नमस्ते दोस्तों, आज आप लोगों के लिए वीर रस की एक कविता. एकदम ताज़ी. मुझ तक पहुँचाना मत भूलिये कि कैसी लगी
ललकार
सुनसान हर गलियां यहाँ की
स्वाभिमान सबका सो रहा
शेर पहन गीदड़ की खालें
झुण्ड में क्यों रो रहा
झुण्ड में क्यों रो रहा
चुनौतियों से लड़ने का साहस
क्यों क्षिन्न होता जा रहा
पराक्रम जाने आज क्यों
पल्लुओं के पीछे घर बना रहा
पल्लुओं के पीछे घर बना रहा
हथियार सब धरी पड़ी हैं
सजोसज्जा के काम आ रहा
युद्ध की ललकार सुनकर भी
वो शांति का पाठ पढ़ा रहा
शांति का पाठ पढ़ा रहा
पुरुषार्थी हो, तो साबित करो
लोग प्रमाण मांगते हैं
मस्तक ऊँचा करके जीने की
कीमत वही जानते है
जो खुद को पुरुषार्थी मानते हैं
खुद को पुरुषार्थी मानते हैं
…….अभय ……
सुनसान हर गलियां यहाँ की
स्वाभिमान सबका सो रहा
शेर पहन गीदड़ की खालें
झुण्ड में क्यों रो रहा
बहूत ही गज़ब का जोश संचारित करती कविता
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Thank you Mukanshu ji, apke protsahan bhare shabdon ke liye shukriya.
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🙏🙏✍✍
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जानदार , शानदार , लाजबाब , इससे ज्यादा मेरे पास शब्द नही है 👌👌👌
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आह, ये काफी हैं, मैं खुश हुआ 🙏😁
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मन तो बहुत कर रहा है पर क्या करूँ,, दिल की गहराई को छूती हुई श्रेठ रचना 🤗🤗🤗🤗🤗🤗
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जय जय ☺️
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Wonderful Abhay👏👏👏
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Thank you Shivee😇
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😇😇😇
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☺️
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Amazing.. Just amazing 😊
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☺️ Thank you Veronica.
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Abhay it’s wonderful poem
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Thank you Ranjeeta ji for your kind words. ☺️
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बहुत ही अच्छा लिखा है आपने अभय जी।
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रजनी जी धन्यवाद 🙏
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Bahut khoob
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Thank you 🙏
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वाह ! बहुत खूब 👌👌
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वैभव जी, प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद ☺️
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Bhut khoob.
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Dhanyavad Mitra 🙏
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Jhakjhor dene vali kavita. Well written.
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Dhanyavad Girija ji, pleased to know that you felt in that way. 🙏
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Good one !!
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शुक्रिया ☺️
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पढा तो पहले भी था लेकिन ये ललकार कविता का अर्थ वाकई वीर रस का संचार कर रहा है। एक बात कहूँगी अभय जी लिखते समय भले ही ज्ञान न हो पर कभी कभी यही कविता भविष्यवाणी बनकर प्रेरणा के स़ोत बन जाते हैं।
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शुक्रिया आपके प्रोत्साहन भरे शब्दों के लिए
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