अँधेरा दिन

हुए दूर हम जब से तब से
खोया मेरा सवेरा है
रातें अँधेरी होती सबकी
यहाँ दिन भी हुआ अँधेरा है

आलम यह है कि
बेचैन हूँ मैं,
पर किसी से कह नहीं रहा
यादों का महल
जर्जर हो चला है
पर अब भी यह, ढह नहीं रहा

पलकों तले सैलाब समेटे
हँसते चले जाते हैं
रास्ता नया आता है
मंज़िल वहीं रह जाती है
………अभय ……..

26 thoughts on “अँधेरा दिन”

  1. Very beautiful lines…

    यादों का जर्जर
    महल हो चला है
    पर अब भी यह, ढह नहीं रहा

    पलकों तले सैलाब समेटे
    हँसते चले जाते हैं
    रास्ता नया आता है
    मंज़िल वहीं रह जाती है

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  2. I think being human we all are experts in hiding emotions..and at last get lost in the self created myriad of our unexpressed feelings..

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    1. मधुसूदन जी आप कहांँ थे, आपकी प्रतिक्रिया का मुझे इंतजार था 😀
      शुक्रिया 🙏

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      1. हमें पता था…….धन्यवाद ……लगाव ऐसी की कहते हैं, परंतु अभी हम साले की शादी में काफी ब्यस्त हैं ……..फिर भी खुद को रोक नहीं पाये—–बहुत अच्छा ही लिखा है—-हर एक लाईन में जान है

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