इस कविता के “मैं” को, आप खुद से भी बदल कर देख सकते हैं . मुझ तक पहुँचाना न भूलिए कि कैसी लगी.
मैं जैसा हूँ, मुझे वैसे देखो
अपने-अपने चश्मे हटाओ ,
पूर्वाग्रह को दूर बिठाओ ,
फिर अपने स्वार्थ को तुम फेंको
मैं जैसा हूँ मुझे वैसे देखो !!!
कोई समझता मित्र मुझे,
कोई समझता बैरी है ,
कोई ढूंढता प्रेम है मुझमें ,
कोई समझता मुझे, नफरत की ढेरी है !!!
कोई चाहता हर पल उनके ,
प्रलय तक मैं संग निभाऊं
किसी की ख्वाहिश है फिर कभी अब,
उनके जीवन में, मैं न कोई रंग लगाऊं!!!
कोई कहता है जीवन में जो खुशियाँ है उसका ,
कारण भी मैं हूँ और सृष्टा भी मैं ही
फिर किसी को है लगता, जीवन में है अवसाद जितने
मैं ने ही बनाया, मैंने ही बसाया!!!
किसी को है मेरी, चुप्पी खटकती
किसी को झकझोरता है, मेरा बोलना
किसी के लिए बंद पुस्तक सही मैं
किसी को पसंद मेरा मन का खोलना!!!
जिसने मुझमें जो-जो ढूंढा ,
उसने मुझमें वो-वो पाया ,
पर मेरा नित्य स्वरुप है क्या?
शायद , किसी को अब तक समझ न आया
और सच कहूँ, तो शायद मुझे भी नहीं!!!
……..अभय ……….
शब्द सहयोग
पूर्वाग्रह: Prejudice
क्या बात अभय जी —-दिल की बात बोल गए—
सच मैं कौन,
हिन्दू या मुसलमान,
जात-पात में बंधे या,
इससे परे इंसान—
सच में आज तक ना समझ पाया,
क्या है मेरी पहचान–
बहुत अच्छा–
मैं जैसा हूँ वैसा ही देखो
मत दो मेरा तुम कोई पहचान।
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शुक्रिया मधुसूदन जी, आपने इसको नया अमली जामा पहना दिया ☺️
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अपनी अपनी सोंच—–ऊपर की दोनों लाईन दिल को छू गयी—-स्वागत आपका।
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“किसी को है मेरी, चुप्पी खटकती
किसी को झकझोरता है, मेरा बोलना”……yeh lines👏….nice poetry
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शुक्रिया pal ☺️
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☺
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Wah bhai wah
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Thank you Rohit Ji.
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🙏🏻🙏🏻
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🙏
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खूबसूरत👌👌
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धन्यवाद समीर!
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बहुत खूब
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शुक्रिया 🙏
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अपने आप को प्रस्तुत करने का सही तरीका प्रस्तुत किया है आपने ! कोई न समझे पर सब समझेंगे जरूर
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धन्यवाद!!
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सुस्वागत
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शुक्रिया तनु!
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Par Mera nitya swaroop Kya Hai? Such a powerful question. Sometimes we start moulding our personality to suit others likes and dislikes , that we forget our own identity. Very pertinent question posed Abhay!
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The question came to me, I just try to give it a lyric. Pleased to know that you liked it.
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बहुत खूब
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शुक्रिया 😃
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bahut khub purwagrah ek bimari hai or jyadatar log is bimai ke sikar hai
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Shukriya😊
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वो तो आप भी मौजूद हो गये।
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तो आपने शब्दों के माध्यम से मुझे बिमारी से नवाजा गया था। खैर छोडिये ये मसला हल हो चूका है। इस पर टीका टिप्पणी करना बेकार है।
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अद्भुत कविता👏👏
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शुक्रिया, अच्छा लगा कि आपको पसंद आया 😊
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गजब…सच में बेहद खूबसूरत!!👌👌
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Thank you Jyoti, where were you these days? 😀
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Hectic Schedule Dear…Nothing Else!
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Well, good then.
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Bohot khoob..👏
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Thank you ☺️
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कभी बात कही होती है और कविता कहीं लिख जाती है। ये मात्र संयोग कैसे?
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हा हा, प्रेरणा तो कहीं से लेनी होगी ना☺️
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मेरा कल किसी से कमेंट के द्वारा बहसचल रही थी तो उन्होंने पूर्वाग्रह शब्दों का जिक्र किया और आपका ब्लॉग पढा तो कविता लिख गई है वाह भाई वाह क्या संयोग है। वैसे कविता आप की बहुत अच्छी है।
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शुक्रिया रजनी जी! 😊
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वैसे सृष्टा से सृजन करता से अर्थ है तो स में नीचे र की मात्रा रहेगा जैसे प्र से रवाना लिखने के लिए
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*स में र की मात्रा लगाने के लिए समझ में नहीं आ रहा है।
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रवाना गलती से हो गया है यहाँ र की मात्रा से अर्थ है।
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It is so honestly presented that “it is your own way of looking at someone, which forms his image.”
It’s just amazing.
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Exactly. Thank you Bhavika. ☺️
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Nicely worded
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Thank you 😀
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खूब ,बहुत खूब!
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शुक्रिया नितिन जी☺️
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