जुगनू

जुगनू

आजकल रात जुगनू मेरे छत पे
झुण्ड में मंडरा रही है
अनजाने में ही सही लेकिन मुझे
तेरी याद दिला रही है

इक पल जलती , फिर बुझ जाती
जैसे सुख दुःख का एहसास कराती
कम ही सही,
पर प्रकाश तो फैला रही है

एक जुगनू बैठ हाथ पे
शायद कुछ गा रही है
अफ़सोस! उसकी एक बात भी
मेरे समझ नहीं आ रही है

स्तब्ध हूँ मैं बैठा
देख उसकी कोमलता
है छोटी सी, पर पल भर को ही सही
अंधकार को हरा रही है

उड़ चली हाथों से
झुण्ड में वो समा गयी
मानो स्पर्श से मेरे
हो वो शर्मा गयी है
तेरी याद दिला गयी है …

………..अभय………..

 

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19 thoughts on “जुगनू”

        1. यूपी के चुनावी बुखार से बचना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी है ☺️
          ख्याल रखना भाई🙏

          Liked by 1 person

  1. उड़ चली हाथों से
    झुण्ड में वो समा गयी
    मानो स्पर्श से मेरे
    हो वो शर्मा गयी है
    तेरी याद दिला गयी है …
    waah….wah…..kya kahen…….aapki kavita ka jawab nahi……..

    Liked by 1 person

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