घोसला ..

आज मन थोड़ा उदास है. सामान्य दृष्टि से देखें तो इसका कारण कोई विशेष और व्यापक नहीं है. हुआ यूँ कि घर में निर्णय लिया गया कि घर का विस्तार किया जायेगा, ऊंचाई बढ़ाई जाएगी . इसकी आवश्यकता भी महसूस हो रही थी, सिर्फ इसलिए नहीं कि हमारा परिवार संयुक्त है पर इससे बड़ा कारण कि घर के आस पास भी लोगों का घर ऊँचा हो रहा है. दुनियाँ दिखावटी है, और हम भी इसके अपवाद नहीं हैं.

मैं इसलिए उदास नहीं कि घर का विस्तार हो रहा है, बल्कि मेरे बगीचे में लगे अमरूद के पेड़ को काटे जाने की बात हो रही है. वह पेड़ इंजीनियर द्वारा दिए गए प्लान में फिट नहीं बैठ रहा है, उसका कहना है कि शहर में जगह की बहुत किल्लत है और यह पेड़ अनावश्यक जगह घेरे हुए है. मेरे पापा जी भी इस बात से सहमत हैं और उनका निर्णय ही अंतिम और सर्वमान्य है.

 

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 Representative Image, Credit: Google

पर चुकी मैं पर्यावरण संरक्षण और पेड़ लगाने  की बात हरेक प्लेटफार्म से करता हूँ तो मुझे थोड़ा अफ़सोस हो रहा है. पर पर्यावरण संरक्षण से ज़्यादा मुझे दुःख इसलिए है कि इस पेड़ से मेरा भावनात्मक लगाव सा हो गया है. और इस लगाव का अनुभव मुझे तब हुआ जब इसको काटने की बात सुनी. कई बार जीवन में ऐसा ही तो होता है न कि किसी चीज की  महत्ता उसके जाने के समय या जाने कि बाद ही समझ आती है.

यह पेड़ बहुत पुराना है. बचपन में मैं इस पेड़ पर चढ़कर अमरुद तोड़ा करता था और अब भी अमरुद वाले मौसम में सिर्फ मेरे परिवार के लोग ही नहीं अड़ोसी पड़ोसी भी तोड़ते हैं . मुझे यह भी याद है कि इसकी एक शाख पर एक झूला भी हुआ करता था. शाम को स्कूल के बाद तो आस पास के बच्चों का मेला सा लग जाता था. और सिर्फ बच्चों का ही नहीं, बड़े लोग भी इसकी छांव में राजनीती और  क्रिकेट के गप्पे लगाया करते थे. इस पेड़ ने नेचुरल अलार्म का भी काम किया, आप सोच रहेंगे कैसे? तो होता यूँ है कि इसपर सुबह सुबह कुछेक पक्षी आकर चहचहाना शुरू कर देते हैं और गर्मी के दिनों में वह आपकी नींद तोड़ने के लिए काफी है. पर मुझे इसका अफ़सोस कभी नहीं रहा क्योंकि मुझे सवेरे उठना पसंद है. इसपर कई बार मैं लाल चोंच वाले तोते भी देखे, मैना भी देखा. पर कौओं ने अपनी संख्या सबसे ज़्यादा होती थी.

इस पेड़ पर एक घोसला भी है, पर अब यह यहाँ नहीं रहेगा. मनुष्य का घोसला ज्यादा जरूरी है, उस घोसले का बड़ा होना भी आवश्यक है. चिड़ियों का क्या है, वो तो उड़ सकती हैं कहीं भी घोसला बना सकती हैं, उनको ईंट, गिट्टी, बालू और सीमेंट भी नहीं खरीदनी होती, तो वो तो मैनेज कर ही लेंगे.  पर्यावरण का क्या है, सिर्फ एक पेड़ काटने से ग्लोबल वार्मिंग पर क्या असर होगा? अमरूद के फल का क्या है, बाजार में मिल ही जायेगा, अलार्म की चिंता भी कहाँ है हमारे पास मोबाइल है घडी है और जहाँ तक झूले की बात है वो तो टेरेस पर लगा ही सकती हैं और उससे कहीं अच्छी  😦

मैंने घर में अपनी बात किसी से नहीं कहीं, और कहता भी तो कुछ होने वाला नहीं था. पेड़ का जीवन है ही ऐसा, पत्थर मारो वो फल ही देंगे, कुल्हाड़ी से काटो जलावन, फर्नीचर को लकड़ी देंगे, CO2 लेंगे और प्राणवायु देंगे, और पूरी तरह निपटा दो तो वह जगह देंगे……

37 thoughts on “घोसला ..”

  1. हमारी आवश्यकताएं हमारी पहचान ,लगाव और प्रेम को दूर धकेलते जा रही है——क्या कभी हम रुकेंगे या प्रकृति हमें रोकेगी देखे क्या होता है। वैसे उस अमरुद को भी आपसे बहुत प्रेम है —–आप एक अमरुद खा लेंगे उसे तसल्ली मिल जाएगा—–परंतु हम तो उसे उखाड़ ही फेकेंगे। और भी बहुत कुछ आपने लिखा है—/-लाजवाब—–

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  2. Reading this post took me back to rich literature of hindi which we used to read in school.
    You write in a very impressive language!
    एक एक कर न जाने कितने पेड़ कट गए
    हमारी तृष्णा तो न घटी पर ठंडे साए घट गए

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    1. Hi Meenakshi! Thanks for the kind words. Hindi Literature is very rich, yet the influence of English seems to have a disastrous implications on Hindi, in a way that my ordinary writing makes you feel an impressive one. ☺️
      I somehow felt an emotional connect with the subject and words automatically came. Your last two lines summarized the whole story. Thank you!

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  3. Reading this post took me back to rich literature of hindi which we used to read in school.
    You write in a very impressive language!
    एक एक कर न जाने कितने पेड़ कट गए
    हमारी तृष्णा तो न घटी पर ठंडे साए घट गए

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  4. आपकी बेबाकी से अपनी बात कहने का अंदाज अच्छा लगा। पर क्या किया जाये? कांक्रीट के जंगल अौर नीङ के निर्माण के झगङे में जीत तो जग जाहिर है। हाँ, आप कुछ नये पेङ लगा कर अपनी guilt या दुखः कुछ कम कर सकते हैं।

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    1. शुक्रिया रेखा जी! एक आम का पौधा लगाया था अपने गांव में, अब वह बड़ा हो गया है, संतोष होता है देखकर

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  5. आपकी ये रचना बहुत अंदर तक झकझोरती है कि आज हम अपने दिखावे के लिए जीवन दाता पेड़ों को काट रहे हैं
    हाँ हमारे भी पड़ोस में अमरूद का पेड़ था जहां से हम सारे बच्चे चुरा के अमरूद खाते थे फिर हमारे घर में भी एक पेड़ लगाया गया उसपे फल भी आते थे मगर जाने क्या हुआ दीमक ने उसे खोखला कर दिया अब नीम के पेड़ हैं जो छाया भी देते हैं और ऑक्सीजन भी 🙏😀

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  6. It is relatable how we feel helpless at times.There are so many incidents that happen around leaving us feel guilty like people wasting water,cutting trees as you mentioned above.We all need to throw light on such subjects for maybe if we cannot save resources owing to circumstances,maybe others can.

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    1. शुक्रिया, सामान्य भाषा ही आती है! धन्यवाद कि आपको पसंद आया!

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  7. उम्मीद ये ही करता हूँ की अमरुद के पेड़ की जगह जिस भी चीज़ का निर्माण होता है वो आपके जीवन मे नयी और सुनहरी यादे लाये |

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    1. हाँ सब इसी उम्मीद से पेड़ काटते हैं! शुक्रिया! वैसे आप बहुत दिनों बाद मेरे पोस्ट पर visit किये ☺️
      बहुत कुछ लिखा इस बीच में! आपकी प्रतिक्रिया का हमें इंतजार था 😀

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      1. कुछ दिनों का ब्रेक ले लिया, कुछ दिन आराम किया और कुछ दिन दूसरी नावेल लिखने मे समय लगाया | धीरे-धीरे आपके लेख पढ़ने की कोशिश करूँगा |

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        1. वैसे मुझे आपके पोस्ट बहुत पसंद हैं, छोटा सा होता है, पर बड़ा प्रभावशाली!

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  8. ये अमरुद का पेड़ नहीं ये दरसल आपके जीवन का हिस्सा है। शायद इसलिये भी अपने अंग कटने जैसा है।

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