
आम का मौसम अपने चरम पर है. तो आज जैसे ही मन्नू ने बताया कि गुप्ता जी अपनी बेटी को लाने 10 बजे स्टेशन जायेंगे, तो हम चार पांच मित्र काफी खुश हुए. पर मोहन ने संदेह भरी निगाह से मन्नू को देखा और पूछा “अबे मन्नू !!ये बता, गुप्ता जी 10 बजे अपनी बेटी को लेने स्टेशन जायेंगे, ये बात तुम्हे किसने बतायी?”
मन्नू शरमाते हुए मुस्कुरा के बोला “गुप्ता जी की बेटी ने व्हाट्सप्प किया”. मेरे सारे दोस्त एक स्वर में बोले “वोवो..ओओओओओ …..”
अब आप सोच रहे होंगे कि मैंने शुरू में आम की बात की और बात गुप्ता जी पर अटक गयी. गुप्ता जी का आम से क्या ताल्लुक? तो आप को कह दूँ कि दोनों के बीच गहरा ताल्लुक है.
बात ऐसी है कि गुप्ता जी का घर मेरे परम मित्र मन्नू के घर के बाजू में ही है. गुप्ता जी के घर के बगीचे में एक बड़ा सा आम का पेड़ है और इस साल उस आम के पेड़ ने तो सारी हदें ही पार कर दी हैं. उसपर इतने आम लदें हैं कि पत्तों की संख्या कम मालूम होती है. और आम भी कौन सा… लंगड़ा. आशा है आप सब लंगड़ा आम से अवगत होंगे, पूछ इसलिए रहा हूँ कि आज कल के युवा वर्ग से पूछो कि उनकों कौन सा आम पसंद है, यद्यपि वो खाएं हो या नहीं, एक ही उत्तर मिलता है “अल्फांज़ो..”
खैर मैंने भी बस एक बार ही खाया, या ऐसा कहिये कि एक बार ही अपने मामा के घर पर खिलाया गया. पर जो बात लंगड़े आम में है उसका जवाब नहीं. खासकर गुप्ता जी के लंगड़े आम को चोरी करने में. हम चार पांच मित्रगण बहुत दिनों से उस पेड़ पर हमला करने कि फ़िराक में थे, पर बीच में आ जाते थे गुप्ता जी और मन्नू कि इज़्ज़त.
थोड़ा गुप्ता जी का परिचय “गुप्ता जी हैं अव्वल दर्जे के खड़ूस, दूसरों की खुशी गुप्ता जी से देखी नहीं जाती खासकर बच्चों कि ख़ुशी. मुझे याद है बचपन में क्रिकेट खेलते समय न जाने कितनी बॉल गुप्ता जी के घर में गयी होंगी, पर वह मंगलयान कि तरह वापस कभी नहीं आयीं. आपको एक राज कि बात बताऊँ, कई बार तो बच्चे गुप्ता जी को बॉल न देने के पश्चात “कुत्ता जी ” “कुत्ता जी” कहते भाग फिरते थे. ” आशा है गुप्ता जी मेरा लिखा हुआ ब्लॉग नहीं पढ़ रहे होंगे. गुप्ता जी को आम के पेड़ से बड़ा लगाव है. वो जब काम करने के लिए कंपनी में जाते हैं तो उनका भूत मानो आम के पेड़ पर ही लटका रहता है, और उसकी रखवाली करता है “
खैर छोड़िये, तो वह मुहरत आ ही गया. समय हुआ था सुबह का साढ़े 9 , हम पहले से घात लगा कर बैठे हुए थे, गुप्ता जी जैसे ही अपनी मारुती ऑल्टो को लेकर निकले, हमने पत्थर के ढेलों से उनके पेड़ पर हमला बोल दिया. धपाधप – धपाधप -धपाधप की आवाज़ आ रही थी. उनकी पत्नी एक बार चिल्लाते हुए बाहर आयी, पर हम डटें रहे. हमला और तेज कर दिया. ये मौका दुबारा नहीं आने वाला था. पत्नी को लगा इन लड़कों के सर पर शायद आज खून सवार है, वो जान बचा के घर को भाग ली.
बहुत सारे आम जमीन पर पड़े थे. आशीष का काम था उन आम को चुनना. मैं, मन्नू, मोहन और सुजीत कश्मीरी पत्थरबाजों से प्रेरणा लेकर आम के पेड़ पर गोले बरसा रहे थे. तभी आशीष ने बोला भाई झोला भर गया है चल भाग अब. सब भागने को तैयार. मैं एक आम के ऊपर चार पांच पत्थर बर्बाद कर चूका था पर वह टूट ही नहीं रही थी. हाथ में आखिरी पत्थर. मैंने बोला, ये रहा आखिरी हमला. पर वह फिर भी नहीं टूटी.
आम की डालियों से टकरा कर वापस आयी और उसके साथ आयी चीखने के एक आवाज़. “अबे…. …साले…..सर फोड़ दिया…” हम सभी हतप्रभ. देखा तो मेरा आखिर फेका पत्थर डाली से टकराकर सीधा मन्नू के सिर पर गिरा …और उसमे से बहने लगी लाल लाल खून. .. मैंने जोड़ से बोला “यह पत्थर मैंने नहीं फेंका, शायद कोई पत्थर जो पहले पेड़ पर अटक गया होगा, वही गिरा हो…” बाकी चारो दोस्त मुझे ऐसी देख रहे थे जैसे भारत का पाकिस्तान से फाइनल हारने की वजह मैं ही था.
मैंने कान पकड़ कर मन्नू से माफ़ी मांगी, और तुरंत बाइक से डॉक्टर के पास ले गया. डॉक्टर ने दो स्टिच लगायी और पट्टी बाँध दी. कुछ दवा देकर उसे आराम करने को कहा.
कुछ भी कहिये मन्नू बड़ा दिलदार आदमी निकला. उसने कहा ” सालों! गुप्ता मेरे को छोड़ेगा नहीं, एक तो आम के पेड़ का सत्यानाश हो गया है और दूसरा मैं सर पर पट्टी बंधवा के उसके सामने सबूत के साथ खड़ा रहूँगा, उसकी बेटी क्या समझेगी? इन सबमे मेरा योगदान सबसे ज्यादा रहा है, तो अब आम सबमे बराबर नहीं बटेगी, बल्कि दो आम मुझे ज़्यादा चाहिए…”
मैंने हँस के उसे गले लगा लिया, उसका दर्द शायद कुछ काम हो गया हो…
हम सोचने लगे कि जब गुप्ता जी अपनी बेटी को लेकर घर पहुंचेंगे तो उनका चेहरा देखने लायक होगा ….
और साथ ही में यह भी ख्याल आया कि आम खरीद कर खाने में भी कोई बुराई नहीं थी….पर ये मज़ा भी नहीं होता
और आप लोग इसको fiction की तरह ही लेंगे, और मुझतक पहुँचाना नहीं भूलेंगे कि कैसी लगी …….
बहुत अच्छी कहानी….पढ़ के अच्छा लगा। हालांकि कहानी सच्ची घटना पर आधारित है,सच तो सच है उसकी समीक्षा क्या करना😊😀
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अरे नहीं! यह काल्पनिक है! मैंने अन्त में बताया तो था, पहले भी एक दो बार लोगों को गलतफहमी हो गयी है, सो आज स्पष्टता के साथ fiction लिख दिया है 😀
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Okay 😊
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ये दृश्य मुझे मेरे बचपन के दिनों की याद दिला रहा है …कुछ भी कहो पर ऐसे आम खाने का भी अपना एक अलग ही मजा है
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मैं भी लिखते समय बचपन में टहल आया, हाँ हाँ आम का तो जवाब नहीं 😁
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बहुत ही बढ़िया लिखा है ।
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धन्यवाद😊
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बहुत बढ़िया कहानी। मैं आमतौर पर ज़्यादा हिंदी कहानिया या कविताये नही पढ़ती हूँ। या यूं कहिये की मुझे कभी मौका नही मिलता। पर इस कहानी को पढ़ के बहुत मज़ा आया। आम भाषा मे जैसे कहते है ना कि पैसा वसूल था।
मेने कभी ऐसे आम तोड़ के नही खाये। क्योंकि जहाँ हम रहते है वहाँ आम के कोई पेड़ ही नही है। पर ये पढ़ के ऐसा लगा कि ऐसा करना कितना मज़ेदार होगा।
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शुक्रिया शुक्रिया ☺️
कहानी का जो भाव था, उसे हिन्दी में ही पढ़ कर मजा आता, पता नहीं अंग्रेज इस तरह आम तोड़कर खाते होंगे की नहीं!
शहर में इस तरह आम तोड़ कर खाना संभव तो नहीं, मैंने भी बचपन में ऐसे कारनामें किये थे अपने गांव में . अब तो यह fiction तक सिमट कर रह गयी है !
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बिल्कुल सही कहा। अंग्रेज़ कभी ऐसे आम तोड़ कर नही खाते होंगे।
और तो और मेरा भी ऐसा मानना है कि दिल के जज़्बात सबसे बेहतर तरीके से अपनी मातृभाषा में ही व्यक्त किये जा सकते है।
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वो तो है, पर हम आजकल दिल से चलते कहांँ हैं, चलते हैं दिखावे से। अभिव्यक्ति के लिए धन्यवाद ☺️
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बहुत खूब—कल्पना ही सही परंतु सच्चाई के बिलकुल करीब——दूसरे के बगीचे से चुराकर नहीं खाया तो क्या खाया——आपका काल्पनिक कहानी हमें एक कहानी याद दिला गयी जिसे मैं भी शेयर कर रहा हु शायद आपको पसंद आये-
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सच्चाई के करीब है तो मेरी जीत है ☺️
शुक्रिया! आप भी लिखो मैं आपके ब्लॉग से टहल आऊंगा 🙏
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बहुत ही अच्छा लिखा है अभय जी। मेरे आफिस के सामने एक बहुत ही वृहद् लंगड़ा आम का पेड़ है उसकी रखवाली आर्मी रिटायर कर्नल साहब करते अब सारे आफिस स्टाफ को तोड़ने की हिम्मत नहीं लेकिन देखते लालच के निगाह से। उस पर कर्नल साहब तोड़ते नहीं है गिरा हुआ मिल गया तो अलग बात है। पर मुझे बहुत ही मानते हैं बुलाकर आम दिया तो मैं बोली तोड़ने में मजा आता है तो उन्होंने मुझे तोडने का भी अवसर दिया। अब आफिस स्टाफ पेड़ का पका आम खा के मस्त।
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आम से जुड़ी सबकी अपनी कहानी होती है! शुक्रिया
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Ha ha ha ha, loved the way you have presented it. Kisi ke bagiche me se chori chhupke aam khaane ka maza hi kuchh aur hai.
Very nicely written Bro.
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He.. He.. Thank you so much. Your comment is very encouraging to me. I tried a different style of writing and happy that you liked it.
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बहुत अच्छी कहानी |
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Thank You so much Sir!
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सही बात है आपकी 😊👍👍
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क्या सही बात है भाई, पढ़ के मजा आया कि नहीं ये बताईये 😊
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बहुत अच्छी लगी 😊😊😊
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गुप्ता जी , मन्नू , कश्मीरी पथतर वाजी , मिश्रण अच्छा किया है आपने !!
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शुक्रिया 🙏
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सच मे “आम ख़रीद कर ही खाएँ” बेहद ख़ूबसूरती से लिखा है अभय जी… बहुत सुन्दर …,
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बहुत बहुत शुक्रिया! आपके कुछ लेख पढ़े हैं मैंनें, विषय काफी गंभीर और शब्दों का चयन भी गंभीरता के साथ न्याय करते हैं।
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धन्यवाद अभय जी – लेख पढ़ने के लिए
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सच पूछिए तो हर किसी को अपना बचपन याद आ गया होगा
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सच पूछिए तो हर किसी को अपना बचपन याद आ गया होगा
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खुशी हुई जानकर 🙏
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हमे भी भेजिए 1 2 ठो लंगड़ा लुलहा आम…
बहुत ही सुंदर रचना👌
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पवन भाई, आईये कभी गुप्ता जी की हवेली पे 😂
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कुटाई न हो जाये…
प्रबल संभावना हैं,
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ना ना, पिछले हमले से वे सदमें में चले गए हैं 😜
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तो फिर मिलकर बहुत जल्द सर्जिकल स्ट्राइक करना होगा
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हा हा हा 😂
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भाई जी कहानी जरूर सच्ची है और आपने जरूर कभी किसी का सर फोड़ा है
😊😊😊😊😊
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ना ना 😂
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हमे भी बहुत पसंद आये गुप्ता जी के लंगड़े आम,,,,बहुत अच्छी रचना👌👌👌👍👍
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शुक्रिया बन्धु 🙂 🙂
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Hilarious post! Fiction well tried..Keep it up Abhayji.
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Thanks ☺️
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