वो पल …..

वो पल  …..

वो पल फिर से आया है
जब चाँद धरा पर छाया है
भँवरों ने गुन गुन कर के
आकर तुम्हें  जगाया है

बारिश की बूंदें छम छम कर
तन को देखो भींगो रही
ठंडी बसंती हवा चली
भीगे तन को फिर से सुखा रही
कोयल बैठ बगीचे में
स्वागत गीत है सुना रही

निकलो घर से, बहार देखो
कितने मोर नाचते आये हैं
कोयल की राग से कदम मिलाते
सतरंगी पंख फैलाएं हैं

बसंत का मौसम मानो
आकर यहीं है रुक गया
आम से लदा पेड़ मानो जैसे
तेरे लिए ही  है झुक गया

 

…………अभय………….

 

29 thoughts on “वो पल …..”

  1. waah ……..kyaa baat……..itnaa par bhi prem naa jage to kab jagegaa……………
    देख प्रकृति जगा रहा, सोया है इंसान,
    वारिश की बूंदों में लिपटा,सारा ये जहां,
    मोर, पपीहा, कोयल, गाये,
    मानो स्वागत गीत सुनाये,
    बहरा है या मृत पड़ा है कैसा है नादान,
    देख प्रकृति जगा रहा, सोया है इंसान,

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      1. हा हा हा ,अभय जी बस कभी कभी थोड़ा क्या ज्यादा लेट हो जाता हूँ , जब बाहर जाना होता है तब , मेरे लिए तो नई समझो मेने अभी देखी 😊😊

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              1. मजेदार तो नही है काम चलाऊ भेजा है , दो पंक्ति फेमस हो चली थी पता नही किसने लिखी बाकी की मेने कोशिश की है कुछ लिखने की ☺

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  2. वाह !! क्या खूब लिखा है. अब नाचते मोर कम ही दिखते है. पर आपकी कविता ने वह दृश्य भी बना दिया.

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    1. ☺️☺️ जो वास्तविकता में न हो कवि कल्पना से साकार कर सकता है, वैसे अपने को मैं कवि नहीं कह रहा 😊
      आभार

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      1. आप कवि नही है. पर कल्पना तो साकार कर दिया आपने यानि कवि बन गये. 😊😊

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