नाव में छेद / Hole in the boat

At many occasions, I have experienced and also heard from different people that they are willing to move forward, yet they find it difficult in doing so due to some past failure, some memories which remains only in imagination, some unpleasant happenings in their life etc etc.

These impediments just work as a drag in their forward march. Yesterday I was discussing this subject with one of my friend. In doing so, few lines came to me and I am presenting it in public domain for your scrutiny and contemplation. I have termed the topic as “Hole in the Boat”. Do let me know your views.. 🙂

 

नाव में छेद 

धारा के विपरीत जाने से
न मैं कभी घबराता हूँ
हवा के वेग और दिशा को भी
चपलता से मैं भांप जाता हूँ

मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि
हैआज सिंधु कितनी वीरान 
या आगे मेरा बाट जोहता
 है कोई समुद्री तूफ़ान

पर मुझे बस एक बात का डर है
एक बात की खेद है
मेरी नाव को जर्जर करती
इसमें एक छोटी सी छेद है

मैं जितनी तेजी से पतवार चलता हूँ
उतनी ही तेजी से इसमें जल भर आती है
फिर मेरी आधी शक्ति और समय भी
इसे खाली करने में लग जाती है

मैं यात्रा में कुछ दूर ही जा पाता हूँ
फिर वापस प्रस्थान बिंदु पर आता हूँ
अपनी यात्रा फिर से शुरू करने को
मैं विवश हो जाता हूँ

………अभय ……..

37 thoughts on “नाव में छेद / Hole in the boat”

  1. अभय जी लिखते कमाल है। दिन पर दिन लेखनी शब्दों का खेल खेलकर निखार ला रही है। वैसे अभय जी अजय जी का पता नहीं चल पाया रहा है। उनका ब्लॉग खोला तो 22 अप्रैल के बाद कोई कविता या रचना पोस्ट नहीं हुआ है और न ही जितने लोगों को फॉलो करते हैं उन पर ही कोई लाइक या कमेन्ट है। जबकि फालो करने के लिए वो सबसे ज्यादा एक्टिव थे। मैं तो ब्लॉग पर बहुत बाद में आई हूँ आप लोग तो पहले से जानते थे एक दूसरे को। आप तो मेरी उनके साथ भी बहस हुई थी जानते ही हैं पर बहस हो ते हुए भी ब्लॉग पर आप लोगों के साथ भावानात्मक लगाव सा हो गया है इस लिए फिक्र हो रही है की क्या बात हो सकती है।

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      1. अभय जी समय मिले तो मैंने ब्लॉग पर कुछ नया लिखने की कोशिश की है। मेरी लिखने की शैली कैसी जरूर अवगत करायें। आप की पकड़ अच्छी है जो मैंने लिखना शुरू किया है उसमें सहयोग की जरूरत है। मैं अभारी रहूँगी। नये फालो अर्से बढ़ रहे हैं। आपने तो मेरा ब्लॉग पढना छोड़ ही दिया है। समयाभाव है या मेरी लेखनी अच्छी नहीं।

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        1. नहीं आप अच्छा लिखती हैं, मैं समय मिलने से आपकी भी रचना पढ़ता हूँ और लाइक भी करता हूँ

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          1. इस कमेंट के बाद मेरे ब्लॉग पर रिस्पॉन्स नहीं मिला। पहले अजय जी अब आप अभय जी। फिक्र होने लगती है। आप लोग ब्लॉग पर एक्टिव रहने वाले व्यक्ति हैं। इस लिए ऐसा कहा।

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      1. अभय जी कुछ मैं भी आपसे प्रेरणा लेकर लिख दूँ ओ आपको ही समर्पित होगी। बहुत अच्छा लगा।

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          1. Safar Jindagi Ka
            aapko Samarpit
            मुशाफिर मैं समंदर का,समंदर मेरी जान है,
            लहरों से टकराकर बनी मेरी अब पहचान है,
            लड़ना ही जन्दगी है,नहीं डरता मिट जाने से,
            पर बिबस,ठिठकता हूँ बीच समंदर जाने से |

            ओ दूर चिढ़ाता तूफ़ान बेबस खड़ा मैं देखता,
            क्या कहें कैसी मज़बूरी,क्या मेरी लाचारी है,
            छोटी छेदवाली नौका मेरी जर्जर -पुरानी है|

            काश मेरी नौका में छोटे-छोटे छेद ना होते,
            सागर क्या फिर मैं तूफ़ान से टकरा जाता,
            हिम्मत है क्या उस तूफ़ान को दिखा जाता,
            जानता हूँ छोटा भी छेद जहाज डूबा देती है,
            परन्तु डर भी इंसान को कायर बना देती है|

            बस वापस लौट लौटकर मैं भी थक चुका हूँ,
            बहुत हुआ बिबसता को पीछे छोड़ चुका हूँ,
            एकलब्य बिना द्रोण ही जज्बा दिखाया था,
            अभिमन्यु बिना रथ सूरमाओं को नचाया था,
            चालीस मराठी भी इसी नौके के सामान ही थे,
            जो चालीस हजार मुगलों के छक्के छुड़ाया था|

            ऐ लहरों मत इठला हाथ में अभी भी पतवार है,
            माना नौका में छेद मगर, मुझमें अभी जान है,
            आ दिखा अपनी हिम्मत आ रहा मैं टकराने को,
            लहरों से टकराकर ही बनी मेरी अब पहचान है |

            !!! मधुसूदन !!!

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            1. अरे वाह वाह वाह!
              आपकी रचना मूल कृत से भी श्रेष्ठ है ☺️

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