आज दोपहर को खाने पर एक संबंधी के यहाँ जाना हुआ. सामान्यतः मुझे बाहर किसी के घर जाकर खाना, तबकी जबकि आप अकेले बुलाये गए हों, पसंद नहीं हैं . पर उनका काफी दिनों से आग्रह था तो मैं तैयार हो गया. उनके घर पहुँचा तो काफी खातिरदारी हुई. और खातिरदारी किसे अच्छी नहीं लगती.
उनके घर में बहुत सी बातें हुई. मेरे बारे में, घर के बारे में, मेरे प्रोफेशनल कैरियर के बारे में. मैंने भी कुछ कुछ बातें पूँछी. बात चीत के क्रम में यह पता चला की उनका लड़का रोहित इस बार ग्यारहवीं में गया है और हर माँ बाप की तरह उनको अपने बेटे के भविष्य की चिंता सता रही थी कि आगे जा के लड़का क्या करेगा.
उन्होंने बताया कि रोहित पढाई में औसत है, खेल में भी रूचि नहीं लेता और उसका कोई और शौक भी नहीं है. वे बोले कि हम यह नहीं चाहते कि रोहित सिर्फ पढाई करे बल्कि हम चाहते हैं कि उसको जो भी पसंद हो वो वही करे. अफ़सोस है कि वह अपनी रूचि जाहिर ही नहीं करता. जिससे की जीवन की दिशा तय करने में उन्हें परेशानी आ रही है . उन्होंने मुझसे आग्रह किया कि मैं उससे बात करूँ. शायद वह मुझे कुछ बताये.
मैंने बोला “ठीक है, मैं कोशिश करता हूँ कुछ बात करने की”. फिर बात-चीत के बाद हम खाने पर बैठ गए. वैसे सच कहूँ तो मुझे इसका इंतज़ार भी था, भूख जोरों की लग गयी थी और बातों से पेट तो नहीं भरता ना. खाने में मेरी पसंदीदा शब्जी शाही पनीर, मशरूम, दाल मखनी, रोटी, पुलाव और अंत में मिठाई के दो-तीन प्रकार थे. खाना शानदार बना था. अंगुली चाट के खाने लायक. पर मैंने थोड़ी सभ्यता और शिष्टाचार का परिचय देते हुए अंगुली नहीं चाटी.
मैं और रोहित ने खाना साथ में खाया और खाने के पश्चात उसने मुझे अपने कमरे में आराम करने को कहा. सच कहूँ तो मैं भी उससे अकेले में ही बात करना चाहता था. उसका कमरा बहुत खूबसूरत था. अल्बर्ट आइंस्टीन की एक बड़ी सी तस्वीर जिसमे वह अपने जीभ को निकले हुए थे, दीवाल से लटक रहा था. एक तरफ की अलमारी साजो सज्जा के सामान से भरी पड़ी थी तो दूसरी ओर पुस्तकों, कॉमिक, नोवेल्स से भरी थी.
यद्यपि हमारे परिवार का सम्बन्ध काफी घनिष्ट है, पर मैं बहुत दिनों से उनके घर नहीं गया था. रोहित जब छोटा था तो मैं उसको बहुत समय अपने साथ रखता था., तब वह मेरे घर के बहुत करीब रहता था. और फिर मैं भी शहर से बाहर चला गया, तो उन लोगों से बातचीत और संपर्क न के बराबर ही थी.
आज क्रिकेट का मैच आ रहा था तो मैंने सोचा कि बात चीत शुरू करने का इससे अच्छा साधन भारत में और कुछ नहीं हो सकता. बात चीत से पता चला कि उसको कम उम्र के बावजूद क्रिकेट के बारे में बहुत कुछ पता था. फिर मैंने पढाई के सम्बन्ध में बातें भी की. मुझे वह बहुत प्रभावशाली लगा. मैंने उससे पूछा की आगे क्या करना चाहते हो?? उसने लपक कर जवाब दिया, “पापा ने आपसे पूछने को बोला क्या”?
मैं हँसा और बोला “नहीं, नहीं बस यूँ ही पुँछ रहा हूँ, क्या पापा हमेशा ऐसे ही टार्चर (Torture) करते हैं ?”. उसने कहा “हाँ ऐसा ही समझिये, पर मैंने अभी सोचा नहीं है कि मुझे क्या करना हैं “. मैंने पूछा “क्रिकेट के बारे में इतनी बारीकी से जानकारी रखते हो तो क्या क्रिकेटर बनना चाहते हो”. उसने जवाब नकारात्मक में ही दिया. फिर वह स्वतः ही बोला “मुझे इंजीनियर बनना है.”
मैंने कहा “अरे वाह ! यह तो अच्छी बात है. तो फिर समस्या क्या है” उसने कहा “मैंने सुना है कि IIT- JEE की परीक्षा जो देश कि सर्वोत्तम इंजीनियरिंग संस्थान है उसमें कॉम्पटीशन बहुत ज़्यादा और कठिन होता है. मुझे लगता है कि मैं उसको पास नहीं कर पाउँगा, पर यह भी बात सच है कि मैं उसके अलावा कहीं और नहीं पढ़ना चाहता.”
मैं समझ गया कि रोहित का उद्देश्य तो है और वह उसको पाने में सक्षम भी है पर परीक्षा में लाखों की संख्या में प्रतिभागी होते हैं और वह उससे जनित प्रतिस्पर्धा से डर रहा है. मुझे समस्या तो समझ आ गयी पर मैं उसको कैसे समझाऊँ, यह समझ नहीं आ रहा था.
तभी अचानक, उसके कमरे से कुल्फी वाले कि घंटी सुनाई दी. मैंने पूछा कि तुम कुल्फी खाओगे. हमारे शहर में गर्मी जोरदार और कुल्फी शानदार मिलती है. तो अगर आपको डॉक्टर ने मना न किया हो तो आप दोपहर में कुल्फी खाये बिना रह नहीं सकते.

तो हम कमरे से बाहर निकल कर लॉन में आये और रोहित ने कुल्फी वाले को आवाज़ लगायी. वह हमारी तरफ बढ़ा. टन टन की घंटी हमारे करीब आ गयी और साथ करीब आया उसको बेचने वाला. उम्र रोहित के बराबर या एक दो साल छोटी ही होगी. रोहित ने कहा दो कुल्फी देना, और वह उसको देने में व्यस्त हो गया. मेरा ध्यान उसके पहनावे पर गया. उसके कमीज़ के एक कंधे का भाग की सिलाई खुली हुई थी शर्ट में नीचे से एक दो बटन खुलकर कहीं गिरे होंगे ऐसा प्रतीत हो रहा था, ध्यान उसके चप्पल पर गयी तो थोड़ी और हैरानी हुई, उसके दोनों पावों में अलग अलग चप्पलें थी, एक में लाल रंग का फ़ीता था दूसरे में नीले रंग का.
इसी बीच एक और लड़का आया. उसकी उम्र मेरी ही जितनी रही होगी, वही २५-२६ साल की. उसने कुल्फी वाले से कहा की कुल्फी बना के पीछे वाली सड़क में आना. उस कुल्फी वाले लड़के ने मना कर दिया और बोला “मैं नहीं आऊंगा”. मैं थोड़ा हैरान हो गया कि कोई भी दुकानदार अपने ग्राहक से इतनी खीजता से तो बात नहीं ही करता है. फिर उस लड़के ने कुल्फी वाले से कहा “बेटा, आना तो पड़ेगा ही” और कह कर चला गया. मुझे माजरा समझ नहीं आया. पर कुल्फी वाले की आंखे सहम सी गयी थी.
खैर उसने कुल्फी तैयार किया और हमे बढ़ा दी. मैंने दाम पूछा तो, उसने ५० रुपये बताये. इसी बीच रोहित अपने जेब से 50 का नोट निकल कर देने लगा. मैंने कहा “औकात में रहो बच्चे, बड़ा मैं तो मैं ही दूंगा”. वह हँसने लगा और मैंने उसे नोट बढ़ा दी.
हम लॉन में कुल्फी खाने लगे. कुल्फी शानदार थी. एक शानदार खाने के बाद एक लज़ीज कुल्फी और वो भी चिलचिलाती गर्मी में. मज़ा आ गया. हम दो चार बार से ज़्यादा नहीं खाये थे की अचानक बाहर से शोर गुल और अफ़रा तफरी की आवाज़ आने लगी. बाहर झांक कर देखा तो दो लड़के उस कुल्फी वाले बच्चे की धुनाई कर रहे थे. एक ने उसके गले को पकड़ा हुआ था और दूसरा उसके कुल्फी के बक्से को ज़मीन पर उलट दिया . कुल्फी का छोटा छोटा डिब्बा, जिसमे कुल्फी जमती है ज़मीन पर बिखर गयी . कोई डिब्बा हरे रंग का था, कोई लाल तो, कोई नीला. मैं दौड़ कर उसकी ओर भागा . मेरे पीछे रोहित.
मुझे आता देख दोनों लड़के भागने लगे उसमें से एक चिल्ला कर बोला “कल से दिखना मत” और वे नज़र से ओझल हो गए. कुल्फी वाला लड़का अपने ठेले के बगल में बैठ अपनी बिखरी हुई कुल्फी की तरफ देख कर रो रहा था. ऐसा लग रहा था मनो किसी के ख्वाब ज़मीन पर बिखर गए हों. रोहित और मैं कुल्फी के डिब्बे को एक एक कर उठा कर उसके ठेले में रख रहे थे. वह अब भी ज़मीन पर बैठा था मनो उसका पूरा मनोबल टूट कर बिखर गया हो.
मैंने उससे पूछा की “आखिर हुआ क्या, उन लड़कों ने तुम्हे क्यों मारा”? उसने अपने साहस को जुटा, अपने शर्ट के बाजु से आँख को पोछते हुए कहा “वो दोनों भी कुल्फी वाले हैं. मुझे मना किया था इस इलाके में आने से क्योंकि वो कहते हैं ये उनका इलाका है .मैं दूसरे मोहल्ले में गया था पर वहाँ बिक्री नहीं हुई. ठेला और ये बक्सा किराये पर लिया है. एक दिन का दोनों मिलाकर 100 रूपया. बिकेगा नहीं तो चुकाऊंगा कैसे. घर में माँ बीमार है, छोटी बहन का स्कूल फी है”. मैंने पूछा पापा क्या करते हैं? उसने कहा “दारू पीकर कहीं पड़े होंगे”. मैंने पूछा “अब तुम क्या करोगे”. उसने बड़ी दृढ़ता से जवाब दिया “क्या करूँगा? यही करूँगा कि कल फिर इसी मोहल्ले में आऊंगा और यहीं कुल्फी बेचूँगा, देखता हूँ वो कितना मारते हैं.
मैं हैरान, हतप्रभ. इसी बीच मेरी नज़र रोहित पर पड़ी, उसकी आँखों से आंसू धरल्ले से निकल रहे थे. मुझसे नज़र मिलते ही उसका ह्रदय और भर आया और अपनी जेब में से 150 रुपये (जो शायद उसके पास उतने ही होंगे) निकाल कर कुल्फी वाले बच्चे की हाथ में थमा घर की ओर भागा. कुल्फी वाले बच्चे ने उस पैसे को रख लिया और मुझे धन्यवाद कहकर ठेला लेकर जाने लगा. वह ठेले की घंटी को बजा बजा कर लोगों को सूचित कर रहा था कि कुल्फी वाला आया हैं, सिर्फ लोगों को सूचित ही नहीं उस घंटी की आवाज़ में उन दोनों लड़कों को चुनौती भी थी कि वह लड़का डरने वाला नहीं हैं.
रोहित घर में, ठीक उसी के उम्र का कुल्फी वाला मेरी दूसरी ओर ठेला लेकर बढ़ रहा था. मैं बीच में खड़ा न आगे बढ़ पा रहा थे न पीछे जा पा रहा था. तभी रोहित घर से निकला. जाते समय उसकी आँखों में आँसू थे, पर अब उसका चेहरा मुस्कुरा रहा था. उसने कहा “उस लड़के के कॉम्पटीशन के आगे मेरा कॉम्पटीशन तो कुछ भी नहीं हैं . मैं IIT -JEE की तैयारी करूँगा, पुरे मन लगा के. माँ पापा को आप बता दीजियेगा.”
वाह अभय जी क्या लिखा है ….बेहतरीन
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वैसे रोहित की तरह ही सभी लोग कही न कही
प्रतिस्पर्धा से डरते है पर उस कुल्फी वाले सी हिम्मत कोई कोई ही जुटा पाता है
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जी मुकांशु जी, सहमत हूँ मैं।
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🙏🙏😊
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Masterpiece, loved it.
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Thank you Puri Sir. Always pleasure to have an appreciation from you.
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Interesting….the picture is so tempting 🙂
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Indeed it is ☺️
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A beautiful short story
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Shukriya Monika☺️
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अभय जी , एक घटना से हम भी सबक ले सकते हैं , कम्पटीशन हर जगह हे हर क्षेत्र में हे आपकी बजह से रोहित को सही दिशा मिली 👍
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मेरी नहीं, कुल्फी वाले की वजह से. वैसे मैंने पहले ही लिख दिया है की यह फिक्शन केटेगरी में लिखा गया लेख है 🙂 पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह थोड़ा लंबा हो चला था
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जी 😊
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🙏🙏
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Wow, am speechless after reading the story. Loved it. Thanks for sharing.
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Well, its the figment of my imagination, a phantom 🙂 Thank you for reading the post.
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It’s so inspirational.😊👍
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Thanks once again.
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अच्छी सीख
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शुक्रिया अशोक जी ☺️
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सचमुच में प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा है हमें कभी पीछे नहीं हटना चाहिए…
Good motivational story…👍
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Thank you Amit Ji.
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wah …. behtareen….. haar ke aage jeet hai.
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Ji bilkul. Dhanyavad ☺️
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This was so good, among the best pieces from you👍👏Nice moral and a brilliant read!💕😇👍
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Thank you Shivee for your ever encouraging words. Feedbacks are quintessential for improvement. I am happy that you always contributes in my posts. 😇😇
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Aww… Thank you so much, I think as a reader I should give the most genuine feedback possible !Truly your posts are so wonderful😇Pleasure always! 😇👍
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☺️
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दिल को छू लेने वाली कहानी!
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शुक्रिया शिवांगी जी☺️
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