जीवन मतलब चुनाव

राखी की छुट्टी तो मिली नहीं, पर वीकेंड था और फिर एक दिन के लिए आप अस्वस्थ तो हो ही सकते हैं 😁. तो फिर मैं बिना समय व्यर्थ किये अपने बहन के घर राखी के एक दिन पहले पहुँच गया. बहन ने पूछा कि कल खाने में क्या बनाऊं..मैंने झट से बोला.. और क्या नाश्ते में बटर मसाला डोसा और लंच में पनीर की कोई सी भी सब्जी..बहन हँस के बोली कभी और भी कुछ फरमाईश कर लिया करो….
जब बहन चली गयी तो, तो मेरा ध्यान उस प्रश्न पर गया. “खाने में क्या बनाऊं ?” थोड़ी सोच की गहराई में गया तो ध्यान आया कि वास्तव में यह प्रश्न एक चुनाव की तरह है, जिसमे आपके सामने कई विकल्प होते हैं और उन विकल्पों में से आपको एक विकल्प का चयन करना होता है.. फिर मैं शाम को पार्क में टहल रहा था और
जो विचार आया तो उसे आपके समक्ष छोड़ रहा हूँ. सम्भालिये इसको..

कुछ मुस्लिम और तथाकथित साम्यवादी राष्ट्रों (Socialist Nations) को छोड़ दें तो दुनिया ने मुख्यतः लोकतंत्रीय प्रणाली शासन व्यवस्था (Democratically Elected Forms of Government)को अपनाया है. लोकतंत्र का विचार सुनने भी अच्छा लगता है. इसलिए जो राष्ट्र लोकतंत्रीय नहीं है वह भी अपने को लोकतंत्रीय साबित करने में लगे रहतें हैं. वे भी चुनाव करवाते हैं, भले ही चुनाव में एक ही पार्टी क्यों न रहे (चीन को ही ले लीजिये ना), या चुनाव पक्षपात से पूर्ण हो (मैं रूस का नाम नहीं लेना चाहता क्योंकि उन्होंने हमारे बहुत कठिन समय में कंधे से कन्धा मिलाकर सफर तय किया हैं, पर सत्य को कोई झुठला भी तो नहीं सकता).

ख़ैर छोड़िये, हममें से कई हैं जो लोकतंत्र को भी पसंद नहीं करते होंगे. उनको लगता होगा कि काश हमारे देश में भी चीन की तरह एक सख्त सरकार होती तो निर्णय लेने और उसको जमीं पर हकीकत में लाने में सहूलियत होती. और यदि चीन के पिछले तीन दसक के विकास रफ़्तार और दुनिया में उसकी बढ़ती साख को देखेंगे थो हमें यह विचार और भी अच्छा लगने लगेगा.

ख़ैर मैं इसपर ज़्यादा तर्क नहीं करूँगा और एक बात जो मैंने किसी साहित्य में पढ़ी थी, उसको वापस दोहराऊंगा. Don’t compare practical Democracy with ideal Autocracy. मतलब कि “व्यावहारिक लोकतंत्र की तुलना किसी निरंकुश शासन से ना करें”.

चलिए ये तो हो गयी भूमिका. अब आते है आज के तत्व पर. लोकतंत्र की सबसे आवश्यक गतिविधि क्या है? तो निश्चय ही “चुनाव” पहले स्थान पर आएगा. चुनाव के माध्यम से ही हम प्रतिनिधि चुनते है और अपेक्षा रखते है कि वह हमारी आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करेगा.

भाई, ये चुनाव हैं बड़ा लाजवाब चीज. और आपके बता दूँ कि मैं खुद को राजनितिक चुनाव तक सिमित नहीं कर रहा हूँ. मैं जिस चुनाव कि बात कर रहा हूँ वह हमारे पुरे जीवन में व्याप्त हैं. या यह कहना कि जीवन “चुनाव” ही है exaggeration (हिंदी में उपयुक्त शब्द नहीं सूझ रहा था, शायद अतिशयोक्ति हो) नहीं होगा.

choice

अब देखिये ना चुनाव भी कैसे कैसे हो सकते है: कौन सा लड़का या लड़की जीवन के लिए सही होगा या होगी, यहाँ पर चुनाव; प्रेम के पश्चात विवाह या विवाह के पश्चात प्रेम, इसको तय करना;अब बच्चे हुए (अब क्या करें, ये तो होते ही है ) तो उनको कौन से विद्यालय में भेजना वहां पर चुनाव, बच्चों को पढ़ने के लिए कौन सा विषय चुनना, वहां पर चुनाव, पढ़ाई करना या खेल में भाग्य आजमाना, यहाँ भी चुनाव, IPL में कौन सी टीम का पक्ष लेना वहाँ पर चुनाव, सम्माननीय राहुल गाँधी जी को चुनना या 56 इंच के सीने वाले मोदी जी को चुनना यहाँ पर चुनाव, मैगी खाना या पतंजलि आटा नूडल पकाना, यहाँ पर चुनाव, शाकाहारी बनाना या मुर्गे कि टांग दबोचना, यहाँ भी चुनाव, यदि आपकी माशूका को कोई बहुत घूर रहा है तो तत्काल में ही उसकी आगे की दो दांतों को तोडना या योजनाबद्ध तरीके से उसपर हमला, ये सभी चुनाव के ही उदाहरण हैं.. आप और भी उदाहरण सोच सकते हैं, क्योंकि सोचने में किसी के पिताजी की रोक टोक तो है नहीं 🙂

इन चुनावों के अलावा एक और चुनाव हम सबके जीवन में आता है, और वह चुनाव है बड़ा महत्वपूर्ण . वह है जीवन रूपी युद्ध. इस जीवन रूपी युद्ध के चुनाव में केवल दो विकल्प होते हैं

1. संघर्ष
2. समर्पण

समर्पण भी कोई ख़राब विकल्प नहीं है, इसमें आपको प्रतिस्पर्धा का डर नहीं होता, न ही अथक परिश्रम की जरुरत, न तो किसी स्वानुशासन का कष्ट और न ही लोगों की अपेक्षाओं का बोझ.
पर इसकी एक अजीब सी शर्त है, जो खुद्दार लोगों को कभी मान्य नहीं हो सकती और वो है समर्पण के लिए आपका स्वाभिमान मरा हुआ होना चाहिए. और यदि आपका स्वाभिमान मर चूका है तो समर्पण कर सकते हैं

समर्पण के विपरीत होता है संघर्ष. भले ही सकल जगत आपके खिलाफ हो पर यदि संघर्ष की भावना बची हुई है और मन में यह विश्वास बचा है कि आपका उद्देश्य जायज़ है तो इसको अपनाया जा सकता है. संघर्ष में दो संभावनाएं हैं विजय या वीरगति. योद्धा के लिए दोनों स्थिति ही मान्य होनी चाहिए. इसकी सत्यापन स्वयं श्री कृष्णा करते हैं. मैं गीता पढ़ रहा था तो एक श्लोक पर दृष्टिपात हुआ इस श्लोक में भगवान अर्जुन को संघर्ष का मतलब समझाते हैं

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्‌ ।

तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ॥2.37॥

हे कुन्तीपुत्र! तुम यदि युद्ध में मारे जाओगे तो स्वर्ग प्राप्त करोगे या यदि तुम जीत जाओगे तो पृथ्वी के साम्राज्य का भोग करोगे | अतः दृढ़ संकल्प करके खड़े होओ और युद्ध करो |

भैया-बहनों को राखी की पूर्व शुभकामनायें और मित्रों को Belated Happy Friendship Day. वे यह लेख उपहार स्वरुप रख सकते हैं …. 🙂

Advertisement

26 thoughts on “जीवन मतलब चुनाव”

  1. बहुत बढ़िया लिखा अभय जी……साथ ही उदाहरण या कुछ भी सोचने में किसी के पिताजी की रोक टोक नहीं है अतः हमने भी लिख दिया……..

    जिंदगी जंग है ,जंग है जिंदगी,
    क्या करे ना करे तंग है जिंदगी,
    है अनेक रास्ते एक को ढूंढता,
    जब से दुनिया में हैं रास्ते चुनता,
    हम समर्पण करें या लड़े जिंदगी,
    क्या करे ना करे तंग है जिंदगी |

    बात खाने की हो ब्यंजने हैं कई,
    धर्म,जाति कहें तो यहां हैं कई,
    शासनों के कई रास्ते क्या सही,
    क्या करे ना करे तंग है जिंदगी|

    पहले शादी करें या करें प्यार हम,
    रास्ते हैं कई किसको चुनेगे हम,
    पुत्र पैदा हुआ हम पढ़ाएं कहाँ,
    क्या खिलाएं,पिलायें,सुलाएं कहाँ,
    है कहाँ गम,कहाँ पर छुपी है ख़ुशी,
    क्या करे ना करे तंग है जिंदगी|

    बात चुनने की है जबतलक हम रहें,
    चुनना है बिकल्प जबतलक हम रहें,
    है सही क्या गलत किसको चुनेंगे हम,
    किसकी आँखों में खुशियों को ढूंढेंगे हम,
    हम अल्लाह कहें या कहें राम को,
    हम गीता पढ़ें या कुरआन को,
    बंदिशें है लगाता कोई भी यहां,
    है समर्पण कराता कोई भी यहां,
    फिर समर्पण करें या लड़े जिंदगी,
    क्या करे ना करे तंग है जिंदगी |

    हम समर्पण करेंगे तो बच जाएंगे,
    है खुद्दारी तो जीकर भी मर जाएंगे,
    हम लड़े तो वहाँ पर भी दो रास्ते,
    हर जगह है परीक्षा मेरे वास्ते,
    मिट गए हम अगर वीर मानेंगे सब,
    बच गए राज धरती पर पाएंगे हम,
    फिर समर्पण करें या लड़े जिंदगी,
    क्या करे ना करे तंग है जिंदगी,
    क्या करे ना करे तंग है जिंदगी |

    Happy Friendship day & Rakshabandhan.

    Liked by 1 person

    1. शानदार जबरदस्त जिंदाबाद!
      मैने डोर ढीली क्या छोड़ी,आप तो पतंग हत्थड से ही ले गये!
      भाई मजा आ गया पढ़ के! इसलिए हमें आपकी प्रतिक्रिया का हमेशा इन्तज़ार रहता है😁
      आशा है कि मेरी लेखनी ने आपको निराश नहीं किया 🙏🙏

      Liked by 1 person

  2. चुनाव तो हर जगह है जीवन मे पर शायद लोकतंत्र उतना विश्वसनीय नहीं रहा अब

    Liked by 1 person

    1. भाई, इससे अच्छा विकल्प हो तो बताईये! देश की शासन व्यवस्था बदल दी जायेगी 😁

      Like

  3. बहुत ही सुंदर लेख हैं। सबसे प्रशंसनीय पंक्तियाँ लगी–” वह है जीवन रूपी युद्ध. इस जीवन रूपी युद्ध के चुनाव में केवल दो विकल्प होते हैं

    1. संघर्ष
    2. समर्पण”
    सर्वाधिक पसंद आई।

    Liked by 1 person

  4. भाई मज़ा आ गया ,
    लेख की शुरुवात राखी की छुट्टी से होती हुई , चुनाव , लोकतंत्र और अंत में गीता सार .
    कुछ खाश है आपके लेखन में .
    आगे भी प्रतीक्षा रहेगा.
    धन्यवाद…

    Liked by 1 person

    1. रविन्द्र भाई धन्यवाद! हर्षित हूँ आपके विचार पढ़ कर। सराहना के लिए शुक्रिया! आप मेरे पिछली कविताओं और लेख भी पढ़ सकते हैं, प्रतिक्रिया व्यक्त कर सुचित कर सकते हैं कि रास आयी या नहीं 🙏

      Liked by 1 person

  5. वाह अभय जी क्या कहने हमें तो आपके कविता में विषय वस्तु अनेक है परन्तु भाव हर जगह एक ही है। उदाहरण स्वरुप जैसे भारत में अनेकता में एकता का एहसास। पता नहीं आपके लेख पर सही सोचकर उदाहरण दे पायी की नहीं यानि लेख का निचोड़ समझ पायी की नहीं बता दीजिएगा क्योंकि नागरिक शास्त्र और राजनीति शास्त्र मुझे समझ में नहीं आता है क्योंकि लोकतन्त्र और प्रजातन्त्र समझ में नहीं आता बस ठेठ भाषा में कहूंगी रब ने बना दी जोड़ी एक अन्धा और कोढी। एक और कहावत है जग जितलू ए बर रानी बर खड़ा होखस त जानी। मैं विक्रमादित्य की वंशज हूँ इसलिए कहूंगी विक्रमादित्य के न्याय सिंहासन पर बैठकर न्याय करने वाला कोई बचा ही नहीं सिंहासन विलुप्त हो जाना चाहिए। जैसी प्रजा वैसे राजा। माफ कीजिएगा शायद मेरे विचारों ने कहीं दिशा तो नहीं भटका दिया।

    Liked by 1 person

    1. हा हा, रजनी जी, आप भारत में पुनः राजतंत्र लाना चाहती हैं, वैसे राजा विक्रमादित्य हो तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है।

      Like

Leave a Reply

Please log in using one of these methods to post your comment:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: