अपनी राह ..

 

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अपनी राह..

 

राहों को अपनी, मैं खुद ढूंढ लूंगा
बन पथप्रदर्शक तुम, मुझे न उलझाओ||

मेरे उम्मीदों को अब, पर जो लगें है
अपनी आसक्तियों की, न जाल बिछाओ||

कष्टों का पहाड़ सीधे सिर पर सहा है
राह के रोड़ों से तुम, मुझे न डराओ||

सच है जो कड़वा, मैंने खुद चख लिया है
उसपर झूठ की मीठी तुम, परत न चढ़ाओ||

मंज़िल है मुश्किल औ’ लंबा सफर है
जो बीच में हो जाना, शुरू से साथ न आओ||

ज्ञान की दीपक अब जो जली है
अपने आंसुओं से उसे न बुझाओ||

जाना जहाँ है, राहों में कांटे बिछे हैं||
मेरे लिए अभी फूलों की हार न लाओ||

निराश लोगों की लम्बी पंगत लगी है
सांत्वना भरे गीत तुम, उन्हें ही सुनाओ||

नम्रता में मैंने जीवन है जीया
मेरे खुद पे भरोसे को, मेरा अहम् न बताओ||

………..अभय…………

 

 

शब्द सहयोग: पथप्रदर्शक: Guide; पर: Wings; रोड़ों: Pebbles; आसक्ति: Attachment; पंगत: Queue,  Line ;

नम्रता : Humility ;  अहम् : Ego ; सांत्वना: Sympathy; Condolence, Console.

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37 thoughts on “अपनी राह ..”

  1. मजरूह सुलतानपुरी जी की चन्द पंतिया पेश करना चाहूंगा :
    मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
    लोग साथ आते गये और कारवां बनता गया |

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    1. धन्यवाद रजनी जी, क्षमा कीजिए मैं समझा नहीं कि यहाँ दूसरे की लेखनी का क्या अर्थ है?

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              1. हाँ थोड़ा थोड़ा पता है, और हमें आलोचना के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए ☺️

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                1. मेरा आलोचना सुधार के लिए और व्यंग्य हंसाने के लिए होता है वर्ना रामदेव बाबा के योगा के अलावा हंसी खुशी कम ही दिखती है। सही कहा न हमने।

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