भगवान कृष्ण जब पांडवों का प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर गए, तो दुर्योधन ने उनके स्वागत के लिए बहुत सी तैयारियां की थी. दुर्योधन जानता था कि पांडवों की सबसे बड़ी संपत्ति भगवान श्री कृष्ण ही हैं और एक बार यदि उन्हें अपने पक्ष में कर लिया जाये तो युद्ध में उसकी विजय निश्चित है.
तो उसने भगवन को प्रसन्न करने के लिए विश्राम की व्यवस्था एक आलीशान महल में की, उनके खाने के लिए बहुत ही उन्नत क़िस्म के पकवान बनवाये और फिर भगवान से विनम्रता पूर्वक अनुरोध किया कि वे उसके आमंत्रण को स्वीकार करें. पर भगवान तो सर्वज्ञ होते हैं, वे दुर्योधन की चापलूसी का उद्देश्य जानते थे. उन्हें पता था की यह सब दुर्योधन स्वार्थवश कर रहा है न कि प्रेमवश. सो भगवान ने यह कहकर उसके प्रस्ताव कि ठुकरा दिया कि उन्हें भूख नहीं है और वे वहाँ से निकल गए.
पर, वहाँ से निकलने के पश्चात भगवान अपने अनन्य भक्त विदुर के घर गए. यद्यपि विदुर हस्तिनापुर के राजदरबार में एक कुशल और सम्माननीय राजनयिक (diplomat) थे, फिर भी वे वहाँ की भोग विलासिता से परे एक सरल सा जीवन व्यतीत करते थे.
जब वह उनके घर पहुंचे थे, भगवान ने “विदुर विदुर” के नाम से पुकारा, पर विदुर उस क्षण अपने घर पर नहीं थे, उनकी पत्नी सुलभा ने जब यह दृश्य देखा कि स्वयं भगवान उनके द्वार पर खड़े हैं तो वह भाव विभोर हो गयी. वह सब कुछ भूल गयी और इतनी भी सुध न रही कि वो भगवान को अंदर आने को कहे. तो कुछ समय बीता तो भगवान ने स्वयं उनसे अनुरोध किया कि क्या वो उन्हें अंदर आने को नहीं कहेंगी ? अब उसे होश आया और हड़बड़ाहट में वो पागलों सा व्यवहार करने लगी. उसने भगवान को अंदर बुलाया. घर बहुत ही सामान्य था, घर में बस मूलभूत आवश्यकतों की चीजें ही मौजूद थी. वह इतनी भाव विभोर थी कि उसने भगवान को उल्टा पीढ़ा (wooden plank) पर ही बिठा दिया. और भगवान को निहारती रही. उसे अपने भाग्य पर भरोसा ही नहीं हो पा रहा था.
तभी भगवान ने कहा कि क्या वो बस उन्हें देखती रहेंगी या कुछ खाने को देंगी, उन्हें बहुत भूख लगी है.
तभी सुलभा को बहुत ग्लानि का एहसास हुआ और वह भाग कर रसोई की तरफ गयी. रसोई में कुछ खास था नहीं, बस कुछ केले थे, उसे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई पर चुकी भगवान को भूख जोरों की लगी है, यह एहसास कर वह केले उनके समक्ष ले आयी.
पर आगे जो घटा वो प्रेम की सीमा लांघ गया. वो भगवान के आने और उनके दर्शन से इतनी रोमांचित थीं कि उनका खुद पर कोई वश नहीं था, उन्होंने केले के छिलके को हटाया और उसमे सो जो फल बाहर आया, उसको भगवान को देने के बजाये उसे फेककर, छिलके को भगवान को खाने को दे दिया. यद्यपि भगवान का खुद पर वश था, परन्तु वो अपने भक्त के प्रेम में इस कदर बह गए थे कि उन्होंने केले के छिलके को खाना शुरू कर दिया. सुलभा भगवान को देखती रही, केले के फल को फेंकती गयी, छिलका भगवान के तरफ बढाती गयी, और भगवान उन छिलकों को खाते गए. कुछ देर ऐसा ही चला, तभी अचानक विदुर आ गए, यह दृश्य देख कि भगवान केले के छिलके खा रहे हैं और उनकी पत्नी प्रेम से उन्हें खिला रही है, वे अपनी पत्नी को क्रोधवश रोकने लगे. पर भगवान ने ऐसा करने से माना किया, पर विदुर के टोकने से पत्नी को उसके किये गए कृत पर बड़ा पछतावा हुआ और उनकी आँखे भर आयी.
तभी विदुर ने केले को छीलकर स्वयं भगवान को उसका फल खिलने लगे. कुछ फल खाने के पश्चात भगवान ने कहा, “विदुर, जो मिठास और आनंद केले के छिलके में थी वो तुम्हारे दिए गए केले के फल में नहीं”
सभी अश्रुमग्न थे भगवान भी, सुलभा भी और विदुर भी.
और जब मैंने यह दृष्टान्त पढ़ा तो मैं भी.
भगवान प्रेम के भूखे होते हैं न कि किसी के धन के, वे तो स्वयं इस जगत के अधिपति हैं सब कुछ उन्ही का तो है. उन्हें भावग्राही, अर्थात भावना को ग्रहण करने वाला, कहा जाता है.
भगवत गीता (9.26) में एक श्लोक आता है, जो कि बहुत प्रासंगिक है
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति ।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ॥
जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेमसे पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्धबुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त द्वारा प्रेम पूर्वक अर्पण किया हुआ वह सब मैं स्वीकार करता हूँ ।
It was really a very nice read.
Aaj kal mei thoda khafa hoon Bhagwan ke upar isi liye aaj kal yeh sab mujhe bas Story hi lagti hai.
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See the magnanimity of Lord, we are nothing in front of Him, yet we can get annoyed with him. ☺️
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Krishna says in Bhagvad Gita -“The only way you can conquer me is through love and there I am gladly conquered.” His mercy has no limits. Hare Krishna!
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Very true. 🙏
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Wah..beautiful…Liked your presentation so much..Your presentation is full of devotion..:))
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Thank you. It’s just an excerpt from Bhagwatam. Pleased that you liked it.
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जय श्री कृष्णा
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अरे अरे अरे! सुस्वागतम् अजय जी 🙏
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😊😊😊😊😊😊😊😊धन्यवाद जी
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सब खैरियत?
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हा हा हा , अभय जी खैरियत होती तो आपसे दूर नही रहता इतने दिन , पर अब खैरियत है ,
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ओ! मुझे लग भी रहा था, You can write me over mail. More power to you.
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धन्यवाद भाई
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तंदुल खाये मुठी एक नाथ दियो एक लोक सुदामा – बिहारी।
सच भगवान् बैभव में नहीं झोपडी में मिलते हैं,
सोने में नहीं,मिटटी में वास करते हैं,
अहंकारी और धनवान ने भगवान् कहाँ देखा,
वो तो सेवरी और विदुर के घर मिलते हैं।
बहुत सुन्दर अभय जी।
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शुक्रिया मधुसूदन जी, आभार आपका! अजय जी आज बहुत दिनों बाद आये हैं wordpress पर, उनकी रचनाओं को भी देखिये, बहुत अच्छी होती है
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देख लिया —हमने काफी संपर्क करने का प्रयास किया था ,मन में शंका भी हो रही थी। उनका हाथ टूट गया था दुर्घटना में।शुक्र है भगवान् का सब ठीक है।
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ओ!
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Very well quoted : ”भगवान प्रेम के भूखे होते हैं न कि किसी के धन के, वे तो स्वयं इस जगत के अधिपति हैं सब कुछ उन्ही का तो है. उन्हें भावग्राही, अर्थात भावना को ग्रहण करने वाला, कहा जाता है.”
We as human beings can in no form revert back to God for his gratefulness and this beautiful gift of life! Thanks for sharing.
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Thank you so much for reading the post. Lord can go to any extent to protect the devotees.
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राधे राधे।
जय श्री कृष्ण जी।
बहुत ही सुंदर👌
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भगवत लीला तो सुंदर ही होती है भाई जी! 🙏
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निसंकोच…. ईश्वरीय शक्ति और प्रभु की इच्छा से अध्ययन करने का सौभाग्य प्राप्त किया आपने।
साझा करने के लिए सुक्रिया..💐
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Enjoyed the read about the magnanimity of Lord Krishna! I can understand the awe of Sulabha on finding the Lord himself at her doorstep!
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Thank you Radhika ji. Indeed it was a pleasant exchange of love.
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It was a beautiful journey!! Thanks for making us read the versus!!
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Pleasure
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बहुत अच्छा लिखा है अभय जी।
दुर्योधन घर मेवा त्यागे साग विदुर घर खाये प्रभु जी गुण गाये प्रभु की जी।
गलत कहा हो तो माफ कीजिएगा। मुझे संस्कृत नहीं आती है लेकिन मेरे जानकारी अनुसार विदुर के घर साग का सेवन किये थे। मेरे अनुभव के अनुसार गीता के श्लोक पत्रं का अर्थ साग के अर्थ में होना चाहिए।
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सही कहा आपने, शास्त्रों में इस घटना के परिप्रेक्ष्य में साग का भी वर्णन है!
पर मैंने जो दृष्टांत का वर्णन किया है वह भी है।
खैर यहाँ यह तर्क का विषय नहीं है, विषय है कि भगवान भक्तों के लिए कितने हो जाते हैं!
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अभय जी मेरा उद्देश्य तर्क और आलोचना करने का भाव नहीं होता है। एक दूसरे के जानकारी अनुसार कुछ सही जानकारी मिल जाय और आप लोग नये जनरेशन के हो कुछ भी सर्च कर पता लगा सकते हो। और रह गयी भगवान् की बात तो मेरे आस्था में भी भगवान् भाव के भूखे हैं। वैसे अगले पोस्ट में मैंने भी एक माँ का बताया दृष्टांत लिख रही हूँ पढ़ेगा आप को अच्छा लगेगा।
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ठीक कहा आपने
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धन्यवाद अभय जी भावनाओं को समझने के लिए।
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अभय जी आपने सही लिखा है। मैं दोबारा ग्रन्थों को पढा केला के छिलके को ही साग का अर्थ लिया गया है जो आपने सुलभा नाम से लिखा है उसे मैं विदुर की पत्नी होने से विदुरानी के नाम से जानते थे। अच्छा हुआ आप के लेख को पढने से नाम भी ज्ञात हो गया।
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शुक्रिया 🙏
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शुक्रिया मुझे अदा करना चाहिए आप के वजह से मुझे नाम पता चला और मेरे ज्ञान में वृद्धि हुई।
ऐसे ही लिखते रहिये। keep it up.
👍👏👌
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bahut hi khubsurat or rochak hai yah
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Dhanyavad, khush hoon ku aapko pasand aaya
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बहुत खूब, अच्छा लगा, हमने गीता पढी हैपर आजकल गीता के ना पर लोग गलत भ्रांतियां भी फैला रहे हैं, दोहे के साथ देने से ये दूर होंगीं।
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Aapka bahut bahut aabhar 🙂
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