कभी कभी पीछे मुड़कर देखना अच्छा लगता है ……
एक और यात्रा एक और कहानी. जीवन भी तो ऐसा ही है न? हर एक की अलग अलग कहानी। कुछ भविष्य तक टिक पाती है, कुछ इतिहास में समा जाती है. पर होती सबकी है. चलिए तर्क में न जाकर, यात्रा वृतांत सुनाता हूँ. तर्क नीरस होती है, घटनाएं रोचक.
वर्षों बाद अपने पैतृक गांव जाने का प्रयोजन बना. कुछ काम से ही, वहां से निकलने के बाद वर्ना गांव लौटता कौन है?
खैर मैं बहुत उत्साहित था. घर पहुंचा, तो हैरान हुआ. वातावरण पूरी तरह बदला हुआ सा था. सड़क पक्की, बिजली 20 घंटे, घरों के छत पर कभी खप्पड़ राज किया करती थी, अब अल्पसंख्यक हो गई है, सड़कों से बैलगाड़ी तो डायनासोर की तरह विलुप्त हो गई है, साप्ताहिक हाट की जगह घर के पास ही सभी आवश्यक चीजों की दुकान जम गई थी. मोटर साइकिल जो इक्के दुक्के दिखते थे, अब बहुतायत उपलब्ध है.
सोचा गांव के आसपास का एक चक्कर…
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वाह अभय जी अच्छा वर्णन किया है आपने ,बहुत सुँदर👍👍👍👌👌
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पहले का ही लिखा था, आज re-blog किया. धन्यवाद ☺️
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जी ,पता है मेने पढ़ा था काफी पहले ये , 🙏🤗🙏
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आपका आभार अजय जी 🙏
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