लाभ हानि और सम्बन्ध ..

मेरे दादा जी कहा करते थे कि शहर और गांव में एक बड़ा अंतर यह है कि शहर में कुत्ते घर के अंदर रहते हैं और गायें घर के बाहर, पर गांव में गायें घर के अंदर होती हैं और कुत्ते घर के बाहर. जब दादा जी गांव छोड़ कर शहर को आये, तो गावों की यह प्रवृति को अपने से दूर नहीं रख पाए. शहर में गावों जैसा बड़ा घर तो नहीं होता, पर फिर भी उन्होंने घर के पीछे के हिस्से में एक गाय को रखने की व्यवस्था कर ही ली. काफी लम्बे समय तक एक गाय हमारे घर पर थी. पर मैंने जब से होश संभाला मैंने किसी गाय को अपने घर में नहीं देखा.

दादा जी ने बताया था  कि परिवार बड़ा हुआ तो गाय को रखने की जगह काम हो गयी. परिवार को गाय के ऊपर तवज्जोह देना तो लाजमी ही है. पर वो कहते थे कि जब मैं ऑफिस से वापस आता था तो मेरा पूरा समय उसकी देख भाल में बीत जाता था. जब वो नहीं रही तो एक खालीपन सा लगता था. मैं दादा जी कि भावनाएं शायद समझ नहीं सकता था क्योंकि जब तक लगाव न हो तब तक भावनाओं को समझना नामुनकिन होता है.

मेरे पापा के मित्र हैं अवस्थी जी. हैं बेहद करीबी. हमारा उनके घर आना जाना लगा रहता है और उनका मेरे घर आना. उनका घर शहर के बहरी छोड़ पर है. मैंने अवस्थी जी को इस लेख में इसलिए खींच के लाया कि उनके घर में भी एक गाय है, नाम है उसका लक्ष्मी. वो है सफ़ेद रंग की. मैं जब भी उनके घर जाता हूँ तो उससे, परिवार के एक अज़ीज़ सदस्य की तरह जरूर मिलता हूँ. मुझे भी लगता है कि शायद वो भी मुझे पहचानती है. जब भी मैं उसके गले के नीचे हाथों से सहलाता हूँ तो वो बड़ी खुश लगती है और ऐसा व्यवहार करती है कि मैं उसको सहलाता ही रहूँ. अवस्थी अंकल कह रहे थे लक्ष्मी बहुत दिनों से घर में है और परिवार के एक हिस्से की तरह. भारतीय दर्शन में गायों का बहुत महत्व है. यहाँ भगवान को भी गोपाल (गाय के चरवाहे) की तरह दिखाया गया है.

मैं कुछ दिनों के लिए शहर से बहार गया था. लौटा तो अवस्थी अंकल के घर भी गया. थोड़ा अचंभित हुआ यह देख कर कि आज वहां लक्ष्मी नहीं थी. आंटी ने बताया कि वह अब वह बूढी हो गयी थी तो उसको हमलोगों ने स्वतंत्र कर दिया.
यह सुनकर मुझे धक्का लगा और मैं सोचा कि “जब वह जब बूढी हो गयी तो स्वतंत्र कर दिया” क्या स्वतंत्रता, बूढ़े होने के बाद किसी काम की होती है? मुझे लगा कि शायद वह अब दूध देने में सक्षम नहीं थी तो घर से निकाल दिया गया. सारे सम्बन्ध भी तो आज कल “Give and Take” सिद्धांत पर चलते हैं!!!

तभी अवस्थी अंकल भी आये. वे थोड़े उदास थे. उन्होंने कहा कि हमारा भावनात्मक लगाव हो गया था लक्ष्मी से. हम रोज उसको दिन में खुला छोड़ देते थे, दिन भर घास चर के वो शाम को ठीक 5 बजे आ जाती थी. घर में कोई भी बीमार होता तो न जाने उसके आँखों से आंसुओं की धार अनायाश ही बहने लगती. हमारे लिए भी उसको बाहर छोड़ने का निर्णय कठिन था.
जब हमने तय किया कि आज से उसका घर खुले में होगा और उसकी जिम्मेवारी उसकी खुद की होगी, उस दिन भी वो शाम को ठीक 5 बजे घर आयी और माँ… माँ… कर हमे पुकार रही थी और शायद कह रही थी कि मैं बहार से घास चर के आ गयी हूँ मेरे लिए दरवाजा खोलो. एक पल के लिए लगा कि खोल दूँ पर चुकि परिवार में निर्णय हो चूका था तो मैं चाह कर भी नहीं खोल पा रहा था. वो माँ.. माँ.. कर चिल्लाते हुए वहीँ पड़ी रही और सो गयी. अगले दिन भी वही हुआ. दिन भर कहीं से घूम कर आयी और फिर से शाम को 5 बजे फिर माँ… माँ… कर पुकारने लगी पर हम सभी निष्ठुर और निर्दयी की तरह बर्ताव करते रहे और पीछे का दरवाजा नहीं खोला. 5-6 दिन ऐसे ही चला. फिर शायद हमारे निर्दय होने का एहसास उसे हो चला था तो उसने आना बंद कर दिया.

अब वह घर के सामने एक मैदान में ही रुकने लगी. उसके आँखों के नीचे हमेशा आंसुओं की धार रहती थी, शायद उसके आंसू अब स्थायी हो चले थे. ऐसा लगता था कि उसकी आँसुएँ मुझसे चीख चीख कर पूछ रही हों कि “मेरी गलती तो बता दो, घर से बेघर क्यों कर दिया”? मैं निशब्द, निरुत्तर बना रहा. 2-3 महीने तक हम उसे रोज मैदान में देखते रहे. पर अब वह इस मैदान में भी नहीं दिखती. यह सब कहकर अवस्थी अंकल चुप हो गए.

मैं सब मौन हो कर सुन रहा था. मन विषाद के गर्त में गोते लगा रहा था. भावनाएं उमर रही थी. लक्ष्मी के गले पर जब मैं हाथें सहलाता था वह अनुभव जीवंत हो उठा…क्या कहीं ऐसा तो नहीं कि लक्ष्मी ने मुझे भी पुकारा हो कि शायद मैं वापस उसे उसके घर में वापस ले आऊं…….कहाँ गयी होगी लक्ष्मी …कोई उसे ले तो नहीं गया..और यदि ले भी गया तो किस उद्देस्य से ले गया होगा….

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24 thoughts on “लाभ हानि और सम्बन्ध ..”

  1. bahut hi khubsurat lekh likha hai abhay ji apne mere ghar me to gaay nahi hai lekin mera ghar jaha hai waha se kuch duri par nadi hai or nadi ke us paar gaay pali gayi hai shayad wah gaay wahi ki wah har roj tino time fix time pe darwaje pe pahuch jati hai meri chhoti bhatiji hai wo fauran aawaz deti hai chachu gaay aa gayi jo hota hai usse de dete hai ab to uska ek bachcha bhi hai lekin bachcha thoda shararti hai wah ab ghar pehchan gaya hai ki yahi khana milega to wah bahar nahi rukta sidha andar chala aata hai ek din to pure aangan tak chala gaya isi liye ab uske hisse ka khana ghar ke darwaje ke paas uske aane se pehle rakh diya jata hai side me taki wah andar bhi aaye to darwaje ke paas hi rahe

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  2. Dil ko jhakjhorta parantu satya varnan …………dog ham marte dam tak ghar men rakhte hain, marne ke baad use jamin bhi mil jaati hai.durbhagya Gayon ke saath jise ham maa kahte hain parantu jab tak dudh deti hai tab tak saath rakhte hain phir apnapan hone ke baad bhi use apni kishmat par chhod dete hain……….dard….wahi anubhav karta hai jo uske saath pal bitaataa hai….
    maine bhi ek baar apni cow bikri kiya tha……jis din bechna tha ek din pahle se hi uske aankho se aansu chhalak rahe they……baad me pataa chala aakhir uski aankhon men aasun kyun thi….bahut khub likha kyaa saare samandh sirf laabh aur haani par tika hai…?

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  3. Your story is touching. I think if we keep an animal, be it dog or cow or cat, we cannot let it go once its utility is gone. Besides, I do not like cows roaming on streets, eating from garbage dumps and eating plastic. It is owners responsibility to take care of ageing animals. These days, we do not look after our ageing parents, so too much to expect for a cow.

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    1. Thanks you. I agree with the concern which you raised about the cow. Indeed its owners responsibility to take care. I wrote it with wider connotation, which intrinsically tried to draw parallel with human life. The problems of ageing parents and apathy of their children towards them is becoming way to serious. Family system is being challenged by western influence.

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        1. My this act of fiction was directed towards two aspects i.e. human and other, of course, the animals especially the Cow. You may recall the Stories of Panchtantra, was narrated in the same fashions, where animals, birds were the chief character.

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  4. बहुत ही अच्छा लेख लिखा है। मुझे बचपन की अपनी गाय याद आ गई। मेरे पिता जी ने उसके मौत के बाद दफनाने के बजाय कफन सहित गंगा जी में प्रवाहित किया दाह संस्कार करके ताकि मरने के बाद किसी जाति के लोग ले जते थे जो मेरे पिता जी को नहीं पंसद था। जब बिमार थी तो मैं बहुत छोटी थी मैं उसे राम नाम लिखकर पानी में घोल कर पिलाती इस विश्वास से की ठीक हो जाय ठीक तो हुई चलने फिरने भी लगी थी पर मौत से जीता है।

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