भारत की संस्कृति में जरूर कोई बात रही होगी कि यह सनातन काल से अब तक सतत निरंतर चली आ रही है. इस संस्कृति पर कई बार विदेशी आक्रांताओं का आक्रमण हुआ, क्षत-विक्षत करने का प्रयाश हुआ पर फिर भी यह टूटी नहीं, इतिहास में खोयी नहीं. कुछ परिवर्तन जरूर आया है और आना भी चाहिए. कहतें हैं न कि तालाब का स्थिर जल सड़ने लगता हैं और नदी का पानी सदा गतिमान रहने के कारण हमेशा निर्मल बना रहता हैं. संस्कृति पर भी यह बात उपयुक्त होती हैं.
मैं सोचता हूँ कि ऐसी कौन सी बात रही होगी, जो देश को इतनी विविधताओं, इतने आक्रमणों, इतनी लंबी काल अवधी के पश्चात एक करके रखी हैं. बहुत सोचने के बाद एक निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि एकात्म करने वाली शक्ति निश्चय ही “संस्कृत” रही होगी.
कन्याकुमारी से कश्मीर तक, अटक से कटक तक यह भाषा सर्वत्र व्याप्त और सम्माननीय थी. इसका व्याकरण सर्वश्रेष्ठ हैं. यह विश्व कि सबसे प्राचीन भाषा हैं. जब पूरा विश्व ज्ञान के अंधकार में डूब हुआ था तब इसी भाषा में सबसे पुराने और विशाल काव्य रामायण, महाभारत और भी न जाने कितने शास्त्रों की रचना हुई थी. गीता जो ५००० साल पहले लिखी गयी थी आज भी प्रासंगिक है
एक बार मेरी बात चीत, मैं जहाँ रहता हूँ वहां के प्रतिष्टित और ज्ञानी व्यक्ति से हो रही थी. उन्होंने एक बहुत सटीक और सोचनीय बात कही. “जो भाषा आर्थिक संभावनाएं जनित नहीं कर सकती, वो मर जाती है“. उनका सीधा हमला संस्कृत की तरफ था. पर मैं सोचने को जरूर मजबूर हो गया कि भारत इतिहास में सोने की चिड़ियाँ और विश्वगुरु कही जाती थी. विदेशियों ने भारत पर हमला इसलिए ही किया होगा कि यह भूमि उन्हें धन धान्य से सम्पन लगी होगी. मतलब संस्कृत दोषी नहीं है क्योंकि भारत अपने शीर्ष पर तब था जब संस्कृत थी.
मुझे संस्कृत न के बराबर आती है, पर भविष्य में जरूर सीखूंगा ऐसी मन में अभिलाषा है क्योंकि हम नहीं सीखेंगे तो कौन?
हालांकि मेरी यह सोच भी गलत है. हाल ही में मैं पांडिचेरी गया था, वहां एक फ्रेंच युवक से बातचीत के क्रम में पता चला कि वह फर्राटेदार संस्कृत बोल सकता है और उसने बोल के भी दिखाया. मैंने उनसे वह प्रश्न भी पूछा कि क्या संस्कृत मृत हो जाएगी? अल्फ्रेड का जवाब बहुत स्पष्ट था.. “As long as I am alive I made it sure that Sanskrit will remain alive, it’s up to the youth of India what they want to do with their language”.
खैर छोड़िये, ऑफिस निकलना होगा. आपको मैं संस्कृत के एक श्लोक और उसके अर्थ पर छोड़ जाता हूँ, अर्थ पढ़कर और समझ कर आप संस्कृत पर गर्व किये बिना रह ही नहीं सकते. यह मेरा दृढ विश्वास है
जड़ास तपोभिः शमयन्ति देहं बुधा मनश्चापि विकारहेतुम |
श्वा मुक्तमस्त्रं दशतीति कोपात क्षेपतारमुदिश्य हिनस्ति सिंहः ||
–सुभाषितरत्नभांडागार, विचारः श्लोक 238
अनुवाद- मुर्ख व्यक्ति शारीरिक तप द्वारा इन्द्रियों को नियंत्रित करने का प्रयाश करता है जबकि बुद्धिमान व्यक्ति मन को नियंत्रित करने का प्रयाश करता है, क्योंकि मन ही इक्षाओं और दुखों का श्रोत है. कुत्ते क्रोधवश अपने ऊपर फेके गए बाण को चबाते हैं, जबकि सिंह उस बाण को चलाने वाले शिकारी को खोजकर उसे मार देता हैं
प्रिय मित्र ,अभय जी संस्कृत भाषा का ज्ञान तो मुझे भी नही पर ज्यादा नही एक बात कह सकता हूँ इस भाषा पर संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है अपितु संस्कृत एक विचार है संस्कृत एक संस्कृति है एक संस्कार है संस्कृत में विश्व का कल्याण है, शांति है, सहयोग है, वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना है |
LikeLiked by 2 people
वाह अजय भाई, बहुत खूब लिखा है आपने, संस्कृत संस्कृति है।
LikeLiked by 1 person
आभार आपका , अभय जी पर अधूरा सा रिप्ले दिया है आपने लगता है आपके दिल में मेरे लिए जगह की कमी है कहो तो एक 100 गज का प्लाट काट दूँ !
कभी कभी अजय बाबू भी लिख दिया करो अभय जी 🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🤗🙏😜😜😜😜😜😜😜🙏🙏🤗🤗🤗🤗🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
LikeLiked by 1 person
हा हा, कार्यालय में हूँ भाई साहब। 😜
LikeLiked by 1 person
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
LikeLiked by 1 person
धन्यवाद! सबसे पहले तो अभय…बहुत अच्छी टॉपिक पर आपने आज लिखा…और मैं अजय जी की बातों से भी सहमत हूँ!!😊😊 ऐसे हीं हमें अवगत कराते रहें अपने विचारों से…💐💐
LikeLiked by 2 people
धन्यवाद ज्योति जी, खुशी हुई कि विचार आपको अच्छा लगा। ☺️
LikeLiked by 1 person
आपका यह पोस्ट मुझे बहुत बहुत अच्छा लगा. संस्कृत को देव भाषा कहा गया है इसलिये यह मर नहीँ सकती है. दक्षिण के एक गाँव में यह आज भी बोली जाती है और विदेशों में इस पर शोध चल रहा है.
LikeLiked by 1 person
बहुत आभार रेखा जी, मट्टूर नामक गाँव है कर्नाटक में जहाँ लोग अब भी संस्कृत बोलते हैं। ☺️
LikeLiked by 1 person
हाँ और भी एक जगह है. मुझे नाम याद नहीँ है.
LikeLiked by 1 person
कोई बात नहीं, केरल के भी एक गांव के बारे में सुना था ☺️
LikeLiked by 1 person
so very informative post…abhay.everytime something new to learn…thanx
LikeLiked by 1 person
Thank you so much for landing on my post. I m pleased that you find new things every time. ☺️
LikeLiked by 1 person
Yes…keep writing
LikeLiked by 1 person
Will try, thanks 🙏
LikeLike
First of all this one is a very strong post with logical analysis.
agreed with you….if we give a look in the history of India then we will find that India was in the top position from every aspect when sanskrit had the priority.
LikeLiked by 1 person
Yes Jyotirmoy, you are absolutely correct. We should leave Sanskrit for dying. 😦
LikeLike
आपने संस्कृत – – – – – – – – – – – – ।बहुत ही अच्छा लिखा है। आजकल हम लोग के बच्चे संस्कृत की जगह भले ही कुछ और ले ले कहते हैं कि संस्कृत लेके कथा बांचना है। आप लोग के नयी पीढ़ी में हिन्दी और संस्कृत के प्रति लगाव देखकर बहुत ही अच्छा लगा। आप लोगों से ही अपनी संस्कृति कायम रहेगी वर्ना आजकल तो पाश्चात्य संस्कृति अपनाने की होड़ लगी रहती है।
LikeLiked by 1 person
धन्यवाद आपका, किसी को तो करना ही होगा संस्कृत का प्रचार और प्रसार। 🙏
LikeLike
बहुत बहुत सुंदर , दिल को छू गया । अगर यह सोच आज की सोच बन रही है तो निस्चित ही जिस प्रकार हमारी संस्कृति चिरंतर तक रहेगी संस्कृत का अस्तित्व तो बहुत वीरात है , इसे मिटाना तो बहुत मुश्किल है । मुझे गौरव है मेरे हिंदू होने का और ऐसे भाषा का तुच्छ ज्ञान होने का । धन्यवाद अभय बहुत बहुत धन्यवाद ऐसे विषय पर लिखने के लिए , आशा है आगे भी हमें और ऐसा ज्ञान जन्ने को मिलता रहेगा । साधुवाद इस पोस्ट के लिए 🙏🙏
LikeLiked by 1 person
धन्यवाद आपका कि आपने पोस्ट पढ़ा और यह आपको पसंद आयी. पर हमे निश्चिन्त होकर नहीं बैठना चाहिए कि यह संस्कृति कभी खत्म नहीं होगी, शायद इसी सोच कि वजह से संस्कृत की यह दशा है. हमें अपने भर प्रयाश करते रहना चाहिए कि इसका विस्तार होता रहे… एक बार फिर आपका धन्यवाद 🙂
LikeLiked by 1 person
स्वागत है आपका , आगे भी पढ़ती रहूँगी । आशा करती हूँ आपकी प्रतिक्रिया अपने पोस्ट्स पर जल्दी ही पाऊँगी । सही व्याख्या करने वालों की मुझे आतुरता से इंतेज़ार रहता है
LikeLiked by 1 person
जरूर जरूर, जरूर देखूँगा आपके blog content.. ☺️
LikeLiked by 1 person
🙏
LikeLiked by 1 person
🙏
LikeLike