क्यों तीर गिनना ?

नूतन वर्ष की शुभकामनायें मित्रों, आप सभी का यह नव वर्ष विक्रम सम्वत 2074 मंगलमय बीते. आज बैठे-बैठे अनायाश ही मन में एक प्रश्न आया कि संसाधन सफलता को सुनिश्चित करने में कितना बड़ा योगदान अदा करते हैं ? एक मित्र से चर्चा भी हुई. तदोपरांत कुछ पंक्ति ने पद्य का रूप लिया. बताइयेगा कि इस विचार में आपकी सहमति है कि नहीं ?

 

क्यों तीर गिनना ?

तरकश में जितने तीर नहीं है
शत्रु कहीं ज़्यादा खड़े हैं
संख्या बल पर दम्भ भरें वो
लहू के प्यासे बनें अड़े हैं

“वह” उनकी भीड़ से बेपरवाह
दृढ़ता से रणभूमि में खड़ा है
अपने दल पर है भरोसा
सामर्थ्य का उसे पता है

सच तो है कि
युद्ध में बस कुछ ही लड़ते हैं
शेष सब शोर मचाते
उनके बल आगे बढ़ते हैं

तो क्या हुआ कि तरकश में
जो तीर कम है
हरेक तीर से शिकार होगा
हर वार में शत्रुओं के नायकों का
चुन चुन कर संहार होगा

त्राहिमाम करेगी विरोधी सेना
विजय पताका नभ छुएगी
साधन बिना भी युद्ध जीतकर
उसकी सेना इतिहास रचेगी 

………..अभय ………..

 

 

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Pondicherry: A Short Trip

I had an opportunity to visit Pondicherry in mid January this year. One of my friend Abhishek, was staying there and studying at Pondicherry Central University. He had invited me to visit that place several times, but as this was his last year of academics in that varsity, so I finally decided to go.

Pondicherry was formally a French colony till 1962. When rest of the India was in British occupation, Pondicherry was an exception along with Goa, Daman etc. to name a few.

I landed in Chennai and from there it took another two and a half hour to reach Pondicherry. Though it was January, when rest of the Northern India was in the grip of the winter, days at that place especially in Chennai was hot. Eventually night was very pleasing in Pondicherry as the cold breeze from Bay of Bengal was blowing incessantly. I stayed there for 4 days and visited some Temple, Church, Aurobindo Ashrama, market places, Auroville, a nearby historic place called Mahabalipuram which is nearly 100 Kms from Pondicherry. But in evening I preferred to be in Gandhi beach and enjoyed the song of the waves when it came to meet the shore.

The trip was overall good and enriching, yet my last lap was adventurous. You must have heard that Jallikattu protest was in full swing in Tamlinadu in recent past month. The day when I had to return to Chennai, some political outfits has called complete shutdown of the state including transportation system. So virtually it became impossible to reach to Chennai Airport, yet through the grace of Lord I reached to the Chennai Airport just before boarding time. I came there by hitchhiking all along Pondicherry to Chennai. It’s a very interesting story, which, if I get time, will definitely love to write. Google Map came to my rescue at many occasions 🙂

If you are planning to have a visit in South India or especially in Chennai, do take out at least two days to visit Pondicherry. It’s beautiful. But don’t go in summer. I think November to January will be an ideal time to visit.

Sharing you some of the pictures, which I have taken from my Mobile Camera. Hope you will like them.

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Sunrise and A Trawler
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Other side of the Beach
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Sailing together even on turbulent waves, not only just when water is still & stagnant
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Gigantic Golden Globe. Got to know that people get inside the globe for meditation. Yet I missed it. 😦
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Many Roots of a single tree, Clicked in Auroville
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Shore Temple, Mahabalipuram.  Built in 700-728 AD by Pallav Dynasty. Architecture marvel
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Lord Shiva and Mother Uma inside the temple
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Lord Vishnu
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Guiding Lamp
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Bye Bye Chennai and finally Laut ke buddhu ghar ko aaye 😛

प्रतिस्पर्धा / Competition

आज दोपहर को खाने पर एक संबंधी के यहाँ जाना हुआ. सामान्यतः मुझे बाहर किसी के घर जाकर खाना, तबकी जबकि आप अकेले बुलाये गए हों, पसंद नहीं हैं . पर उनका काफी दिनों से आग्रह था तो मैं तैयार हो गया. उनके घर पहुँचा तो काफी खातिरदारी हुई. और खातिरदारी किसे अच्छी नहीं लगती.

उनके घर में बहुत सी बातें हुई. मेरे बारे में, घर के बारे में, मेरे प्रोफेशनल कैरियर के बारे में. मैंने भी कुछ कुछ बातें पूँछी. बात चीत के क्रम में यह पता चला की उनका लड़का रोहित इस बार ग्यारहवीं में गया है और हर माँ बाप की तरह उनको अपने बेटे के भविष्य की चिंता सता रही थी कि आगे जा के लड़का क्या करेगा.

उन्होंने बताया कि रोहित पढाई में औसत है, खेल में भी रूचि नहीं लेता और उसका कोई और शौक भी नहीं है. वे बोले कि हम यह नहीं चाहते कि रोहित सिर्फ पढाई करे बल्कि हम चाहते हैं कि उसको जो भी पसंद हो वो वही करे. अफ़सोस है कि वह अपनी रूचि जाहिर ही नहीं करता. जिससे की जीवन की दिशा तय करने में उन्हें परेशानी आ रही है . उन्होंने मुझसे आग्रह किया कि मैं उससे बात करूँ. शायद वह मुझे कुछ बताये.

मैंने बोला “ठीक है, मैं कोशिश करता हूँ कुछ बात करने की”. फिर बात-चीत के बाद हम खाने पर बैठ गए. वैसे सच कहूँ तो मुझे इसका इंतज़ार भी था, भूख जोरों की लग गयी थी और बातों  से पेट तो नहीं भरता ना. खाने में मेरी पसंदीदा शब्जी शाही पनीर, मशरूम, दाल मखनी, रोटी, पुलाव और अंत में मिठाई के दो-तीन प्रकार थे. खाना शानदार बना था. अंगुली चाट के खाने लायक. पर मैंने थोड़ी सभ्यता और शिष्टाचार का परिचय देते हुए अंगुली नहीं चाटी.

मैं और रोहित ने खाना साथ में खाया और खाने के पश्चात उसने मुझे अपने कमरे में आराम करने को कहा. सच कहूँ तो मैं भी उससे अकेले में ही बात करना चाहता था. उसका कमरा बहुत खूबसूरत था. अल्बर्ट आइंस्टीन की एक बड़ी सी तस्वीर जिसमे वह अपने जीभ को निकले हुए थे, दीवाल से लटक रहा था. एक तरफ की अलमारी साजो सज्जा के सामान से भरी पड़ी थी तो दूसरी ओर पुस्तकों, कॉमिक, नोवेल्स से भरी थी.

यद्यपि हमारे परिवार का सम्बन्ध काफी घनिष्ट है, पर मैं बहुत दिनों से उनके घर नहीं गया था. रोहित जब छोटा था तो मैं उसको बहुत समय अपने साथ रखता था., तब वह मेरे घर के बहुत करीब रहता था. और फिर मैं भी शहर से बाहर चला गया, तो उन लोगों से बातचीत और संपर्क न के बराबर ही थी.

आज क्रिकेट का मैच आ रहा था तो मैंने सोचा कि बात चीत शुरू करने का इससे अच्छा साधन भारत में और कुछ नहीं हो सकता. बात चीत से पता चला कि उसको कम उम्र के बावजूद क्रिकेट के बारे में बहुत कुछ पता था. फिर मैंने पढाई के सम्बन्ध में बातें भी की. मुझे वह बहुत प्रभावशाली लगा. मैंने उससे पूछा की आगे क्या करना चाहते हो?? उसने लपक कर जवाब दिया, “पापा ने आपसे पूछने को बोला क्या”?
मैं  हँसा और बोला “नहीं, नहीं बस यूँ ही पुँछ रहा हूँ, क्या पापा हमेशा ऐसे ही टार्चर (Torture) करते हैं ?”. उसने कहा “हाँ ऐसा ही समझिये, पर मैंने अभी सोचा नहीं है कि मुझे क्या करना हैं “. मैंने पूछा “क्रिकेट के बारे में इतनी बारीकी से जानकारी रखते हो तो क्या क्रिकेटर बनना चाहते हो”. उसने जवाब नकारात्मक में ही दिया. फिर वह स्वतः ही बोला “मुझे इंजीनियर बनना है.”

मैंने कहा “अरे वाह ! यह तो अच्छी बात है. तो फिर समस्या क्या है” उसने कहा “मैंने सुना है कि IIT- JEE की परीक्षा जो देश कि सर्वोत्तम इंजीनियरिंग संस्थान है उसमें कॉम्पटीशन  बहुत ज़्यादा और कठिन होता है. मुझे लगता है कि मैं उसको पास नहीं कर पाउँगा, पर यह भी बात सच है कि मैं उसके अलावा कहीं और नहीं पढ़ना चाहता.”

मैं समझ गया कि रोहित का उद्देश्य तो है और वह उसको पाने में सक्षम भी है पर परीक्षा में लाखों की संख्या में प्रतिभागी होते हैं और वह उससे जनित प्रतिस्पर्धा से डर रहा है. मुझे समस्या तो समझ आ गयी पर मैं उसको कैसे समझाऊँ, यह समझ नहीं आ रहा था.
तभी अचानक, उसके कमरे से कुल्फी वाले कि घंटी सुनाई दी. मैंने पूछा कि तुम कुल्फी खाओगे. हमारे शहर में गर्मी जोरदार और कुल्फी शानदार मिलती है. तो अगर आपको डॉक्टर ने मना न किया हो तो आप दोपहर में कुल्फी खाये बिना रह नहीं सकते.

Kulfi
Credit: Google Image

तो हम कमरे से बाहर निकल कर लॉन में आये और रोहित ने कुल्फी वाले को आवाज़ लगायी. वह हमारी तरफ बढ़ा. टन टन की घंटी हमारे करीब आ गयी और साथ करीब आया उसको बेचने वाला. उम्र रोहित के बराबर या एक दो साल छोटी ही होगी. रोहित ने कहा दो कुल्फी देना, और वह उसको देने में व्यस्त हो गया. मेरा ध्यान उसके पहनावे पर गया. उसके कमीज़ के एक कंधे का भाग की सिलाई खुली हुई थी शर्ट में नीचे से एक दो बटन खुलकर कहीं गिरे होंगे ऐसा प्रतीत हो रहा था, ध्यान उसके चप्पल पर गयी तो थोड़ी और हैरानी हुई, उसके दोनों पावों में अलग अलग चप्पलें थी, एक में लाल रंग का फ़ीता था दूसरे में नीले रंग का.

इसी बीच एक और लड़का आया. उसकी उम्र मेरी ही जितनी रही होगी, वही २५-२६ साल की. उसने कुल्फी वाले से कहा की कुल्फी बना के पीछे वाली सड़क में आना. उस कुल्फी वाले लड़के ने मना कर दिया और बोला “मैं नहीं आऊंगा”. मैं थोड़ा हैरान हो गया कि कोई भी दुकानदार अपने ग्राहक से इतनी खीजता से तो बात नहीं ही करता है. फिर उस लड़के ने कुल्फी वाले से कहा “बेटा, आना तो पड़ेगा ही” और कह कर चला गया. मुझे माजरा समझ नहीं आया. पर कुल्फी वाले की आंखे सहम सी गयी थी.
खैर उसने कुल्फी तैयार किया और हमे बढ़ा दी. मैंने दाम पूछा तो, उसने ५० रुपये बताये. इसी बीच रोहित अपने जेब से 50 का नोट निकल कर देने लगा. मैंने कहा “औकात में रहो बच्चे, बड़ा मैं तो मैं ही दूंगा”. वह हँसने लगा और मैंने उसे नोट बढ़ा दी.

हम लॉन में कुल्फी खाने लगे. कुल्फी शानदार थी. एक शानदार खाने के बाद एक लज़ीज कुल्फी और वो भी चिलचिलाती गर्मी में. मज़ा आ गया. हम दो चार बार से ज़्यादा नहीं खाये थे की अचानक बाहर से शोर गुल और अफ़रा तफरी की आवाज़ आने लगी. बाहर झांक कर देखा तो दो लड़के उस कुल्फी वाले बच्चे की धुनाई कर रहे थे. एक ने उसके गले को पकड़ा हुआ था और दूसरा उसके कुल्फी के बक्से को ज़मीन पर उलट दिया . कुल्फी का छोटा छोटा डिब्बा, जिसमे कुल्फी जमती है ज़मीन पर बिखर गयी . कोई डिब्बा हरे रंग का था, कोई लाल तो, कोई नीला. मैं दौड़ कर उसकी ओर भागा . मेरे पीछे रोहित.
मुझे आता देख दोनों लड़के भागने लगे उसमें से एक चिल्ला कर बोला “कल से दिखना मत” और वे नज़र से ओझल हो गए. कुल्फी वाला लड़का अपने ठेले के बगल में बैठ अपनी बिखरी हुई कुल्फी की तरफ देख कर रो रहा था. ऐसा लग रहा था मनो किसी के ख्वाब ज़मीन पर बिखर गए हों. रोहित और मैं कुल्फी के डिब्बे को एक एक कर उठा कर उसके ठेले में रख रहे थे. वह अब भी ज़मीन पर बैठा था मनो उसका पूरा मनोबल टूट कर बिखर गया हो.
मैंने उससे पूछा की “आखिर हुआ क्या, उन लड़कों ने तुम्हे क्यों मारा”? उसने अपने साहस को जुटा, अपने शर्ट के बाजु से आँख को पोछते हुए कहा “वो दोनों भी कुल्फी वाले हैं. मुझे मना किया था इस इलाके में आने से क्योंकि वो कहते हैं ये उनका इलाका है .मैं दूसरे मोहल्ले में गया था पर वहाँ बिक्री नहीं हुई. ठेला और ये बक्सा किराये पर लिया है. एक दिन का दोनों मिलाकर 100 रूपया. बिकेगा नहीं तो चुकाऊंगा कैसे. घर में माँ बीमार है, छोटी बहन का स्कूल फी है”. मैंने पूछा पापा क्या करते हैं? उसने कहा “दारू पीकर कहीं पड़े होंगे”. मैंने पूछा “अब  तुम क्या करोगे”. उसने बड़ी दृढ़ता से जवाब दिया “क्या करूँगा? यही करूँगा कि कल फिर इसी मोहल्ले में आऊंगा और यहीं कुल्फी बेचूँगा, देखता हूँ वो कितना मारते हैं.

मैं हैरान, हतप्रभ. इसी बीच मेरी नज़र रोहित पर पड़ी, उसकी आँखों से आंसू धरल्ले से निकल रहे थे. मुझसे नज़र मिलते ही उसका ह्रदय और भर आया और अपनी जेब में से 150 रुपये (जो शायद उसके पास उतने ही होंगे) निकाल कर कुल्फी वाले बच्चे की हाथ में थमा घर की ओर भागा. कुल्फी वाले बच्चे ने उस पैसे को रख लिया और मुझे धन्यवाद कहकर ठेला लेकर जाने लगा. वह ठेले की  घंटी को बजा बजा कर लोगों को सूचित कर रहा था कि कुल्फी वाला आया हैं, सिर्फ लोगों को सूचित ही नहीं उस घंटी की  आवाज़ में उन दोनों लड़कों को चुनौती भी थी कि वह लड़का डरने वाला नहीं हैं.

रोहित घर में, ठीक उसी के उम्र का कुल्फी वाला मेरी दूसरी ओर ठेला लेकर बढ़ रहा था. मैं बीच में खड़ा न आगे बढ़ पा रहा थे न पीछे जा पा रहा था. तभी रोहित घर से निकला. जाते समय उसकी आँखों में आँसू थे, पर अब उसका चेहरा मुस्कुरा रहा था. उसने कहा  “उस लड़के के कॉम्पटीशन   के आगे मेरा कॉम्पटीशन  तो कुछ भी नहीं हैं . मैं IIT -JEE की तैयारी करूँगा, पुरे मन लगा के. माँ पापा को आप बता दीजियेगा.”

हँसना मत भूलिये…. ;-)

the ETERNAL tryst

il Credit: Google se uthaya

हँसना मत भूलिये…. 😉

ख़त उछाला मैंने तेरे छत पर,
तेरे पिता के हाथ आयी
भरी दोपहरी में मानों
हो मेरी सामत आयी

टशन में था तेरे छत के नीचे
दोस्त मेरा बुलेट पर ड्राइवर था
बन्दुक लेकर निकला तेरा बापू
मानों आर्मी का स्नाइपर था

बन्दुक देख मैंने झट से बोला,
अबे भाग, जल्दी से बुलेट दौड़ा
नहीं तो कोई और बुलेट चल जाएगी
काला चश्मा लेदर का जैकेट
सारी टशन मिट्टी में मिल जाएगी

हद तो तब हो गयी
बुलेट जब दगा दे गयी
उसने किक लगाया , सेल्फ लगायी
फिर भी वह स्टार्ट न हो पायी

दोस्त को बोला
अबे भाग, 100 मीटर वाली दौड़ लगा
गाड़ी छोड़, पहले
अब अपनी अपनी जान बचा

दोस्त मेरा वजनदार था
भागने में बिलकुल लाचार था
मैं दौड़ता गया
हाय! वो पकड़ा गया

मैंने सोचा अभी दौड़ते ही जाना है
कुछ भी हो अभी तेरे बापू…

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मंज़िल मेरी ….

the ETERNAL tryst

img_20170119_080256 Clicked itin Bay of Bengal

मंज़िल मेरी ….

हूँ किस दिशा से आया,
जाना मुझे किधर है
हो मिलन जहाँ तेरा मेरा,
मंज़िल मेरी उधर है

आसमान से उतरी
और जब धरा पे ठहरी
अमावस की वो काली रात मानो
पूर्णमासी में हो बदली
कैसा अनुपम और मधुर
होता वो पहर है
हो मिलन जहाँ तेरा मेरा
मंज़िल मेरी उधर है

दूबों पर पड़ी ओस जैसी
हो तुम निर्मल
फूलों की पंखुड़ियों जैसी
हो तुम कोमल
मेरे मन से टकराती हर पल
तेरी यादों की लहर है
हो मिलन जहाँ तेरा मेरा
मंज़िल मेरी उधर है

नज़रों से होकर ओझल
जाने कहाँ भटकती
बिन देखे तुम्हें एक पल भी
साँसे मेरी अटकती
लौट चलो हैं जहाँ शहर मेरा
कि वहीं कहीं, तेरा भी तो घर है
हो मिलन जहाँ तेरा मेरा
मंज़िल मेरी उधर है

………अभय …………

Hello Friends, Once again I have given a try to translate my poem…

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मंजिल

मंजिल  

अकेले ही तुम निकल पड़े ,
कितनी दूर , कहाँ तक जाओगे ?
बैठोगे ज्यों किसी बरगद की छावों  में
मुझे याद कर जाओगे

मैं तेज नहीं चल सकती
मेरी कुछ मजबूरियां हैं
और यह भी सच है, जो मैं सह न सकुंगी
तेरे मेरे दरमियाँ, ये जो दूरिया हैं

कुछ पल ठहरते
तो मेरा भी साथ होता
सुनसान राहों में किसी अपने का
हाथों में हाथ होता

कोई शक नहीं तुम चल अकेले
अपनी मंज़िल को पाओगे
पर देख मुझे जो मुस्कान लबों पे तेरे आती थी
क्या उसे दुहरा पाओगे ?

…….अभय ……..

सुनहरा धागा …

आज विश्व काव्य दिवस है, मतलब #World Poetry Day. आप सभी को बधाई. आज मेरी लिखी कुछ पंक्तियाँ आपके समक्ष …..धागे को विश्वास या भरोसे से बदल कर देखिये और इस कविता में इसकी सटीकता को ढूंढिए  …

 

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Background Image Credit: Google Image.

क्यों माँ ?? ..:-)

छोटी बहन की व्यथा से आहत होकर, उसके लिए दिल से निकला सहानुभूति से भरा कुछ अल्फ़ाज़. उम्मीद ही नहीं अपितु दृढ विश्वास भी है कि बच्चों के बीच इस पोस्टर को लेकर जाऊंगा तो उनका नेता बनने से कोई रोक नहीं सकता और माताओं के बीच इसी पोस्टर को लेकर गया तो बेलन से सिर पर सींघ अपने आप उग आएंगे.

विषय पर आपकी तो सहमति है न ? 🙂

 

children

ललकार ….

नमस्ते दोस्तों, आज आप लोगों के लिए वीर रस की एक कविता. एकदम ताज़ी. मुझ तक पहुँचाना मत भूलिये  कि कैसी लगी

ललकार

सुनसान हर गलियां यहाँ की
स्वाभिमान सबका सो रहा
शेर पहन गीदड़ की खालें
झुण्ड में क्यों रो रहा
झुण्ड में क्यों रो रहा

चुनौतियों से लड़ने का साहस
क्यों क्षिन्न होता जा रहा
पराक्रम जाने आज क्यों
पल्लुओं के पीछे घर बना रहा
पल्लुओं के पीछे घर बना रहा

हथियार सब धरी पड़ी हैं
सजोसज्जा के काम आ रहा
युद्ध की ललकार सुनकर भी
वो शांति का पाठ पढ़ा रहा
शांति का पाठ पढ़ा रहा

पुरुषार्थी हो, तो साबित करो
लोग प्रमाण मांगते हैं
मस्तक ऊँचा करके जीने की
कीमत वही जानते है
जो खुद को पुरुषार्थी मानते हैं
खुद को पुरुषार्थी मानते हैं

…….अभय ……

 

 

गांव का एक और दिन

कभी कभी पीछे मुड़कर देखना अच्छा लगता है ……

the ETERNAL tryst

एक और यात्रा एक और कहानी. जीवन भी तो ऐसा ही है न? हर एक की अलग अलग कहानी। कुछ भविष्य तक टिक पाती है, कुछ इतिहास में समा जाती है. पर होती सबकी है. चलिए तर्क में न जाकर, यात्रा वृतांत सुनाता हूँ. तर्क नीरस होती है, घटनाएं रोचक.

वर्षों बाद अपने पैतृक गांव जाने का प्रयोजन बना. कुछ काम से ही, वहां से निकलने के बाद वर्ना गांव लौटता कौन है?
खैर मैं बहुत उत्साहित था. घर पहुंचा, तो हैरान हुआ. वातावरण पूरी तरह बदला हुआ सा था. सड़क पक्की, बिजली 20 घंटे, घरों के छत पर कभी खप्पड़  राज किया करती थी, अब अल्पसंख्यक हो गई है, सड़कों से बैलगाड़ी तो डायनासोर की तरह   विलुप्त हो गई है, साप्ताहिक हाट की जगह घर के पास ही सभी आवश्यक चीजों की दुकान जम गई थी. मोटर साइकिल जो इक्के दुक्के दिखते थे, अब बहुतायत उपलब्ध है.

सोचा गांव के आसपास का एक चक्कर…

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