वो पल …..
वो पल फिर से आया है
जब चाँद धरा पर छाया है
भँवरों ने गुन गुन कर के
आकर तुम्हें जगाया है
बारिश की बूंदें छम छम कर
तन को देखो भींगो रही
ठंडी बसंती हवा चली
भीगे तन को फिर से सुखा रही
कोयल बैठ बगीचे में
स्वागत गीत है सुना रही
निकलो घर से, बहार देखो
कितने मोर नाचते आये हैं
कोयल की राग से कदम मिलाते
सतरंगी पंख फैलाएं हैं
बसंत का मौसम मानो
आकर यहीं है रुक गया
आम से लदा पेड़ मानो जैसे
तेरे लिए ही है झुक गया
…………अभय………….
Khoobsurat
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शुक्रिया रोहित जी ☺️
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🙏🏻🙏🏻
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आपकी आज की कविता में नयापन था ☺️. Keep improvising
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Ha actually bht din se comedy try krna chahata tha 😜 glad u noted it 😇 bas aap log k comment h jo hime improve krte h
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Waaah
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शुक्रिया 😊
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वाह
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☺️
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waah umda
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शुक्रिया रवीश जी
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waah ……..kyaa baat……..itnaa par bhi prem naa jage to kab jagegaa……………
देख प्रकृति जगा रहा, सोया है इंसान,
वारिश की बूंदों में लिपटा,सारा ये जहां,
मोर, पपीहा, कोयल, गाये,
मानो स्वागत गीत सुनाये,
बहरा है या मृत पड़ा है कैसा है नादान,
देख प्रकृति जगा रहा, सोया है इंसान,
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Waah Janab, bahut hi achha likha aapne..
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Very nice.
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Thank you 🙂
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This is really great!❤Beautiful❤❤❄
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Thanks Shivee ☺️
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शानदार 😊😊😊👍👌
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कहांँ रहते हैं जनाब, यह रचना पुरानी हो चली थी 😀
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हा हा हा ,अभय जी बस कभी कभी थोड़ा क्या ज्यादा लेट हो जाता हूँ , जब बाहर जाना होता है तब , मेरे लिए तो नई समझो मेने अभी देखी 😊😊
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ऐसे नहीं चलेगा, स्मार्ट फोन सब जगह साथ जाता है 😜
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हा हा सही बात है जी आपकी , आगे से ऐसा नही होगा 👍
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चलिए कुछ मजेदार लिखिए और साझा कीजिए 😀
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मजेदार तो नही है काम चलाऊ भेजा है , दो पंक्ति फेमस हो चली थी पता नही किसने लिखी बाकी की मेने कोशिश की है कुछ लिखने की ☺
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देखा मैंने, कमेंट देखिए ☺️
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वाह !! क्या खूब लिखा है. अब नाचते मोर कम ही दिखते है. पर आपकी कविता ने वह दृश्य भी बना दिया.
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☺️☺️ जो वास्तविकता में न हो कवि कल्पना से साकार कर सकता है, वैसे अपने को मैं कवि नहीं कह रहा 😊
आभार
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आप कवि नही है. पर कल्पना तो साकार कर दिया आपने यानि कवि बन गये. 😊😊
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☺️🙏
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