जिद्दी मन..

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Child Labour. Credit: Indian Express

 

पावों में हैं बेड़ियाँ
हाथों में है पाश
मैं खड़ा जमीं पे
पर, दृष्टि में आकाश

सुविधाएँ तो थी नहीं
साधन भी मुझे मिला नहीं
दर-दर की ठोकरे खायीं
पर, किसी से कोई गिला नहीं

सब कहते हैं, भाग्य में हो जितना
केवल, उतना ही तो मिलता है
पर करें क्या कि, जिद्दी है मन मेरा जो कहता
पुरुषार्थ भाग्य बदलता है

……अभय ……

37 thoughts on “जिद्दी मन..”

  1. दर्द को दर्शाती आपकी कविता दिल को छूती हुई। वाकई जिन हाथों को कलम मिलना चाहिए उन्हें जिंदगी से जंग करना पड़ता है उनके बारे में जितना भी लिखा जाए कम है।ये सच है कि मजदूर देश के रीढ़ हैं मगर बाल मजदूरी अभिशाप।बहुत बढ़िया लिखा आपने।

    पैरों में बेड़ियाँ,
    हाथों में पाश,
    हाय रे बिधाता,
    क्या मेरा था पाप,
    हाय रे बिधाता,
    क्या मेरा था पाप।।

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    1. शुक्रिया मधुसूदन जी, आपकी प्रतिक्रिया मेरी कृति को और भी बेहतर बनती है..वैसे बेहतर है कि नहीं ऐसा आपने ही कहा है 😛

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