जीत-हार

जीत-हार

हार के कगार पे

बैठे जो मन हार के

आगे कुछ दिखता नहीं

अश्रु धार थमता  नहीं

शत्रु जो सब कुछ लूट गया

स्वजनों का संग भी छूट गया

ह्रदय वेदना से भरी हुई जो

खुद की बोझ भी सहती नहीं वो

याद रहे हरदम

ज़िंदा हो अभी , मरे न तुम

वह कल भी था बीत गया 

यह पल भी बीत जाएगा

एक संघर्ष में हार से

युद्ध हारा नहीं कहलायेगा

सत्य धर्म के मार्ग चलो

हार से तुम किंचित  न डरो

सत्य धर्म जहाँ  होता है

वहीं जनार्दन होते हैं

जहाँ जनार्दन होते है

वहीं विजयश्री पग धोती है

……अभय…..

31 thoughts on “जीत-हार”

  1. सत्य कहा–बेहतरीन लिखा आपने–सत्य धर्म जहाँ  होता है
    वहीं जनार्दन होते हैं
    जहाँ जनार्दन होते है
    वहीं विजयश्री पग धोती है….लाजवाब।

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  2. सत्य वचन | जहाँ जनार्दन होते है, वहीं विजयश्री पग धोती है |

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    1. हाँ, आजकल लोगों के पास समय भी कम है, शुक्रिया कि आपको अच्छा लगा!

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