जुगनू
आजकल रात जुगनू मेरे छत पे
झुण्ड में मंडरा रही है
अनजाने में ही सही लेकिन मुझे
तेरी याद दिला रही है
इक पल जलती , फिर बुझ जाती
जैसे सुख दुःख का एहसास कराती
कम ही सही,
पर प्रकाश तो फैला रही है
एक जुगनू बैठ हाथ पे
शायद कुछ गा रही है
अफ़सोस! उसकी एक बात भी
मेरे समझ नहीं आ रही है
स्तब्ध हूँ मैं बैठा
देख उसकी कोमलता
है छोटी सी, पर पल भर को ही सही
अंधकार को हरा रही है
उड़ चली हाथों से
झुण्ड में वो समा गयी
मानो स्पर्श से मेरे
हो वो शर्मा गयी है
तेरी याद दिला गयी है …
………..अभय………..
So beautifully written
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Thanks Astha ☺️
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वाह , बहुत शानदार
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धन्यवाद भाई, कहां हो आज कल? ☺️
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भाई , तबियत ठीक नही हे बुखार हे , अभी कुछ आराम हुआ है इस लिए नही आ पाया आपकी पोस्टो पर 🙏
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यूपी के चुनावी बुखार से बचना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी है ☺️
ख्याल रखना भाई🙏
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हा हा हा , चुनावों वाला नही है भाई , आपका धन्यवाद 🤗🙏🤗🤗🤗🙏🤗😘
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जय हो 🙏
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Very well penned down !!!
Check out my blog also for experiencing the magic of letters.
Hope you will like it.:)
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Thank you. Will experience your magic soon ☺️
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Hav nominated u for the bloggers award
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Thanks ☺️🙏
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Blogger Recognition Award
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Third time I got ☺️
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Well penned abhay… I love these lines
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Thank you ☺️
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उड़ चली हाथों से
झुण्ड में वो समा गयी
मानो स्पर्श से मेरे
हो वो शर्मा गयी है
तेरी याद दिला गयी है …
waah….wah…..kya kahen…….aapki kavita ka jawab nahi……..
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aise sparsh naa karen…….
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हा हा, कल्पनाओं में भी नहीं ? 😛
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