दो. उसने चिप्स के बोरे में से एक पैकेट मेरी तरफ बढ़ा दी और पूछा कि पानी की  बोतल भी लेंगे? मैंने कहा नहीं, इसकी जरुरत नहीं है.

मेरी जिज्ञासा उसमे बढ़ी और पूछा कि पापा क्या करते हैं. उसने कहा “गोलगप्पे बेचते हैं, आप सोच रहे होंगे कि मुझे चिप्स क्यों बेचना पड़ता है”. मैं चुप रहा, वो खुद बोलने लगा “मेरी दसवीं की परीक्षा है और आगे मुझे और पढ़ना हैं. इंजीनियरिंग करना हैं. उसके लिए कोचिंग लगेगी. तो मैं शाम के खाली  समय में कभी कभी आकर बेचता हूँ. ज़्यादा नहीं पर थोड़े सही पैसे तो बच जायेंगे, जो बाद में काम आएगी नहीं तो सारा बोझ पिताजी पर आ जायेगा”.
तभी अचानक सिटी की आवाज़ सुनाई दी, दो सिक्योरिटी गार्ड मेरी तरफ दौड़ा, मुझे समझ नहीं आया कि हुआ क्या? तब  वो लड़का भागा. मैं हैरान. कुछ दूर तक गार्ड ने दौड़ाया, पर उसकी दौड़ काफी तेज थी, गार्ड मोटे थे, थक कर रुक गए. फिर वापस आने लगे.

मेरे मन में शंका हुई कि लड़का कहीँ चोर-वोर तो नहीं. गार्ड सामने से गुजर रहे थे, मैंने पूछा गार्ड साहब, उसको दौड़ाया क्यों? गार्ड साहब बोले “बदमाश हैं साले, बार बार मना करो फिर भी नहीं सुनते, पार्क में चिप्स या और कोई चीज बेचना मना हैं. प्लास्टिक का पूरा कचड़ा फ़ैल जाता हैं”.

चोरी वाली बात सोच मन मे लज्जा आयी. गार्ड भी अपनी ड्यूटी पर थे, पर लड़का अपनी ड्यूटी से ज़्यादा कर रहा था. रिस्क लेकर भी. तभी अचानक याद आया की इस अफरातफरी में मैंने तो उसको पैसे दिए ही नहीं और वह जाने कहाँ चला गया. सोचकर अच्छा नहीं लग रहा था. चिप्स का पैकेट लिए मैं घर की तरफ निकला. पार्किंग में लगी अपनी गाड़ी में जैसे ही चाबी लगायी की वो लड़का वापस आया और बोला “भैया पैसे”? सच कहूँ तो आज तक किसी को पैसे देने में इतना मज़ा नहीं आया था. जेब से 100 का नोट निकाला और बढ़ा दिया उसकी ओर उसने 90 रुपये वापस किये और मुस्कुराते हुए दूर जाने लगा …वह जिधर जा रहा था वहां अंधकार था, शायद  सरकार के  स्ट्रीट लाइट की रौशनी वहां तक नहीं पहुंचती होगी.

रात ढली और घर पहुंचा. खाना खाने के पश्चात, जब सोने की बारी आयी तो गर्मी का अनुभव हुआ, पंखा को 5 पर करके सोना पड़ा. रात ज्यों ज्यों ढली तो ठण्ड भी बढ़ने लगी, २ बजे के आस पास चादर शरीर पर जगह बना चुकी थी. 5 बजे नींद खुली तो देखा, पतली कम्बल ने भी मुझ पर अपना कब्ज़ा जमा लिया था. उठा तो ठण्ड थी. नहाने के लिए पानी को थोड़ा गुनगुना करना पड़ा. घर से निकला तो बाहर पार्क में घास पर ओस की बूंद पड़ी थी, मानो बारिश हुई हो रात में. 9 बजे थे, धुप तो निकल चुकी थी पर हवा के चलने से तपिश का एहसास न था. पर दो पहर के खाने के बाद, जब बाहर खुले में निकला, तो ग्लोबल वार्मिंग का प्रत्यक्ष आभास हुआ. सोचा की फूल शर्ट पहनना ही ठीक था. पीने का पानी तो ठंडी ही जच रही थी. पेड़ के अधिकांश पत्ते पीले पड़कर, उसका साथ छोड़ रहे थे. पर कुछ नए पत्ते शाखों पर दिख रहे थे, मानो पेड़ की उम्मीद अभी बची हो…..
इतनी विविधताएं, यह कौन सा मौसम है …..बसन्त 🙂

 

मुन्ना के जीवन में कभी कोई ऐसा समय आया होगा कि वह सोचे कि अभी कौन सा मौसम है?

सैनिक मन

जो भी भारतीय हैं, उनके मन में अपने सैनिकों के लिए अपार सम्मान  होता है. युद्ध हो, आपदा आये, सैनिक ही रक्षक बनकर आते हैं. हाल ही के समय में सेनाओं पर हमले की खबर काफी ज़्यादा सुनने को मिल रही है. मन आहात था. कुछ पंक्तिया लिखीं, आप सब तक बढ़ाता हूँ. आप अपनी प्रतिक्रिया मुझ तक पहुंचाइए..

सैनिक मन

सेनाओं के मन में
ऐसे भाव कहाँ से आते हैं
जान हथेली पर रखकर भी वो
भारत की लाज बचाते हैं

उनके भी अपने होते हैं
बच्चे भी रोते हैं
मातृभूमि की रक्षा को जब वो
रणभूमि पर होते हैं

अश्रुपूर्ण नयन से पूछती संगिनी,
वापस कब तुम आओगे
कब पुत्र, पिता और पति का
अपना धर्म निभाओगे

हल्की सी मुस्कान लिए मुख पर वह कहते
मैं वापस आऊंगा
राष्ट्रधर्म है पर्मोधर्म:
पहले इसको मैं निभाउंगा

युद्ध हमें भी अच्छा नहीं लगता
बर्बरता की निशानी है
पर अगर शत्रु जो आँख दिखाए
सोयी नहीं जवानी है

…….अभय …….

गरीबी क्या होती है ??

 

आज शनिवार की छुट्टी थी, तो घर पर ही पड़ा था दिन भर. साढ़े 4 या 5 बजे होंगे, घड़ी नहीं  देखी थी . मेरी चचेरी बहन, जो 5 साल की है, सोकर उठी और ब्रश करने लगी. मैं और माँ हैरान हो गए, कि लोग सुबह और रात को ब्रश करते हैं, ये शाम में ही शुरू हो गयी. मैंने पूछा कि छोटी तुम अभी ब्रश क्यों कर रही हो? उसने बोला, “बड़ा भैया, आज गुड मॉर्निंग नहीं बोले आप”.
मैं और माँ को बहुत हंसी आयी और सारा खेल समझ आ गया. दोपहर में काफी लंबे समय तक सोने के बाद शाम भी उसे सुबह जैसी लग रही थी और वैसे तो उसको रोज जबरदस्ती करके स्कूल के लिए तैयार करना पड़ता है और वो आज खुद तैयार हो रही थी. माँ से पता चला कि मैंने भी बचपन में एक दो बार ऐसी हरकत की  थी. बचपन होती ही ऐसी है, है ना ?
तभी मेरे नाम से कोई पुकारने लगा,पापा ने बताया कि अन्नू (मेरे बचपन का दोस्त, लड़का ही है :-P) मिलने आया है. हम बहुत अच्छे दोस्त हैं, पर बहुत दिनों से मुलाकात नहीं हो पायी थी. बहुत दिन मतलब 5-6 साल. वह कहीँ और रहता है. मैंने उसे घर में बुलाया. अब शाम रात में बदल रही थी और किसी तरह छोटी को  भरोसा हो पाया कि यह सुबह नहीं, बल्कि शाम ही था.
मैंने दो चेयर लिया और अन्नू को  छत पर चलने को कहा. छत पर शांति भी थी और हवा भी अच्छी चल रही थी. बहुत सारी बातें हुई. नयी-पुरानी. बात चीत के क्रम में उसने बताया कि वह कल अपने किसी संबंधी के बारात में गया था, पर वह मुझे थोड़ा उदास सा लग रहा था. मैंने पूछा कि भाई सब ठीक तो है. उसने बोला कि हाँ सब मस्त है. पर मुझे वह मस्त कहीं से भी नहीं लग रहा था. मुझे याद है कि हम दोनों काफी करीबी दोस्त हुआ करते थे . हम अपनी लगभग सारी बातें एक दूसरे से साझा करते थे. पर अब समय काफी बीत गया था. मैंने फिर से पूछा कि भाई सब सही में अच्छा है ना?
उसने कहा, अच्छा एक बात बताओ ये “गरीबी क्या है”? मैं गरीबी क्या है, को परिभाषित कर सकता था, पर इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं था, तो थोड़ा हिचकिचाने लगा और जो समझ आया बोला.

 

उसने कहा “कल कि एक घटना सुनोगे”? मेरे मन में बहुत अलग अलग विचार आ रहे थे. सोचने लगा कि शायद इन बीते दिनों वह शायद किसी बड़े आर्थिक संकट से गुजरा होगा. मुझे सोचता देख उसने झट से कहा, तुम्हे यह अजीब लग रहा हो पर मुझे तुम्हारे अलावा इसको शेयर करने वाला कोई और योग्य  नहीं मिला. मैंने कहा तुम सुनाओ घटना.
उसने शुरू किया. अब उसके शब्द ..
कल रात में मेरे सम्बंधित के घर से 8-9 बजे के करीब बारात निकली. मैं बहुत उत्साहित थे क्योंकि बहुत दिन हो गए थे किसी बारात में गए. माहौल भी बहुत अच्छा था, सबके चेहरे पर ख़ुशी, सबके चेहरे मुस्कुरा रहे थे, कोई जोक क्रैक कर रहा था तो कोई नए कपड़ों में तस्वीर लेने में व्यस्त था. दूल्हा, कार में पीछे, उसके आगे बारात. बारात के दोनों तरफ लाइट लिए हुए पंक्ति में बैंड बाजे वाले चल रहे थे. जैसा कि किसी भी अन्य भारतीय बारात में होता है. बीच में बैंड बाजे वाले अपने बाजे गाजे के साथ बारात में सामान्यतः बजने वाले गीत बज रहे थे.

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Representative Image, Source: Google.

चुकि, मुझे नाचना आता नहीं और नाचने में  शर्म भी आती है तो मैं बस भीड़ में खड़ा देख रहा था, पर यह भी सच है कि गानों के धुन पर पैर थिरक रहे थे . तभी मेरी नजर एक बैंड बाजे वाले कि तरफ पड़ी. वह मुँह से फूक कर बजने वाला इंस्ट्रूमेंट (नाम नहीं पता, नीचे की तस्वीर में देखिये ) बजा रहा था और उसकी आँखों से आंसू आ रहे थे. मैं विचलित हो गया. मन तो किया कि उससे पूंछू कि क्या हुआ पर क्योंकि  वह बजाने में व्यस्त था और उसके चुप होने से सारे बाराती, जो सब नाचने में व्यस्त थे, का ध्यान उधर आता. मैंने सोचा कि हो सकता है वह नया होगा और बजाने में शक्ति तो लगती होगी, इस वजह से आंसू आ गए हों.  पर अचानक से बारात के बीच में से किसी ने आवाज़ लगायी अरे!!  ज़ोर से बजा… जोर से.. मेरे यार कि शादी है….और कुछ देर बाद एक नवयुवक (जो मुझे नशे में लगा) गाली गलौज पर उतर आया और कहने लगा पैसे दिए हैं जोर से बजा जोर से, दुबारा ये शादी नहीं होगी…

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Representative Image, source: Google

तभी उस बाजे वाले जिसके आँखों  से आंसू बह रहा था उसकी इंस्ट्रूमेंट किसी और बाजे वाले ने ले ली और उसके हाथ में छन-छन करने वाली झालर पकड़ा दी. मैंने सोचा चलो ठीक है. पर मेरा ध्यान उसपर ही था. बीच बीच में मैं इधर उधर होता पर मेरा ध्यान पता नहीं क्यों उसपर ही टिका रहा. कुछ देर बाद देखा तो वह रो ही रहा था. अब तो मैं बस बारात पहुँचने का इंतज़ार करने लगा।

 

जल्द ही बारात पहुंची और मैं सीधे उसके पास. 35-40 के बीच में उसकी उम्र होगी. मैंने पूछा, क्या हुआ भैया कोई तकलीफ. वो चेहरे का रंग गिरगिट कि तरह बदल के बोला “नहीं नहीं बाबू कोई बात नहीं . हो सकता है कि उसने सोचा हो कि मैं उसकी क्लास लूंगा.  पर मैंने फिर उससे पूछा कि  बजाते समय रो क्यों रहे थे. अब मानो कि उसके दर्द की  बाँध टूट गयी हो. वो फबक कर रोने लगा और बोला “बाबू  मेरा बेटा कल गुजर गया . वह 15 साल का था. डॉक्टर बाबू बोले रहे कि ठीक हो जायेगा, 17 दिन तक इलाज भी होता रहा, महाजन से 35 हजार कर्जा भी लिए पर वह कल गुजर गया गया. मैं यहाँ बैंड बाजा बजा रहा हूँ, झाल बजा रहा हूँ… आकाश में पठाखे देख रहा हूँ… लोग नाच रहें हैं… मेरा बेटा मर गया….
इसी बीच मेरे एक संबंधी, जो शायद सिगरेट पीने बहार आये थे,  ने मुझे वहाँ देखा और बोले चलो अंदर यहाँ क्या कर रहे हो..मैंने बोला आप चलिए मैं बस आता हूँ. उसकी व्यथा सुनकर उसके दर्द का आंकलन करने में भी मैं असमर्थ था . मैंने पूछा,  तो आज आये क्यों? उसने बोला बाबू  गरीबी लाती है खींच के, हम कहाँ आते हैं. कर्जा चुकाना होगा महाजन का 35,000 का 6 महीना बाद 50,000 लेगा. हम कहाँ से पैसा लाएंगे. दिन भर मजदूरी किये, ये बारात का मौषम बार बार नहीं आता है. चला गया तो बहुत दिन बाद आता है. बेटा चला गया पर घर में दो बेटी है, पत्नी है, काम नहीं करेंगे तो खाना भी मुश्किल होगा.
मेरी आँखे भर आयी. मुझे लग ही नहीं रहा था कि मैं बारात में आया हूँ. पॉकेट में हाथ डाला 1500 निकले, उसके हाथ में थमाने लगा. पहले तो उसने बहुत मना किया पर मैंने शादी कि बख्शीस बता के दे दी. उसने आशीर्वाद में कुछ बोल बोले, मैंने ध्यान से सुना नहीं मेरे मन में बस एक ही बात चल रही थी…बेटा खो गया और उसको बैंड बजाना पड़ रहा है, झाल बजाने पड़ रहे हैं, लोगों को नाचता देखना पड़ रहा है, पटाखे जलाते देखने पड़ रहे हैं…

 

उसने कहा “अभय, गरीबी कुछ और नहीं, यही है” और कह कर चुप हो गया. घटना पूरी तरह झकझोरने वाली थी. और जिस तरह मेरे दोस्त ने वर्णन किया वह भी अद्वितीय था. मुझे उसपर गर्व हुआ कि उसने दर्द को देखकर अपना चेहरा नहीं फेरा. वह आज भी पहले की  तरह था, मुझे खुद पर संदेह हुआ कि क्या मुझे अब लोगों का कष्ट नहीं दीखता.

 

तभी माँ हमारे लिए गर्म-गर्म समोसे और इमली की चटनी बना के लायी. मैंने अपने दोस्त को  देखा उसने मुझे और फिर उसने  समोसे को उठाया. वह मुस्कुरा रहा था. माँ ने पूछा समोसे कैसे बने हैं ……

तुम

तुम

उलझती जुल्फें

सरकती पलकें

चमकती आँखे

दमकता चेहरा

उस पर पहरा!

खनकती चूड़ी

सरकता आँचल

लटकती बाली

खनकता पायल

कितने घायल!

चहकती बोली

मचलती चाल

माधुरी मुस्कान

महकता तन

कितनो का बहकता मन !

गरजते बादल

बरसते पानी

कुहू की शोर

नाचते मोर

ज्यों देखे तेरी ओर !

विचलित मन

मौन हरदम

दिल में बर्फ जमी

आँखों में “नमी”

तेरी कमी

……..अभय……

Hit-Wicket on V -Day :-P

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River Swarnrekha, during Monsoon.

So, I am continuing from where I have left it yesterday, as some event prompted me to write it again.  If you haven’t read, and willing to do so, you can check it out @ भोर की खोज..

Today also I woke up early. It was dark outside. But a hope was there that sun will emerge soon out of this darkness. I prepared myself for the morning walk. At 05:00 hrs I left home. Outside, season was tantalizing as usual in Feb. Cold breeze was blowing. Aroma of mango flowers (we call it  Manjari in Hindi), conspicuous in this month, were enchanting.

I plugged  in my ear phones and played the same Song (Bhajan) which I have mentioned in my last blog भोर की खोज... The volume was at maximum. Contemplating on each words of the song and appreciating the classical music of India and the way Pt. Bhim Sen Joshi has sung, I was marching towards the river.

It was still dark yet the street lights were glowing. Some other people were also strolling on the street. I was completely observed in the song then suddenly someone hold my hand. I experienced how fast our mind could be. Before I could turn back, numerous bizarre thought came. Who it could be?

A ghost!!!!  Oh it’s Valentine Day, how can I forget the atmosphere which has been created since past week for 14th February, especially on WP. Someone hold my hand in the very morning. Thought, Saint Valentine must be very kind on me.

But when I turned around, all my imaginations were shattered in seconds :P. I saw an old man in his 50s. His face was frightened. I asked “चचा !! क्या हुआ ??” (Uncle! What happened?) He was telling something, but since the music was playing at maximum volume, I couldn’t hear him. I plugged out my ear phone. Then heard asynchronous and horrific sound of woof.. woof.. woof.. Nearly 5-6 stray dogs were behind him. He said, “साले ! कुत्ते  पीछे   हैं ” (Dogs are behind me). I said “वो  तो  देख  रहा  हूँ , आप घबराओ मत, मेरे पीछे आ जाओ ” (That I am seeing, don’t panic just stay behind me). Then I stayed calm and scarred the dog by pretending to throw pebbles at them, when there was no stones around. Somehow dogs got scarred and ran away.

I smiled at uncle and ask jokingly, “क्या  चचा!!!  वैलेंटाइन  डे  के  दिन  आज  मैं  ही  मिला  था  सुबह  सुबह  हाथ  पकड़ने  को 🙂“(Uncle! on this valentine day you only found me to hold hand ) . As it turned out, uncle was more humorous, he replied  “बेटा , खैर  मनाओ  बजरंग  दल  से  हूँ मैं , जान  नहीं  बचायी  होती  तो  वैलेंटाइन  डे  के दिन, दिन भर तुम्हारे पीछे अपने आदमियों को छोड़ता ” (Son! you are lucky, I am from Bajrang Dal, if you haven’t saved my life today, then for taking the name of Valentine, I would have sent my men to have a watch on you for the entire day). I said jokingly, “ये पराक्रम कुत्तो  पर  क्यों  नहीं  दिखाया” (Why don’t you displayed your valor to the dogs). He replied more wittingly, “कुत्ते  थोड़े  ही न  वैलेंटाइन  डे  मानते  हैं ” (Dogs never celebrate Valentine Day).

I burst in to laughter, he followed me too. I said “Namste”  to him and marched forward towards the river. He replied “Thank You“. On reaching there, I removed  my shoes off and dipped my feet in to the water. Water was colder than the wind. Someone has just rang the temple bell. Birds were taking flights towards their destination. I was smiling……

 

भोर की खोज..

आज कल के भागा दौड़ी वाले समय में मुझे संदेह है कि बहुत कम व्यक्ति होंगे जो रोज सूर्योदय देखते हैं. खासकर युवा वर्ग की नींद तो सूर्योदय के बाद ही खुलती है, ऐसा मैं  मानता हूँ. पर मैं यह नहीं कह रहा कि सभी युवा सूर्योदय के बाद ही उठते हैं .

आज सुबह सुबह का अनुभव आप सब से साझा कर रहा हूँ. वैसे तो बसंत का मौषम ही बड़ा सुहावना होता है. सुबह में तो कुछ और ही ज़्यादा. जब ठंडी ठंडी पवन शरीर को छूती है, आम के मंज़र की खुशबु से मन प्रशन्न हो जाता है, कोयल की कुहू, और जब आप उसके स्वर की नक़ल करो तो उसका लगातार दुहराना, मन को मोहित कर जाता है.

तो आज जब मैं उठा तो सोचा कि कुछ टहल लिया जाये. अभी सूरज निकला  नहीं थी तो वातावरण में अँधेरा व्यप्त था. मुझे नदी, तालाब या झील का तट बहुत अच्छा लगता है. और एक नदी घर के कुछ ही दूरी पर है तो उधर हो चला. साथ में फ़ोन और ईयरफ़ोन भी ले लिया. मेरे म्यूजिक प्लेयर में कुछ गीत थे, पर रिलायंस जिओ ने एक काम अच्छा किया है की डेटा की अब चिंता नहीं करनी पड़ती है और आप गाना ऑनलाइन सुन सकते हो. जितनी मर्जी उतनी.

तो मैंने ganna.com पर क्लासिकल भजन टाइप किया और कान में ईयरफ़ोन लगा कर घर से निकला. फिर जो भजन मैंने सुना उससे मंत्रमुग्ध हो गया. वह भजन पंडित भीम सेन जोशी ने गायी थी. उनके स्वर में जादू था. मैं आपको बताऊँ तो मैंने वह भजन सुबह से अब तक १५-२० बार से ज़्यादा सुनी पर फिर भी मेरा मन नहीं भरा. इस भजन की सबसे अच्छी बात मुझे इसकी बोल लगी, हरेक शब्द में भाव, हरेक शब्द का अर्थ. आज कल के गीत की तरह नहीं, बिना मतलब का, फूहर…

तो सोचा की आप सब तक भी पहुंचा दूं. हो सकता है आप में से कइयों ने सुनी होगी, और यदि नहीं सुनी तो आप जरूर सुनियेगा. हो सके तो सुबह सुबह सूर्योदय से पहले, खुले में, ईयरफ़ोन लगा के, तेज स्वर में.
मैंने थोड़ी खोज-बीन की तो YouTube पर मुझे मिला, लिंक शेयर कर रहा हूँ. एल्बम का नाम है “कृष्ण कहिये  राम  जपिये” . इस एल्बम की हरेक गीत बहुत मधुर र और सुन्दर हैं पर “कृष्ण कृष्णा कहिये उठी भोर”  का जवाब नहीं , पर यहाँ यह दो भाग में है .एक साथ सुनियेगा तो और भी मज़ा आएगा
मैं इस भजन का transcript भी ब्लॉग पर शेयर कर रहा हूँ जिससे बोल समझने में आसानी होगी.

 

कृष्ण कृष्ण कहिये उठी भोर…

कृष्ण कृष्ण कहिये उठी भोर
भोर किरण के साथ कृष्णा कह
वन में नाचे मोर

पक्षी के कलरव में वंदन
वंदन लहरें करती
वंदन करती बहे समीरें
गायें हैं पग भरतीं
कृष्ण कृष्ण कह पुत्र जग के माता होये विभोर

गुन गुन कर के कृष्ण कृष्ण कहे
भँवरे डोल रहे हैं
कृष्ण कृष्ण कह कमल पुष्प सब
पंखुड़ी खोल रहे हैं
वंदन की आभा फैली हैं
देखो चारो ओर

फूल टूट के धरा पे बिखरे
इसी भांति है वंदन
दूब के मुख पर ओस पड़ी है
महक उठा है चन्दन
कोयल कूक के वंदन करती
हंस करे किलोर .

 

 

बताना मत भूलियेगा की कैसी लगी 🙂

संस्कृत, आखिर क्यों?

sanskrit

भारत की संस्कृति में जरूर कोई बात रही होगी कि यह सनातन काल से अब तक सतत निरंतर चली आ रही है. इस संस्कृति पर कई बार विदेशी आक्रांताओं का आक्रमण हुआ, क्षत-विक्षत करने का प्रयाश हुआ पर फिर भी यह टूटी नहीं, इतिहास में खोयी नहीं. कुछ परिवर्तन जरूर आया है और आना भी चाहिए. कहतें हैं न कि तालाब का स्थिर जल सड़ने लगता हैं और नदी का पानी सदा गतिमान रहने के कारण हमेशा निर्मल बना रहता हैं. संस्कृति पर भी यह बात उपयुक्त होती हैं.

मैं सोचता हूँ कि ऐसी कौन सी बात रही होगी, जो देश को इतनी विविधताओं, इतने आक्रमणों, इतनी लंबी काल अवधी के पश्चात एक करके रखी हैं. बहुत सोचने के बाद एक निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि एकात्म करने वाली शक्ति निश्चय ही “संस्कृत” रही होगी.

कन्याकुमारी से कश्मीर तक, अटक से कटक तक यह भाषा सर्वत्र व्याप्त और सम्माननीय थी. इसका व्याकरण सर्वश्रेष्ठ हैं. यह विश्व कि सबसे प्राचीन भाषा हैं. जब पूरा विश्व ज्ञान के अंधकार में डूब हुआ था तब इसी भाषा में सबसे पुराने और विशाल काव्य रामायण, महाभारत और भी न जाने कितने शास्त्रों की रचना हुई थी. गीता जो ५००० साल पहले लिखी गयी थी आज भी प्रासंगिक है

एक बार मेरी बात चीत, मैं जहाँ रहता हूँ वहां के प्रतिष्टित और ज्ञानी व्यक्ति से हो रही थी. उन्होंने एक बहुत सटीक और सोचनीय बात कही. “जो भाषा आर्थिक संभावनाएं जनित नहीं कर सकती, वो मर जाती है“. उनका सीधा हमला संस्कृत की तरफ था. पर मैं सोचने को जरूर मजबूर हो गया कि भारत इतिहास में सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु कही जाती थी. विदेशियों ने भारत पर हमला इसलिए ही किया होगा कि यह भूमि उन्हें धन धान्य से सम्पन लगी होगी. मतलब संस्कृत दोषी नहीं है क्योंकि भारत अपने शीर्ष पर तब था जब संस्कृत थी.

मुझे संस्कृत न के बराबर आती है, पर भविष्य में जरूर सीखूंगा ऐसी मन में अभिलाषा है क्योंकि हम नहीं सीखेंगे तो कौन?

हालांकि मेरी यह सोच भी गलत है. हाल ही में मैं पांडिचेरी गया था, वहां एक फ्रेंच युवक से बातचीत के क्रम में पता चला कि वह फर्राटेदार संस्कृत बोल सकता है और उसने बोल के भी दिखाया. मैंने उनसे वह प्रश्न भी पूछा कि क्या संस्कृत मृत हो जाएगी? अल्फ्रेड का जवाब बहुत स्पष्ट था.. “As long as I am alive I made it sure that Sanskrit will remain alive, it’s up to the youth of India what they want to do with their language”.

 

खैर छोड़िये, ऑफिस निकलना होगा. आपको मैं संस्कृत के एक श्लोक और उसके अर्थ पर छोड़ जाता हूँ, अर्थ पढ़कर और समझ कर आप संस्कृत पर गर्व किये बिना रह ही नहीं सकते. यह मेरा दृढ विश्वास है
जड़ास तपोभिः शमयन्ति देहं बुधा मनश्चापि विकारहेतुम |
श्वा मुक्तमस्त्रं दशतीति कोपात क्षेपतारमुदिश्य हिनस्ति सिंहः ||

–सुभाषितरत्नभांडागार, विचारः श्लोक 238

अनुवाद- मुर्ख व्यक्ति शारीरिक तप द्वारा इन्द्रियों को नियंत्रित करने का प्रयाश करता है जबकि बुद्धिमान व्यक्ति मन को नियंत्रित करने का प्रयाश करता है, क्योंकि मन ही इक्षाओं और दुखों का श्रोत है. कुत्ते क्रोधवश अपने ऊपर फेके गए बाण को चबाते हैं, जबकि सिंह उस बाण को चलाने वाले शिकारी को खोजकर उसे मार देता हैं