मेरा मन जहाज़ सा,
उड़ने वाला नहीं
तैरने वाला,
पानी का जहाज
और तुम सागर सी,
हिन्द महासागर नहीं
प्रशांत महासागर
अथाह, असीमित, अन्नंत
मन चंचल था मेरा,
तैरता तुममें
कभी शांत
कभी हिचकोले करता हुआ
पर वह अब डूब रहा है
गर्त में, तह तक
जैसे किसी सागर में कोई
जहाज डूबता है,
अस्तित्व को भुला
जैसा कि पहले
कोई, कुछ था ही नहीं
केवल सागर का सन्नाटा
और लहरों के हिचकोले
सिर्फ तुम ही तुम,
मैं स्तब्ध, शुन्य, मौन!
……..अभय…….
Nice poem.
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Thanks for the appreciation Sir, pleased that you liked it.
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Beautiful poem !!
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Thanks 😊
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Beautiful lines
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Thanks so much.
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बेहतरीन कविता मुझे भी कुछ लिखने को मजबूर कर दी …..शायद आपकी कविता के संग न्याय होगा की नहीं मैं नहीं जानता फिर भी आपको समर्पित शायद आपको पसंद आये.
सच में तुम जलप्रलय जैसी,
मैं हिचकोले खाता नाव,
तेरी इन बेताब लहर से,
टकराता,बलखाता नाव||
मेरा मन था शांत हवा,
जैसे तूफ़ान के पहले,
जलप्रलय से टकराने को,
मेरा मन भी मचले,
कभी शांत हिचकोले खाकर,
संग-संग तेरे बहता नाव,
तेरी इन बेताब लहर से,
टकराता,बलखाता नाव||
तुम जलप्रलय उबल रही थी,
सृष्टि को दफनाने में,
मैं लहरों संग उछल रहा था,
जैसे नहीं जमाने में,
मगर शांत मन कब सो बैठा,
अपनी सुधबुध कब खो बैठा,
तेरी एक बिशाल लहर में,
डूब गया पानी का नाव,
तेरी इन बेताब लहर से,
टकराता,बलखाता नाव||
बुझता दीपक तेज है जलता,
मिटता तारा तेज चमकता,
पानी के बुलबुले बड़े तब,
सब कहते बारिस है थमता,
वैसे मैं भी तेज हुआ था,
जीवन जैसे खेल हुआ था,
जलप्रलय के तह पाने को,
जलआंधी सा मेल हुआ था,
मगर शांत तुझमें खोकर,
निस्तेज पड़ा फिर मेरा नाव,
तेरी इन बेताब लहर से,
टकराता,बलखाता नाव||
तेरी इन बेताब लहर से,
टकराता,बलखाता नाव||
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हा.. हा.. बहुत ख़ूबसूरत है मधु भाई..बहुत अच्छा लिखा है आपने..मुझे अच्छा लगा की मेरे इस प्रयास ने आपको सोचने पर विवश किया और एक अच्छी कविता का सृजन हुआ..अपने ब्लॉग पे भी पोस्ट कर दीजिये और हाँ मुझे क्रेडिट देना मत भूलियेगा 😛 🙂
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ha ha ha……..apke saujanya se mere blog par lagbhag pandrah aisi kavita hai jo sadaa aapki yaad dilaati rahegi…..bhale hi ham wordpress se alag kyun naa ho jaayen……sukriya apka.
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मैं तो कुछ से कुछ लिखता रहता हूँ..अनायास ..निरर्थक.. आपका शुक्रिया कि आप उसमें अर्थ ढूंढ लेते हैं …
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bataayeeye jab aap nirarthak aisaa likhte hain jismen arth hi arth hai phir saarthak pahal karenge to pataa nahi….duniyan ko kyaa milega….ha..ha..haa…..waise abhi nirarthak lekh se bhi ham badhiya se kaam chala lenge.
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🙂
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बहुत ही अच्छा लिखा है आपने मधुसूदन जी लेकिन नाव और समुद्र के शिप यानी जहाज में बहुत फर्क है। नाव अर्थात बोट नदी के लिए प्रयोग में आता है। बुरा मत मानिएगा मैं बस शब्दों पर ही ध्यान देती हूँ। आप की कविता तो मानना पड़ेगा बेहतरीन है पर यहाँ अभय जी ने सागर में जहाज का वर्णन किया है मैं जहाँ तक जानती हूँ जहाज या तो उड़ने वाले को कहते या सागर चलने वाले को जहाज का अर्थ लिया जाता है नाव कितना ही बड़ा क्यों न हो शिप नहीं कहा जा सकता बल्कि बेड़ा शब्द भले ही यूज किया जा सकता है। अभय जी और मधुसूदन जी दोनों से माफी चाहूंगी। मुझे जो ज्ञान रहता है वह बता देती हूँ ताकि सुधार हो सके। क्योंकि ज्ञान ही ऐसा वस्तु है जो बांटने से बढती है घटती नहीं।
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मधुसूदन जी की रचना मौलिक है न कि मेरी कविता की व्याख्या और न ही विश्लेषण! वह स्वतंत्र हैं कि सागर में उनकी नाव तैरे या जहाज!😀
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मुझे भी जो समझ में आया वो मेरा अर्थ करने का स्वतंत्र विचार है क्योंकि उम्मीद करती हूं कि आप को तो पता होगा कि हिंदी में एक शब्द के कई अर्थ निकते हैं और हिंदी में एक बिंदी भी अर्थ का अनर्थ निकाल देता है और मेरी माँ हमेशा कहती थी कि हाईस्कूल का टीचर केवल हाईस्कूल ही पास करा सकता है अब रिसर्च तो करा नहीं दे गा। तो मैं मधुसूदन जी को नाव की जगह जहाज करवा के उनके कविता में चार चाँद लगाने की कोशिश कर बेहतर बनाने की कोशिश कर रही थी और कुछ नहीं।
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सही है!
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फर्क तो पडेगा न अब नाव ले आज के जमाने में समुद्र में कोई सैर करने निकल जाऐं यानी मधुसूदन जी तो समुद्र में नाव के साथ सैर करने का बड़े बड़े लहरों में ये शायद सबको पता होना चाहिए। हा हा हा हा।
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माफ कीजियेगा—खुशी की जगह गलती से झुश लिखा गया है।।
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बहुत झुश हुई आपने अपने बहुमूल्य विचार दिया और अच्छा लगता है जब आप भूल सुधार करवा कर कविता में चार चांद लगा देती हैं।वैसे मेरे मन मे एक भाव आया और लिख दिया जिसका अभय जी की कविता से कोई तुलना नहीं।
आप शुरू से पढ़ेंगे तो पाएंगे मैं नाव ही हूँ और जलप्रलय आया है जो सारे संसार पर हावी हो मुझे निगलना चाहता है और मैं कभी समन्दर देखा ही नहीं पगला इस जलप्रलय की लहरों को खेल समझ हिचकोले ले रहा हूँ और अंततः अपना निस्तेज हो जाता हूँ।।
भला नाव समन्दर में नही चल सकता वह जलप्रलय से कितना देर मुकाबला करता।वैसे जितना देर उसकी लहरों के साथ रहा जीवन का बहुमूल्य और शायद सबसे कीमती दिन था। जलप्रलय मेरे पास आया था मैं नाव तो तालाब में ही खुश था।भला मैं नाव तत्क्षण जहाज कैसे बन जाता।।सुक्रिया आप ऐसे ही विचार देते रहिये और फिर भी आपको लगता है तो अपने विचार जरूर दें क्योंकि बिना आपके विचार के कविता अधूरी लगती है।।हमे तो मिहताना ब्लॉग पर डालने के पहले ही मिल गया।।
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Well written!
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Thank You !!!
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बहुत अच्छा लिखा सर
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शुक्रिया सर की आपको पसंद आया🙏
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Hind mahasagar nahi prashant mahasagar lazwab
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Shukriya Gaurav bhai..Ab Gehrai ko vyakta karne ki isse acchhi upma nahi dhoondh pa raha tha. 🙂
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बहुत ही खूबसूरत रचना है। पता नहीं सार्थक या निर्थक पर शब्दों में प्रशांत महासागर सा गहराई जरूर है। जो शब्दों में गोताखोरों की तरह जितना गहराई तक जाएगा वो उतना ही शब्द रुपी मोती पायेगा।
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आशा है कि आपको पसंद आया होगा 🙏
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Nice
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Thanks!
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Wonderful. 😊
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Thanks so much!
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It was nice 🙂
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Thanks!
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If you have time ,Read my poems in hindi 2 or 3 will be there 🙂
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Will do! But here you will not find just 2-3 but many😁
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That’s wonderful then 🙂
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बहुत खूब !
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धन्यवाद सर😊
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वैसे जनाब को कविताएं और संस्मरण लिखने का शौक है तो शाॅर्ट स्टोरीज भी कभी-कभार पोस्ट कर दिजिये ! (चाहे किसी भी जेनर के, लव स्टोरी तो ओवरऑल सबकी तरह मुझे भी पसंद है !)
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एक दो प्रयास किया है, ब्लॉग के अतीत में जायेंगे तो शायद मिले! आपका बहुत आभार
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ओके ! वैसे भी मुझे वही रोमांटिक शाॅर्ट स्टोरी पसंद है, हो सकता है future में इसकी भी काॅमिक्स निकालूं ! आगे समय जानें !
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