वो रास्ता..

contemplation
Credit: Internet

वो रास्ता..

सच्चाईयों से मुँह फेरकर,

मुझपर तुम हँसते गए

दल-दल राह चुनी तुमने, 

और गर्त तक धसते गए


खुद पर वश नहीं था तुम्हें ,

गैरों की प्रवाह में बहते गए

जाल बुनी थी मेरे लिए ही,

और खुद ही तुम फँसते गए


नमी सोखकर मेरे ही जमीं की,

गैरों की भूमि पर बरसते रहे

सतरंगी इंद्रधनुष कब खिले गगन में,

उस पल को अब हम तरसते रहे

……….अभय ………..

43 thoughts on “वो रास्ता..”

    1. हाँ, रचना के क्रम में यह पंक्ति लिखकर मुझे भी हर्ष हुआ! धन्यवाद मधुसूदन जी 🙏

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  1. बहुत ही अच्छा लिखा है। हर लाइन अपने आप में बेहतर है। मुझे तो समझ में नहीं आ रहा किस लाइन की तारीफ करूँ किस को छोड़ू। कुछ मिलाकर आपके कविता का भाव बहुत अच्छा लगा।
    वैसे अभय जी केवल लाइक से मेरी रचनाओं के लिए काम नहीं चलने वाला। तारीफ के काबिल है कि नहीं पता नहीं आलोचना भी कर सकते हैं।

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    1. शुक्रिया 😊
      मैं कोशिश करूंगा कि आपकी लेखनी पर प्रतिक्रिया कर सकूँ! 🙏

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  2. Very beautiful..

    Zindagi ka dastoor Kuch aisa he Hai, sang rehte humare parwah karte doosron ki Hai. Zameen par khila gulab ka paudha hota zameen see juda par phool hota kisi air ka.
    Aaj Kal ke rishte bhi Kuch aise he Hai, jab tak mile humse kuch to hota humse juda warna hokar kisi aur ka humko chod Chala..

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  3. ठीक लिखा है आपने. कहते भी है – दूसरो के लिये खोदे गड्डे में लोग खुद गिर जाते है.

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