हिंदी का जश्न मनाते हैं…

आज हिंदी दिवस है. 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी और 1953 से ही हिंदी दिवस को मनाने की परंपरा चली आ रही है. आप सब जो हिंदी पढ़, लिख, बोल और सोच सकते हो, सभी को इस अवसर पर बधाई और जो ये सब नहीं कर सकते उनको विशेष बधाई, आप लोग भी हिंदी को पढ़िए और भारत की सबसे ज़्यदा बोली जाने वाली भाषा का लुत्फ़ उठाइये
आज के दिन मैं अपनी एक कविता को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ जो हिंदी को समर्पित है ….मैंने इसे पहले कभी लिखा था, आज पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ. आशा है आपको पसंद आएगी …

the ETERNAL tryst

हिंदी का जश्न मनाते हैं…

आज़ादी के इतने वर्ष बीत गए,

फिर भी हम खुद को

अंग्रेजी के अधीन क्यों पाते हैं ?

क्यों नहीं हम अब भी

हिंदी का जश्न मनाते हैं?

पश्चिम से है, तो बेहतर है

यह सोच इस कदर घर कर गयी है

हिंदी हमारी प्यारी,

कहीं पिछड़ कर रह गयी है!

सिर्फ अंग्रेजी पर ही नहीं

अंग्रेजियत पर भी हम प्रश्न उठाते हैं

क्यों नहीं हम अब भी

हिंदी का जश्न मनाते हैं?

बदल गया है दौर,

शब्दों के चयन भी बदल जाते हैं

“नमस्ते” कहने से ज़्यादा लोग अब,

“हाय , हैल्लो” कहने में गर्व पाते हैं

बच्चों को “मछली जल की रानी” के बदले

शिक्षक अब, “जॉनी जॉनी” का पाठ पढ़ाते  हैं

क्यों नहीं हम अब भी

हिंदी का जश्न मनाते हैं?

जब चीन, चीनी में है बोलता

जर्मनी जर्मन में मुँह खोलता

रशियन रुसी में आवाज़ लगाते हैं

तो फिर भारतीय ही हिंदी से क्यों…

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14 thoughts on “हिंदी का जश्न मनाते हैं…”

  1. बहुत बढ़िया लिखा है अभय जी।बेहतरीन कविता है।
    बच्चों को “मछली जल की रानी” के बदले

    शिक्षक अब, “जॉनी जॉनी” का पाठ पढ़ाते  हैं—शानदार।

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