जब कुत्ते पीछे पड़ते हैं :-P

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तो कल शाम मुझे जैसे ही मेरे छोटे भाई का फ़ोन आया कि मुझे उसे लेने को स्टेशन जाना होगा, मैं थोड़ा सकपकाया. वजह भी आपको बता दूँ. मेरे घर से रेलवे स्टेशन की दूरी ज्यादा नहीं है, वही दो से ढाई किलोमीटर होगी और न ही मुझे रात से डर लगता हैं. फिर आप सोच रहे होंगे की आखिर वजह क्या थी? वजह थे कुत्ते.

मुझको बताने में रत्ती भर भी शर्म नहीं आती कि मुझे आवारा कुत्तों से डर लगता है. जब वो झुण्ड बना के जोरदार आवाज़ में भों- भों कर भौंकते हुए पीछे पड़ते हैं, तो सच में मैं हिल जाता हूँ तथा प्रार्थना और दौड़ स्वाभाविक हो जाती है.

जब भाई ने कहा कि उसकी ट्रेन रात 2:30 बजे आने वाली है, मैंने कहा “सुबह नहीं आ सकते थे”. वह समझ गया कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ, और वो हंस के बोला आप मत आइएगा, मैं खुद कैब कर आ जाऊंगा. पर उसे भी पता था कि पापा या तो खुद आएंगे या मुझे भेजेंगे. मैंने कहा रहने दो अकेले आने की जरुरत नहीं है, मैं आ जाऊंगा.

दूरी ज्यादा नहीं हैं, पर मेरे घर से स्टेशन के बीच में एक बाजार पड़ता हैं, वही इलाका बहुत खतरनाक हैं. खतरनाक इसलिए कि वहां कुत्ते बहुतायत होते हैं और रात में तो मानो उनका एकक्षत्र राज चलता हैं. हालिया दिनों में मैंने अनुभव किया कि आवारा कुत्तों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है. मानो जैसे  भारत की जनसंख्या विस्फोट में वे पुरजोड़ तरीके से सहयोग कर रहे हैं.

मेरे कुत्तों से डर की वजह का भी इतिहास रहा है, और इतिहास लंबे समय में ही बनता है. तो ऐसा समझिये कि मेरा और कुत्तों के बीच का संघर्ष  बचपन से चला आ रहा हैं. न जाने कितनी बार मैंने दौड़ लगायी होगी, अब तो गिनती भी याद नहीं, पर एक बात है कि कुत्ते एक बार भी काट नहीं पाए. हर बार मैं जीता. गिर-पड़ के ही सही हर बार मैं बचा और यदि कोई सिनेमा निर्देशक मेरी हरेक दौड़ और उससे जनित परिस्थिति पर फिल्म बनाये तो वह “भाग मिल्खा भाग” से ज्यादा रोमांचित और जोश भरने वाली होगी.

खैर छोड़िये, रात ढली और और ज्यों ज्यों समय नजदीक आया तो मैंने पापा से पूछा कि एक बात बताइये कि जब कुत्ता भौंके तो क्या करना चाहिए. वे हँस पड़े और बोले रहने दो मैं ले आऊंगा उसको. माँ भी हँसी रोक न पायी. मैं तुरंत अपनी बचाव में उतरा और बोला ऐसा नहीं हैं कि मैं कुत्ते से डरता हूँ, बस यूँ ही पूछ रहा हूँ, बचाव तो जरुरी हैं न. इस कथन ने मानो उत्प्रेरक (Catalyst) का काम किया हो. दोनों और जोड़ से हँसे. पापा बोले जब कुत्ता भौंके तो अपनी जगह पर रुक जाना चाहिए और धीरे-धीरे आगे निकलना चाहिए, कुत्ते खुद ही चले जायेंगे . मैं लपक कर बोला आप क्या बोल रहे हैं?? कुत्ते की ध्वनि कान के परदे और मन के साहस को झकझोरने वाली होती है, अगर मैं रुकुंगा तो वे काट नहीं लेंगे? वे बोले एक बार रुक कर देखना. मैंने बोला ऐसा कभी नहीं होगा, वो काट ही खाएंगे. वे फिर बोले कि चलो कोई बात नहीं तुम चिंता मत करो सो जाओ मैं ले आऊंगा. मैंने किसी तरह उनको मनाया कि आप सो जाइये मैं ही ले आऊंगा.अब तो इज़्ज़त की भी बात थी.

जब उन्हें भरोसा हो पाया कि मैं सच में जाऊंगा तो वे सोने चले गए और मैं अपने को युद्ध के लिए मानसिक तौर पर तैयार करने में लग गया.

तब वह समय भी आ गया, मैंने अपनी बाइक निकली और युद्ध भूमि की ओर कूच किया.जैसे ही बाजार के पास पहुँचा, हुआ वही जिसकी आशंका थी. 5-6 नहीं बल्कि कम से कम 10-15 कुत्ते पीछे पड़ गए, सिर्फ पीछे ही नहीं बल्कि अगल- बगल और कुछ तो आगे आगे भी दौड़ रहे थे. चारो तरफ सुनसान था. किसी से उम्मीद भी न थी, मैंने अपने पैर को गियर और ब्रेक से हटा ऊपर कर लिया जिससे कि कुत्ते काट न ले.

हद्द तो तब हो गयी जब झुण्ड में से एक कुत्ता बिलकुल गाड़ी के नीचे ही आने वाला था. कुछ भी हो सकता था, मैं गाड़ी से गिर सकता था या उसको इस जनम से मुक्ति मिल जाती. अब मुझे गुस्सा आ रहा था. अनायास ही मैंने गाड़ी रोकने का फैसला किया और सोचा कि देखते हैं कि आखिर ये दौड़ते क्यों हैं मुझे? पर उसके बाद जो हुआ मेरे लिए सुखद आश्चर्य से कम था.

पापा से पहले भी यह सिद्धान्त कि “कुत्ता दौड़ाये तो भागना नहीं चाहिए”, कई बार सुना था और जितनी बार भी सुना हर बार इसकी भर्त्सना मैंने की. पर आज प्रत्यक्ष अनुभव कर रहा था. सभी कुत्ते आस पास रुक गए थे , कोई भी मेरी तरफ आगे नहीं आ रहा था, पर हाँ उनका भौकना बंद नहीं हुआ था. मैंने यह देख धीरे धीरे गाड़ी आगे बढ़ाना शुरू किया, वो अब भी भौंक रहे थे पर आगे नहीं बढ़ रहे थे. धीरे धीरे मैं स्टेशन तक पहुँच ही गया. सिर्फ स्टेशन तक ही नहीं पहुँचा बल्कि एक और लक्ष्य की भी प्राप्ति हुई . मैं आपको कह दूँ की इस घटना के पश्चात कुत्तों से मेरा डर लगभग खत्म हो गया.

घटना ने मुझे बहुत प्रभावित किया. अक्सर हम ज़िन्दगी में किसी न किसी परेशानी से घिरे होते हैं. और कई बार तो किसी परेशानी का डर मन में इस कदर घर कर गया होता है कि हम जीना भूलकर उस परेशानी के बारे में ही सोचते रह जाते है. डर का सामना सामने से करना चाहिए, सफल हुए तो वह जड़ से खत्म हो जाती है. जब कोई संकट से हम भयभीत होकर बचते हैं, तो अक्सर हम पाते हैं कि किसी न किसी रूप में वह वापस आ जाती है. मुझे लगा कि हमें उनसे भागना नहीं चाहिए, पर खड़े होकर, दृढ़ता के साथ, डट कर मुकाबला करना चाहिए. क्योंकि डर में जीना कोई अच्छी बात तो है नहीं ..

38 thoughts on “जब कुत्ते पीछे पड़ते हैं :-P”

  1. Dogs have a propensity to go after those on who they can smell fear. If you stand your ground, they generally don’t bite you. I’m saying generally. I had great fun reading this post. Next time, please remember to be fearless 🙂

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      1. मैं लगभग सबकी पोस्ट्स पढ़ता हूँ मगर कुछ लोग दिल छूने वाली बातें लिखते हैं तो कमेंट अपने आप हो जाता है फिर 😀

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        1. अरे भाई,मेरे लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। स्नेह बनाये रखें ☺️

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    1. अरे अजय जी क्या बताऊँ, ये जो प्रजाति है न, मैं कहीं भी रहूँ मुझे पहचान ही लेती हैं। क्या गांव क्या शहर 😜😜

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  2. आपने बहुत अच्छा लिखा है अपने साथ घटित घटना को। वैसे मुझे भी एक बार बंदरों के झुंड ने घेरा था लेकिन आप के पिता जी के कहे अनुसार ही मैंने निडरता के साथ प्यार से हैंडल किया था जिससे बच गई। आज वो दृश्य फिर आंखों के सामने आ गया।

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    1. धन्यवाद रजनी जी, पर यह fiction category में थी। ☺️
      लेखक के लिए इससे खुशी की बात हो नहीं सकती कि पाठक खुद से जोड़ पाये।

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      1. Sorry Abhay ji jo maine aapko category wise comment n kar saki. Vase mujhe jyada kuch aata nahi hai mujhe achchi kitabe padhna aur likhna meri hobby hai bachcho ki jid se word press par agyi bas. Wase padhne oar sikhne ki koi age nahi hoti hai. Aasa lagta hai mujhe bhi kewal like ka batan hi dabana padega aap ko follow karne ke liye. Jab take sikh n lu tab tak.

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        1. अरे नही रजनी जी, मेरा fiction से मतलब यह था कि यह घटना थोड़ी सच और थोड़ी मेरी कल्पना की उपज थी। मैंने ब्लॉग के शुरू में fiction category बताया था।
          आपके comments का मुझे हमेशा इन्तज़ार रहता है और हमेशा स्वागत योग्य है। लाइक से ज्यादा comments अच्छा है क्योंकि उससे पाठकों के मनोभाव समझने में आसानी होती है।
          Wordpress पर बने रहिये। मजेदार स्थान है।

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  3. हाहाहा सही लिखा अभय बिल्कुल, पढ़ कर मजा आया 😀
    हमारी गली में भी आजकल 2 कुत्तो ने कहर मचा रखा है, रोज कुत्तो के भोंकने के साथ किसी के चिल्लाते हुए दौड़ लगाने की आवाज आ ही जाती है। 😀

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    1. हा हा ☺️
      भारत में आप किसी भी शहर या गांव में क्यों न रहो, यह दृश्य काफी आम है।

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  4. Acha likha hai ,,,, abhay hahaha ,,,,पता है मुझे कुत्तों से डर नहीं लगता था पहले मेरी दोस्त को लगता था बहुत मैं उसको देखकर हंस रही थी पर ,पता नहीं कुछ दिनों से कुत्ते मेरे पीछे पड़ने लग गये है समझ नहीं आता ऐसा क्यों !! मेरे साथ हॉल ही ऐसा हुआ कि कुत्ता काटने को आरा था पर मुझे पता नही चला और कुत्ते का मालिक ज्यादा डरा हुआ था कहीं मुझे और मेरी बहन को काट ना लिया हो dog ने । वहां सब हंस रहे थे ।Popet हो गया था हमारा तो 👌👌😜😜😜

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    1. धन्यवाद श्रुति,
      चलो इस ब्लॉग को लिखने के बाद यह तो पता चला कि कुत्तों से डरने वाली फेहरिस्त में और भी कई लोग हैं ☺️😜

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  5. अभय , बड़े मजेदार ढंग से तुमने अपने डर और उसे जीतने का वर्णन किया है. स्वामी विवेकानंद को भी किसी ने वही सीख दिया था जो आपके पापा ने आपको दिया –
    डरो नहीँ , सामना करो .

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