ज्वालामुखी

vol
Credit: Internet

मेरे संयम की परीक्षा मत लो

अब मैं टूट पडूंगा

किसी जाज्वल्यमान ज्वालामुखी सा

अब मैं फूट पडूंगा

~अभय

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19 thoughts on “ज्वालामुखी”

        1. तीन दिवस तक पंथ मांगते
          रघुपति सिन्धु किनारे,
          बैठे पढ़ते रहे छन्द
          अनुनय के प्यारे-प्यारे।

          उत्तर में जब एक नाद भी
          उठा नहीं सागर से
          उठी अधीर धधक पौरुष की
          आग राम के शर से।

          दिनकर जी की कविता प्रासंगिक है

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          1. बहुत ही खूबसूरत रचना है पढा है मैंने और रामचरित मानस में तो और भी अच्छे से पढा है। जबाब नहीं।
            सबसे तर्क में जीता है।
            पर ज्ञानी गरु से कोई जीता है।
            हार सहर्ष स्वीकार है।
            क्यों कि गुरु शिष्य के ज्ञान देने के लिए जीता है।

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                1. इसका मतलब है मैं सबसे जीत जाती हूँ तर्क में पर आप से हमेशा हार जाती हूँ। यानी आप मेरे ज्ञानी गरु निकले। क्यों कि आप का ज्ञान मेरे ज्ञान से अधिक है। और गुरु ज्ञानी को ही बनाना चाहिए।

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                  1. हा हा, अरे ऐसा नहीं है! मैंने बस अपना मत और भाव व्यक्त किया था।
                    और यहाँ जीत हार का प्रश्न ही कहांँ है!
                    शुक्रिया 🙏

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    1. क्या जगदीप जी, तुलना भी किया तो आभासीय चीज से, परमाणु बम कहते तो कोई बात होती 😝

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        1. अरे तो मैं ज्वालामुखी थोड़े ही न बन जाऊँगा 😜
          उपमा अलंकार का प्रयोग था, शुक्रिया 🙏

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