जीत-हार

One of my Old Creation! I revisited it today, sharing with you all. Hope you all would like it.

the ETERNAL tryst

जीत-हार

हार के कगार पे

बैठे जो मन हार के

आगे कुछ दिखता नहीं

अश्रु धार थमता नहीं

शत्रु जो सब कुछ लूट गया

स्वजनों का संग भी छूट गया

ह्रदय वेदना से भरी हुई जो

खुद की बोझ भी सहती नहीं वो

याद रहे हरदम

ज़िंदा हो अभी , मरे न तुम

वह कल भी था बीत गया

यह पल भी बीत जाएगा

एक संघर्ष में हार से

युद्ध हारा नहीं कहलायेगा

सत्य धर्म के मार्ग चलो

हार से तुम किंचित न डरो

सत्य धर्म जहाँ होता है

वहीं जनार्दन होते हैं

जहाँ जनार्दन होते है

वहीं विजयश्री पग धोती है

……अभय…..

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8 thoughts on “जीत-हार”

  1. बहुत बढ़िया कविता।।दुबारा पढ़ने को मिला ।।
    ना हार से, ना रार से,
    ना डर कभी तूँ काल से,
    है जंग एक जिंदगी,
    ना डरना महाकाल से,

    Liked by 2 people

      1. जब सत्य पथ पर हैं फिर महाकाल से कैसा डरना।जो सत्य पथ पर है फिर महाकाल साथ है फिर सामने महाकाल भी आये तो क्या डरना।अगर नही लड़े तो महाकाल का तौहीन होगा।बजरंग बली भी सत्य पथ पर महाकाल से लड़े तभी वे खुश भी हुए।रणछोड़ कर जानेवाले से तो महाकाल भी दुखी हो जाते हैं और क्या पता सामने महाकाल है या बहुरूपिया।अगर महाकाल हैं तो डरना कैसा और महाकाल नही बहरूपिया है तो डरना कैसा।

        Liked by 2 people

        1. भाई..सत्य कभी-कभी संदेहास्पद होता है..कौन तय करेगा की सत्य क्या है ? पता चला, वर्षों से हम जिसे सत्य समझते थे, वह तो मात्र छलावा था .. 🙂

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