
कुछ विश्वसनीय लोगों के बल पे
हारी बाजी भी जीती जा सकती है
और एक विश्वासघाती के कारण
जीती बाजी भी मिट्टी में मिल जाती है
~अभय
With a handful of loyalist,
even an inevitable lost war
can be turned in to victory,
but a single traitor
can ruin the entire cause.
~Abhay
Be the cause of victory, not the defeat.
सच कहा आपने—–जिसके आतंक से ऋषि दूर होकर भी यज्ञ नहीं कर पाते थे उसी के निकट रहनेवाला उसका भाई दरवाजे पर तुलसी गाँछ लगाकर रहता था। ऐसे उदार भाई के साथ बिश्वासघात ही था जिसके कारण रावण जैसा योद्धा के साथ-साथ स्वर्ण नगरी लंका भी राख हो गयी। हजारों विस्वसनीय अपनों पर एक अपना दिखनेवाला विश्वासघाती भारी पड़ता है,बिलकुल सत्य।
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इस परिप्रेक्ष्य में मेरा व्यक्तिगत मत अलग है। बहुत लोग विभीषण को विश्वासघाती के रूप में देखते हैं, और घर का भेदी, लंका ढाहे कथन काफी प्रचलित है।
परंतु यह स्मरण रहे कि असत्य, अधर्म से विश्वासघात करने में कोई बुराई नहीं है। विभीषण का कृत भगवत पक्ष में था, इसलिए न्यायसंगत है। 🙏
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सही कहा आपने –जब भगवन की बात आती है हम शून्य हो जाते है और हैं भी परंतु कल की ही बात करते हैं जब द्रौपदी को भरी दरबार में नंगा किया जाता है तब सभी सिंघासन का हवाला देकर मौन रह जाते है उस समय धर्म कहाँ गया था।अगर बिभीषन विश्वासघाती नहीं जैसा की हम भी मानते हैं फिर उन महाभारत के योद्धाओं को क्या कहेंगे—। उस समय का नीति कहता है कि राजा उश्वर का रूप होता है और उसकी आज्ञा सरोपरी फिर यही बिभीषन पर लागू क्यों नहीं।
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जो भी मौन रहे, अनिवार्यतः धर्म युद्ध में मारे गए थे! प्रत्यक्ष रूप से या परोक्ष रूप से
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मृत्युभूमि है सबको मरना है——अगर ईश्वर को मानते हैं तो हम भी ईश्वर की संतान हैं—और मेरा धर्म युद्ध रोज चलता है,फिर बिश्वासघात कैसा—–?धर्मयुद्ध में सभी अपनों का साथ देते हैं—-फिर बिभीषन क्यों नहीं——?
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धर्म युद्ध में पांडव और कौरव अपने होकर भी सामने खड़े थे! धर्म युद्ध में दो पक्ष ही होते हैं, एक धर्म का और अधर्म का। अपना पराया कुछ नहीं होता।
आपके प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद!
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सुक्रिया—–वैसे एक ही इंसान एक के लिए विश्वासघाती एवं दूसरे के लिए धर्मी होता है—–।जो अपनों से छल करे वो विश्वासघाती एवं अधर्मी कहलाता है ।दूसरे के लिए धर्मी ।ये मेरा सोंच है—-काफी बिस्तार हो गया—–आभार आपका जवाब देने के लिए।
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आपका भी शुक्रिया 🙏
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अरे अभय जी आप लोगों के चर्चा में मैं भी ज्ञान थोड़ा बांटना चाहती हूँ। पहला भगवान् विश्वास करने वाले के लिए हैं तर्क देने वाले के लिए नहीं। दूसरी बात कृष्ण लीला धारी हैं वे लीला करते हैं और राम समाज में रहने वाले लोगों के आदर्श है इसलिए पुरुषोत्तम राम कहा गया है। इस लिए रामायण और महाभारत की कहानी मिला कर तर्क करना निराधार है।
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बहुत सही
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पांडव अपने मां के आज्ञा से जबकि वो जानती भी नहीं थी कि जिसको वह पांच भाइयों को बांटने को कह रही हैं वो औरत है फिर भी उन लोगों ने बांटकर मां के आज्ञा का पालन किया। वो द्वापर, त्रेता, सत्युग था। ये कलयुग है। इस युग में झूठे तर्कों की ही जीत होती है।
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धर्म हेतु अवतरित गोसाईं मुरहू मोहि ब्याज की नाई। ये बालि ने पूछा था मरते समय भगवान् से।
तब भगवान् ने जबाब दिया
अनुज बहुत भगिनी सूत नारी सुन सठ कन्या समय चारी इनही कुदृष्टि विलोकही जेई ताहि बजे कुछ पाप न होई। उम्मीद करती हूं इस दोहे से भगवान् की महिमा अपरम्पार है ये समझ आ जाएगी। धन्यवाद।
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मुरहू मोहि ब्याघ़
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Very true
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🙏
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I have nominated you for liebster award go check my site : )
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Thank you so much 🙏
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बिल्कुल सही बात है आपकी 😊👍👍👍
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शुक्रिया अजय जी
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आप की रचना अच्छी है। चार लाईन पर इतना बड़ा तर्क वाह भाई वाह। मुझे तो इस लिए बोलना पड़ा क्योंकि भगवान् में विश्वास करने वाले के लिए भगवान् की निंदा सुनना भी पाप है। कुछ पूर्व जन्म के कर्म भी होता है जिसका भोग भोगना पड़ता है। विभीषण रावण कुम्भकरण अपने श्राप के कारण – – – – – – – – – ।खैर छोडिये इतना बड़ा रामायण, महाभारत, गीता का ज्ञान तर्क से नहीं समझा जा सकता है। इसके लिए भाव और भावना होनी चाहिये। इसीलिए कहा गया है
जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूर्ति देखी तिन्ह तैसी।
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True.
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Very true
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Thank You!
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sahi kaha
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Thank you
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