निहत्था ..

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मैं निहत्था हूँ कब से
और तेरे हाथों में है दो-धारी तलवार
पर इतनी हड़बड़ाहट से, घबराहट से
तुम उसे क्यों चला रहे हो ?
कि मैं सुरक्षित हूँ
और तुम खुद ही को
घायल करते जा रहे हो !
कि तुम दो पल साँसे धरो
पूरी ताकत इकट्ठी करो
और फिर जो हमला करना ही है तो,
जम के करो, दिल से करो 😉

…….अभय……

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31 thoughts on “निहत्था ..”

    1. हम्म्म….जी ..प्लॉट कुछ ऐसा है कि सामने वाला, मान लिया कि X :-p मुझपर हमला करना चाहता है, पर वह अपने इस प्रयास को लेकर आश्वस्त नहीं है..दृढ निश्चयी नहीं है…उसे अपनी शक्ति और सामर्थ्य पर संदेह है..और यह डर भी कि कहीं मैं कोई करारा जवाब न दे दूँ 😛 ..तो सामने वाला डर-डर हमला कर रहा है ..मेरा बस उससे इतना ही कहना है कि अगर उसका उद्देस्य मेरे अस्तित्व को मिटाना ही है तो यह प्रयास वह पूरे मन से करे..यूँ आधे अधूरे प्रयास से उसे ही नुक़सान हो रहा होगा..और यहाँ पर “मैं” लाक्षणिक (emblematic, symbolic) है ..वह कोई भी हो सकता है, आप भी :-), जिसके भी मन में मेरे पंक्तियों का भाव आता हो..
      बस यही भाव था..कुछ ज़्यादा ही जटिल हो गया क्या? भाव कैसा लगा आपको?

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      1. ham kitna samjh paaye ham nahi jaante parantu jitna bhi samajh paaye usey likhna chahta hun …..saath hi dar lagta hai koyee vivaad naa ho jaaye…..phir bhi aadat se lachaar aur apke taraf se koyee rukawat nahi…..pesh karta hun…….shayad apko pasand aaye……

        अपना है कोई आस-पास,
        जिसकी बातें दोधारी,
        घबराहट और तलवार साथ में,
        ले रखा दोधारी,
        हम अडिग खड़े हैं पास निहत्थे,
        खुद ही मिट जाने को,
        या बिना अस्त्र के ही रण में,
        कुछ अद्भुत कर जाने को,
        वह पास में आता अनगिनत,
        शब्दों का तेग चलाता,
        अपने ही तेग से घबराहट में,
        खुद घायल हो जाता,
        मैं बोल पड़ा दो पल ठहरो,
        अपनी साँसों में बल भर लो,
        पूरी ताकत से तब मुझपर,
        ऐ दोस्त मेरे हमला कर दो,
        फिर भी है खून से लतपथ अपने,
        तेग लिए दोधारी,
        अपनी शब्दों में झुलस रहा,
        फिर ये कैसी लाचारी ,
        अपनी शब्दों में झुलस रहा,
        फिर ये कैसी लाचारी ||

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        1. Haha… Vivad Kyon Bhai? Kab hua ye vivad mere post pe?
          Ek baar fir umda likha aapne..Jo meri lekhni ko padhenge aur fir baad me comments, unko ek hi vishay pe do version mil jayenge.. 🙂

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        2. बहुत ही अच्छा लिखा है आपने मधुसूदन जी। माफी चाहूंगी इसे विवाद मत समझिएगा। सुना है तलवार की लगी घाव भर भी जाती है पर शब्दों से मिले घाव कभी नहीं भरते सो जो दोस्त होगा तो दोनों सूरत कभी दोस्त पर वार नहीं कर सकता अब दोस्त दुश्मन बन जाय तो अलग की बात है और जब दोस्त दुश्मन बन जाय तो उसे केवल दोस्त कह इंडिकेट नहीं कर सकते।

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    1. Thank You Sir!!! Well, it’s generic and not directed to any particular …I think this post has created a lot of confusing, even Madhusudan ji also asked for explanation and I have explained it. 🙂

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  1. I think you are encouraging your imaginary enemy…and this shows you are a real hero.
    जो अपने दुश्मनों का भी हौसला बढ़ाये,
    वही तो वीर योद्धा कहलाये।

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    1. Oh Yes Nimesh!!! You hit the bulls eye. This is what I intended to convey but with one difference from your interpretation. I will not call him enemy but rather an adversary. Your Hindi lines has given a succinct yet power-packed explanation. Thank You so much!

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    1. Yes You have 🙂 I think, I have created a mess here, it’s becoming more of a puzzle than of a poem 😛
      But Frankly speaking, I don’t find it as enigma, may be not straight as an arrow, but decipherable.

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  2. शब्द ही दो धारी तलवार नहीं।
    विज्ञान भी दो धारी तलवार है।
    सम्मोहन भी दो धारी तलवार है।
    मीडिया भी दो धारी तलवार है।
    शब्दों के दो धारी तलवार से नासमझ निहत्थे पर वार कर ह्रदय किसी का चिर दिया।
    द्रोणाचार्य ने भी दो धारी तलवार चलाया और एकलव्य का सब कुछ छिन लिया।
    बहुत खूब अभय जी। बहुत ही अच्छा लिखा है आपने। ये मेरी मूल रचना जिसका अर्थ मुझे खुद भी पता नहीं। पर आपके रचना और आपके कविता के कमेंट से प्रभावित होकर लिखा है। कुल गलत हो तो आलोचना समालोचना अवश्य कर सकते हैं। लेखनी की दुनिया में आलोचक और समालोचक ही होते हैं।

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