नमस्कार मित्रों!!!
आशा है, आपका फागुन माह उत्साह में बीत रहा होगा. कल वर्डप्रेस से notification आया कि मेरे ब्लॉग पर followers की संख्या 200 के पार पहुँच गयी है, जानकार ख़ुशी हुई. जो सारा खेल दो तीन महीने पहले शुरू हुआ था अब आप सब लोगों द्वारा सराहा जा रहा है. प्रोत्साहन किसे अच्छा नहीं लगता! आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद..आशीष बनाये रखें..
ब्लॉग लिखने का सबसे अच्छा पहलु मुझे यह लगा कि इसकी पहुँच वैसे लोगों तक भी होती है जिन्हें आप पहले से जानते नहीं है और फिर जो response मिलता है, वह unbiased और straight forward होता है. कई बार response मजेदार भी होते हैं. ऐसा ही एक response आपसे साझा करता हूँ. एक ने कहा (नाम नहीं लूंगा, क्योंकि वह भी पढ़ेगा और privacy सबको पसंद है 😛 ) कि ” भाई आपकी कविताओं में विरह का भाव बहुत ज़्यादा रहता है, कभी प्रेम पर भी लिखिए”. मैंने अपने ब्लॉग पर प्रकशित कविताओं के संग्रह को वापस मुड़कर देखा. पाया कि कुछ कवितायेँ जैसे मॉनसून और मैं, मैं और तुम, विरह गीत, धीरज … में यह भाव तो था, पर मुझे यह लगता है कि विरह और प्रेम की कविता को आप अलग करके नहीं देख सकते, क्या देख सकते हैं?
खैर छोड़िये, मैंने उस बंधु को वादा किया था कि मेरी अगली कविता में आपकी मांग को पूरा करने का प्रयास करूँगा, तो आज कि कविता आप सबके समक्ष प्रस्तुत है . होली सप्ताह भर दूर है , सो मैंने सोचा कि उसके परिवेश को ही चुना जाए.. आप सभी पढ़िए और मुझ तक पहुँचाना मत भूलिये कि कैसी लगी….

अल्हड़ होली
रंग जो तुम्हें पसंद हो
मैं वही रंग ले आऊंगा
फिर तुम्हारे गालों पर
धीरे से उसे लगाऊंगा
पेड़ों की पत्तियों से
हरा रंग मिल जाएगी
सूरज में जो छुपी है लाली
वह भी बाहरआएगी
काँटों की परवाह नहीं है
गुलाबी गुलाल समां में छाएगी
और इससे भी जो मन न भरा तो
इंद्रधनुष धरा पर आएगी
यह मत कहना कि इस दफे
नहीं खेलनी होली है
सखियों बीच , बच न सकोगी इस बार तुम
कहीं बड़ी मेरी टोली है
अगर छुपी जो तुम किसी कमरे में तो
थोड़ी अव्यवस्था सह लेना
और हो सके तो एक नए दरवाजे की
पहले से ही व्यवस्था कर लेना :-p
बेहतर यही होगा कि
पहले से ही होली को तैयार रहो
रंग भरी पिचकारी रखो और
मुट्ठी में गुलाल भरो
नोक झोक और तकरार रहेगी
रंग गुलाल उड़ेंगे
प्यार की भी फुहार बहेगी
खेलेंगे हम ऐसी होली
जो वर्षों तक याद रहेगी
………अभय……..
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