ज़लज़ला
रह-रह कर तेरी यादों का
कोई सैलाब सा आता है
लाख बचाता हूँ खुद को
पर मुझे वो बहा ले जाता है
डुबो कर सिर से पांव मेरा
तुम बेपरवाह , वापस चली जाती हो
मैं जर्जर किसी मलबे सा खुद को
जमीं पर बिखरा हुआ पाता हूँ
फिर अपनी टूटी हिम्मत जुटा के
मैं फिर वापस उठना चाहता हूँ
और तभी तुम्हारी यादों का फिर एक ज़लज़ला सा आता है
और मैं फिर मिट्टी की ढेर में बिखर जाता हूँ
तुम कहोगी “तुम खुद ही हो दोषी
ये तो मेरी खता नहीं है”
जानता हूँ, ये सच भी है, पर मैं क्या करूँ
कि खुद पर अब वश मेरा नहीं है
……अभय…..
👍👍
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😊
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वाह क्या खूब लिखा है!!
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शुक्रिया
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लाजवाब अभय जी…..
मैं हूँ,मैं नहीं भी हूँ,
तुम ही तुम हो,
मैं जहां भी हूँ,
ये यादें भी अजीब हैं,
आती है सबकुछ,
डूबा जाती है,
गिरता हूँ,
सम्हलता हूँ,
फिर तेरी यादों में,
खो जाता हूँ,
आंख खुलता जब भी,
खुद को उसी दरिया में
पाता हूँ,
मैं हूँ,मैं नहीं भी हूँ,
तुम ही तुम हो,
मैं जहां भी हूँ।
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Dhanyavaad kahun ya karun taarif…:-P
Chaliye dono ek saath hi keh deta hoon, Thanks and it was an awesome composition 🙂
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sukriya….apka.
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Awesome lines
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Thank you very much.
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Thanks se kaam nahi chalega, mere platform par likhkar famous hone ka tax lagega 😂
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अभी अभी फिर आपकी कविता हिंदी पर्व पढ़कर मैने भी लिखा है।मन कर रहा था आपको समर्पित करूँ बाद में पोस्ट करूँ साथ ही जॉनी जॉनी भी चुराने का मन था फिर सोचा कुछ छोड़ देना चाहिए।
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अरे मैं यही तो कह रहा था!
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😁😁😁
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😜
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Indeed it was 👌
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आपकी कविता से जलजला आ गया। बहुत खूब। मधुसूदन जी को भी लिखने का मैटर दे देते हैं। अच्छा है कमेंट में कविताएँ भी पढ़ने को मिल जाती हैं। दोनों लोगों लिखते रहिये। 👍👌👏💐
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शुक्रिया 🙏
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A beautiful poetry and an equally poetic response by Shri Madhusudan.
Hats off to both of you.
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Thanks Yagnesh! Madhusudan ji is good at it….You may find many of his poem in my comment section which is just immediate and spontaneous. I am privileged to have such nice reader base. 🙂
Thanks once again!
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Awesome poem…🙂
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Thanks Nidhi ☺️
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बहुत खूब ,
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Shukriya Rekha Ji
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वह टूटी झोपड़ी रही ना किसी काम की
तेरी उम्मीदों ने मगर उसे घर रहने दिया….
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Ending is so awesome… Cute poetry..😊
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Thanks so much 😇😇
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