नमस्ते दोस्तों!
कविता या पद्य लेखन में विविध रस होते हैं, जैसे श्रृंगार रस, वीर रस, हास्य रस, शांत रस, भयानक रस, वीभत्स्य रस आदि..
यद्यपि मैं बहुत साधारण कविता लिख पाता हूँ, पर मेरा प्रयास रहता है कि इनमें विविधता रहे. मेरे द्वारा लिखी गयी श्रृंगार रस की कविता (जिसमें मिलन और विरह दोनों आते हैं) का उदाहरण अनायास ही नहीं..3 , कुछ और.. , धीरज … ; हास्य रस का उदहारण हँसना मत भूलिये…. 😉 ; करुण रस का उदाहरण भूमिपुत्र , भक्ति रस का उदाहरण स्मरण अदि हो सकता है
सामन्यतः मैं कविताओं को पहले खुद तक सीमित रखता या एक दो करीबी दोस्त होते थे उनको सुनाता था, परन्तु आजकल वर्डप्रेस के माध्यम से आप तक पहुँचाना अच्छा लगता है क्योंकि आपसे प्रेरणा और प्रोत्साहन दोनों मिलते हैं
जो लोग कवितायेँ लिखते होंगे या जिनकी इसमें रूचि होगी, वो इस बात से सहमत होंगे कि कवितायेँ महज़ शब्दों का खेल नहीं वरन भावनाओं का उफ़ान होता है. कवितायेँ कैसी लगी; यह सामने वाले की भावनाओं पर भी निर्भर करता है. मेरे साथ तो कई बार ऐसा हुआ है कि जब मैंने एक ही कविता को दो अलग लोगों को सुनाया या दो अलग अलग लोगों ने पढ़ा, तो उनकी प्रतिक्रिया में जमीं आसमान का अंतर था
मैंने सोचा कि इसकी वजह क्या हो सकती है. इसके अलग अलग कारण हो सकतें हैं. पर सबसे प्रमुख कारण यह समझ आया कि भावनात्मक रूप से लोगों का विकास अलग अलग स्तर पर होता है. कोई गहराई में डूबकर सोचते हैं तो कोई छिछले स्तर पर..और उसी के आधार पर आंकलन कर पाते हैं..
खैर यह विविधता भी बहुत आवश्यक है, नहीं तो डीजे वाले बाबू मेरा गाना चला दो..या इस तरह के कर्णप्रिय गाने अस्तित्व में नहीं आ पाते 😛
एक मज़ेदार घटना साझा करता हूँ. हुआ यूँ कि एक दोस्त को न जाने कहाँ से पता चल गया कि मैं कविता लिखता हूँ तो उसने सुनाने का अनुरोध किया. मैंने ना-नुकुर के बाद उससे पूछा कि कौन से रस कि कविता सुनोगे. उसने रूचि के साथ पूछा कि ये “रस” क्या होता है, तो मुझे जितना पता था उसको संक्षेप में बताया. उसने झट से कहा “अरे! ये भी कोई पूछने वाली बात थी, इस उम्र में तो श्रृंगार रस की ही कविता सुनने का मज़ा है”. मैंने मन ही मन सोचा, लगता है इसे “रस” का मतलब बराबर समझ आया 😀
तो मैंने उसे अपनी कविता सुनाई
उसने कहा “वाह यार, अच्छा लिख लेते हो”. मैंने भी धन्यवाद कहा, और कहना भी चाहिए. फिर उसके बाद उसने जो कुछ कहा, जो मैंने कभी सुना नहीं था और हंसी भी आयी…
जानते हैं उसने क्या कहा “अरे यार, कोई ऐसे कविता सुनाओ जो रीमिक्स हो, जिसमे श्रृंगार रस भी हो और वीर रस भी” 😀
मैं सोचा कि अब समझ आया कि उसको “रस” के बारे में कितना समझ आया 🙂
मैंने कहा कि “भाई, मैंने तो ऐसे कविता लिखी नहीं है” उसने कहा कि “कैसे कवि हो, नहीं लिखी तो अभी अभी लिख दो “. मैंने कहा “अरे मैं वैसा भी कवि नहीं हूँ कि झट-पट लिख दूँ, मैं परिस्थितिजन्य कवि हूँ, चीजें मन को छूती है, तो शब्द बाहर आते हैं”. उसने फिर कहा चार लाइन तो बना ही सकते हो
मैंने भी सोचा कि चलो कोशिश की जाये, चार मिनट कि चुप्पी के बाद ये चार पंक्तियाँ बाहर आयी, सुनकर वह हंसा और मैं पढ़ने के बाद ठहाकों में फुट पड़ा…
आप भी “रीमिक्स रस” (श्रृंगार + वीर) का आनंद ले सकते है 😀 और तनाव भरे जीवन में मुस्कुरा सकते हैं..
मेरा प्रेम कोई रेत नहीं जो
हाथों से तेरे फिसलेगा
यह तो वह अनंत सागर है जो
समूचा ही तुम्हे निगलेगा
😀 😀 😀
😀👌
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😁
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Anand to aya pdh ke 😂
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Thank you so much
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wah
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Dhanyavad Sadhana! ☺️
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Kyaa baat….kyaa baat…..
जैसे फूल अपने पंखुड़ी में भौरों को बंद कर लेता है।
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हरेक फूल नहीं, कुछ विशेष प्रजाति के ही फूल ही ऐसा करते हैं ….. 😀
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समझ गया जिसमें एक आप हैं।
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क्या मधुसूदन जी, अब बच्चे की जान लेकर ही छोड़ेंगे 😀
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😁😁😁
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Beautiful Abhay! The concluding verse holds a deep meaning!!
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Though, the set up was deliberately kept as humorous, thanks for gauging it’s depth. ☺️
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Kya baat
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Thanks Devika 😀
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bahut khub Abhay bhaya
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Dhanyavad Danish Bhaiya 😀🙏
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maja aa gaya
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Combination of shringar n veer ras came out to be hasya ras😂😂
Awesome.
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Ha..ha.. It depends on interpretation. Did you see the comment section, Radhika Ji has found it very deep. 😀
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Hehe..yes ofcourse interpretation differs from person to person. But i genuinely found it funny..bcz of d last word “nigal lega”. For me it could’ve been deep if it was smthing like “samet lega” or anything similar:))
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Yes true! Even I laughed while composing it. 😁
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