धीरज …

the ETERNAL tryst

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धीरज …

मुस्कुराते क्यों नहीं
क्या कोई जख़्म बड़ा गहरा है
या आज लबों पर तेरे
किसी गैर का पहरा है?

खोयी तेरी निगाहें
क्यों उतरा तेरा चेहरा है
तेरी आँखों में पानी
किसी झील सा ठहरा है!

साँसे क्यों बेचैन सी
क्यों नींद तेरी उजड़ी है
लेकर किसी का नाम शायद
कई रातें तेरी गुज़री है!

धीरज रखो कि,
जो सावन है बीत गया
वापस फिर से आएगा
ख्वाब थे जो बिखरे से
फिर से उन्हें सजायेगा
जब वापस वो आएगा…..

……..अभय……..

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15 thoughts on “धीरज …”

  1. क्या बात………..मुस्कुराते क्यों नहीं
    क्या कोई जख़्म बड़ा गहरा है…………बहुत खूब——— वैसे कितना जानता है कोई मेरे बारे में जो मुश्कुराने पर भी पूछता है इतनी उदासी क्यों है—–।

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    1. शुक्रिया मधुसूदन जी, मैं न मुस्कुराने वालों से प्रश्न पूछ रहा हूँ 😜

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      1. हाँ अभय जी पढ़ा —-दर्द का एहसास भी हुआ, तभी मैंने लिखा —–की तब कैसा होता जब कोई कुछ पल भर के साथ में ही मुश्कुराने पर पूछता तू इतना उदास क्यों है—–

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          1. उदास चेहरे को देख कोई इतने बिचार प्रकट कर सकता है कोई खास ही होगा—–भले ही हमने नहीं जाना——काश: मुश्कुराने पर भी कोई पूछता—-उदासी का कारण—- किसका पहरा है। साहब कविता दिल को छू गयी है तरह तरह के विचार आ रहें हैं—–जो हो सकता है मेल न खाता हो—–।

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