आम का टिकोला

 

aam
Credit: Internet 

आम का टिकोला

 

आज घर लौटते वक़्त

आम का एक टिकोला

सीधे आकर सिर पर गिरा

 

याद है मुझे , बचपन में

न जाने कितने पत्थर

उन टिकोलों को

तोड़ने के लिए उछाले होंगे,

और एक भी अगर टूट कर गिर जाये

तो ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता था.

 

पर आज खुद से गिरे टिकोलों को छोड़

ख़ुशी को कहीं और तलाशने के लिए आगे बढ़ा,

वह ख़ुशी वहीं जमीन पर पड़ी रही…..

 

नोट: टिकोले को कई जगह हिंदी में कैरी भी कहते हैं , मेरे ग्रामीण परिवेश में टिकोले के नाम से ही जाना जाता है

17 thoughts on “आम का टिकोला”

  1. आपकी कविता -आम का एक टिकोला , ने तो बचपन में लौटा दिया. क्या बेपरवाह खूबसुरत दिन थे वे.

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