
शाम को पार्क में बैठा था. हवा में ठंडक थी, मानो पेड़ एयर कंडीशन में बदल गये हों. उसके हरेक झोके मन को सुकून पहुँचाने वाले थे.
तभी, अचानक एक लड़के ने “चिप्स, आलू का चिप्स ” की आवाज़ लगायी. मेरी ओर बढ़ा और पूछा क्या आप लोगे ? मैंने उसे देखा. 14-15 साल का होगा. चेहरा मासूम सा. मैंने पूछा कितने के दिए? उसने कहा 10 की एक पैकेट. फिर, मैंने उससे नाम पूछा और पूछा कि कहाँ रहते हो. उसने नाम बताया “मुन्ना” और जहाँ रहता था उस बस्ती का नाम बताया. फिर मैंने पूछा कि स्कूल नहीं जाते? उसने बोला “हाँ जाता हूँ न, मैथ्स में कुछ पूछिये”.
उसका आत्मविश्वास देख में हतप्रभ था. शायद ही मैं किसी को इतने विश्वास से कुछ पूछने को कह पाता. मैंने कहा एक पैकेट दे दो. उसने चिप्स के बोरे में से एक पैकेट मेरी तरफ बढ़ा दी और पूछा कि पानी की बोतल भी लेंगे? मैंने कहा नहीं, इसकी जरुरत नहीं है.
मेरी जिज्ञासा उसमे बढ़ी और पूछा कि पापा क्या करते हैं. उसने कहा “गोलगप्पे बेचते हैं, आप सोच रहे होंगे कि मुझे चिप्स क्यों बेचना पड़ता है”. मैं चुप रहा, वो खुद बोलने लगा “मेरी दसवीं की परीक्षा है और आगे मुझे और पढ़ना हैं. इंजीनियरिंग करना हैं. उसके लिए कोचिंग लगेगी. तो मैं शाम के खाली समय में कभी कभी आकर बेचता हूँ. ज़्यादा नहीं पर थोड़े सही पैसे तो बच जायेंगे, जो बाद में काम आएगी नहीं तो सारा बोझ पिताजी पर आ जायेगा”.
तभी अचानक सिटी की आवाज़ सुनाई दी, दो सिक्योरिटी गार्ड मेरी तरफ दौड़ा, मुझे समझ नहीं आया कि हुआ क्या? तब वो लड़का भागा. मैं हैरान. कुछ दूर तक गार्ड ने दौड़ाया, पर उसकी दौड़ काफी तेज थी, गार्ड मोटे थे, थक कर रुक गए. फिर वापस आने लगे.
मेरे मन में शंका हुई कि लड़का कहीँ चोर-वोर तो नहीं. गार्ड सामने से गुजर रहे थे, मैंने पूछा गार्ड साहब, उसको दौड़ाया क्यों? गार्ड साहब बोले “बदमाश हैं साले, बार बार मना करो फिर भी नहीं सुनते, पार्क में चिप्स या और कोई चीज बेचना मना हैं. प्लास्टिक का पूरा कचड़ा फ़ैल जाता हैं”.
चोरी वाली बात सोच मन मे लज्जा आयी. गार्ड भी अपनी ड्यूटी पर थे, पर लड़का अपनी ड्यूटी से ज़्यादा कर रहा था. रिस्क लेकर भी. तभी अचानक याद आया की इस अफरातफरी में मैंने तो उसको पैसे दिए ही नहीं और वह जाने कहाँ चला गया. सोचकर अच्छा नहीं लग रहा था. चिप्स का पैकेट लिए मैं घर की तरफ निकला. पार्किंग में लगी अपनी गाड़ी में जैसे ही चाबी लगायी की वो लड़का वापस आया और बोला “भैया पैसे”? सच कहूँ तो आज तक किसी को पैसे देने में इतना मज़ा नहीं आया था. जेब से 100 का नोट निकाला और बढ़ा दिया उसकी ओर उसने 90 रुपये वापस किये और मुस्कुराते हुए दूर जाने लगा …वह जिधर जा रहा था वहां अंधकार था, शायद सरकार के स्ट्रीट लाइट की रौशनी वहां तक नहीं पहुंचती होगी.
रात ढली और घर पहुंचा. खाना खाने के पश्चात, जब सोने की बारी आयी तो गर्मी का अनुभव हुआ, पंखा को 5 पर करके सोना पड़ा. रात ज्यों ज्यों ढली तो ठण्ड भी बढ़ने लगी, २ बजे के आस पास चादर शरीर पर जगह बना चुकी थी. 5 बजे नींद खुली तो देखा, पतली कम्बल ने भी मुझ पर अपना कब्ज़ा जमा लिया था. उठा तो ठण्ड थी. नहाने के लिए पानी को थोड़ा गुनगुना करना पड़ा. घर से निकला तो बाहर पार्क में घास पर ओस की बूंद पड़ी थी, मानो बारिश हुई हो रात में. 9 बजे थे, धुप तो निकल चुकी थी पर हवा के चलने से तपिश का एहसास न था. पर दो पहर के खाने के बाद, जब बाहर खुले में निकला, तो ग्लोबल वार्मिंग का प्रत्यक्ष आभास हुआ. सोचा की फूल शर्ट पहनना ही ठीक था. पीने का पानी तो ठंडी ही जच रही थी. पेड़ के अधिकांश पत्ते पीले पड़कर, उसका साथ छोड़ रहे थे. पर कुछ नए पत्ते शाखों पर दिख रहे थे, मानो पेड़ की उम्मीद अभी बची हो…..
इतनी विविधताएं, यह कौन सा मौसम है …..बसन्त 🙂
मुन्ना के जीवन में कभी कोई ऐसा समय आया होगा कि वह सोचे कि अभी कौन सा मौसम है?
emotionally nice.
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Thank you
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शायद सरकार के स्ट्रीट लाइट की रौशनी वहां तक नहीं पहुंचती होगी. …. सही बात भाई अभय जी , दिल दुःखता हे ऐसे छोटे बच्चों को कुछ बेचता देख कर , पर देखो उसमे कितना साहस हे आत्मविश्वास के साथ गरीबी से लड़ रहा है 😑,
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🙏
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बहुत दुःखद आज़ादी के सत्तर साल बाद भी , देश में यह स्थिति है 😢 अच्छे शब्दो में अभिव्यक्ति की है आपने 🙏🙏🙏🙏
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धन्यवाद अजय बाबू।
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🤗🤗🙏🙏🙏
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बहुत ही अच्छे से चित्रण किया है। आप और ज्योति जी अपने आसपास के घटनाओं का बहुत अच्छे से वर्णन करते हैं। पढकर बहुत अच्छा लगता है।
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धन्यवाद रजनी जी!
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Nice
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Thank you Rajat.
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Bhut ache
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Shukriya
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You created a mirror of words thru which a glimpse of India is very well reflected. It is a great and inspiring story. Congratulations.
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It’s not the glimpse of whole India, but certainly a major chunk is away from luxuries and some even from basic necessity .Thanks Pramod Ji for reaching where I wanted to reach the readers. I improvised on this write up, by connecting two unconnected events. Yet, there is a subtle connection. I am always pleased to get appreciation from you. Thanks, once again.
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Very touchy and your presentation is very nice. wish the dream of that boy comes true.
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Thanks Buddy.
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😢😢😢 बहुत खूबसूरती से वर्णन किया अभय..👍
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धन्यवाद Emotional Queen!
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