रेस्टोरेंट का खाना ..

उम्र 13-14 की होगी. नीचे से उसके शर्ट के दो-तीन बटन टूटे हुए थे, जब वह दौड़ कर अपने पिताजी की तरफ़ आ रहा था तो हवा में उसकी शर्ट फैलने लगी, ऐसा लग रहा था जैसे आकाश में कोई विशालकाय पक्षी अपना पंख फैलाये उड़ रहा हो. पावों में चप्पलें तो थी, पर मटमैली सी,पुरानी और घिसी हुई..पर चेहरे के हँसी और ख़ुशी में कोई घिसावट नहीं. एकदम निश्छल, स्वछंद और आत्मविश्वास से भरी हुई..

रौशन के पिताजी ने उसके चेहरे के भावों को पढ़ लिया और ख़ुशी से पूछा “पास हो गए दसवीं?” रौशन ने कहा “पपा, दसवीं में हम जिले में तीसरे नंबर पर आएं हैं”. पिताजी, जो शहर के बाहरी छोड़ पर हो रहे निर्माण स्थल           (कंस्ट्रक्शन साइट) पर एक दिन में 200 रुपये की मजदूरी कर, वहां से 12 किलोमीटर दूर साइकिल चलाकरअपने छोटे से घर में दिन भर की थकान से चूर बैठे थे, अनायास ही उनकी सभी थकावटें जाती रही और उन्होंने भावविभोर होकर बोले “शाबाश, बेटा!!!”
साइकिल से अपने कार्य स्थल पर जाते हुए एक बहुत खूबसूरत रेस्टोरेंट को रौशन के पापा रोज देखते थे, और सोचते थे इसमें साहब लोग अपने दोस्तों, परिवार के सदस्यों के संग खाने को आते होंगे और यह भी सोचते थे कि किसी ख़ुशी वाले दिन वो भी अपने लोगों को लेकर इस होटल में जरूर आएंगे. पर उनके मन में संदेह रहता था कि क्या वहां का खर्च वो वहन कर पाएंगे, उनकी आमद ही कितनी ? यदि महीने के तीसो दिन काम करें तो भी 30 गुणे 200 मतलब 6000 के महीने. पर आज उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था और उन्होंने रौशन से कहा कि चलो आज तुम्हे ऐसा खाना खिलाएंगे कि तुमने खाया नहीं होगा. रोशन भी बहुत खुश, अपने पिता की ख़ुशी देख उसका सीना गर्व से प्रफुल्लित था.रौशन के पिता ने सोचा कि कितना महँगा होगा खाना, अपने दो दिन की कमाई को उन्होंने जेब में रख लिया और सोचा कि भले ही पूरी रकम खत्म भी ही जाये तो आज गम नहीं है

दोनों रेस्टोरेंट के गेट पर पहुंचे, गेट पर खड़े चौकीदार ने संदेह भरे आँखों से देखा, पर दरवाजा खोल दिया. रेस्टोरेंट को देख रौशन के मन में संदेह हुआ कि यह तो बहुत महँगा होगा और उसने अपने आशंका पिताजी को बताई, उसके पापा ने बोला कि आज ख़ुशी का मौका भी तो है, रौशन मुस्कुराया.

सामान्य लोग पहले किसी वास्तु का मूल्य पूछते हैं फिर चीजों को पसंद करते हैं, पर जो संपन्न होते हैं वो पहले चीजों को पसंद करते हैं फिर उसका मूल्य जानते हैं.
इसी प्रवृति का परिचय देते हुए कि कहीं खाने के बाद शर्मिंदगी न झेलनी पड़े इसलिए उसके पापा ने पहले खाने का दाम पूछना उचित समझा और रेस्टोरेंट के किसी कर्मचारी को बुलाकर उन्होंने ने जानकारी लेनी चाही..वेटर ने कहा एक प्लेट खाने की सबसे कम कीमत 500 रुपये! पिताजी के होश ही उड़ गए. उनके जेब में दो दिन की पूरी कमाई 400 रुपये थे, पर वह एक व्यक्ति के लिए एक वक़्त के खाने के लिए भी कम हो रहे थे. रौशन ने उनके चेहरे के बदलते हुए भाव को बख़ूबी पढ़ लिया. उसने बचपन से ही भावों को पढ़ना सीख लिया था. वेटर वहां से किसी और ग्राहक के पास चला गया .. रौशन ने अपने पापा से कहा “पपा, चलिए यहाँ से चलते हैं” पापा ने बोला “तुम कहीं नहीं जाओगे, यहाँ थोड़ी देर रुको, मैं घर से 100 रुपये लेकर आता हूँ, कम से कम तुम तो खा लोगे, मैं तुम्हें इतने शौक़ से लाया हूँ, भूखे नहीं जाने दूंगा” रौशन ने कहा “पपा, आपको लगता है हम ऐसा करेंगे? आप नहीं खाएंगे और हम यहाँ खा पाएंगे ?” पिताजी के आँखों में आँशु के कुछ बूंदें गहरी होने लगी थीं , और फिर उनके बेटे ने कहा कि “वैसे भी मुझे यहाँ का खाना अच्छा नहीं लगेगा, चलिए यहाँ से “. जो आँशु घने बादल के समान आँखों में मंडरा रही थी, अब उसने आँखों में उसने धार का रूप ले लिया था.. दोनों निकल ही रहे थे की वेटर ने पूछा “सर, आपलोग कुछ लेंगे नहीं?” रौशन ने कहा “आज नहीं, फिर कभी आएंगे”

22 thoughts on “रेस्टोरेंट का खाना ..”

  1. बहुत खूबसूरत कहानी के साथ गरीबी का बहुत खूब वर्णन ……
    जो संपन्न होते हैं वो पहले चीजों को पसंद करते हैं फिर उसका मूल्य जानते हैं मगर सामान्य लोग पहले किसी वास्तु का मूल्य पूछते हैं फिर चीजों को पसंद करते हैं,मगर जब कभी दिल से किसी बस्तु पर हाथ रखते हैं और पैसे के आभाव में उसे नहीं खरीद पाते तो आँखों से आंसू छलक जाते है…….हाय रे गरीबी !
    ठीक वही तो हुआ रौशन के पिता के साथ जो बेचारा बिना खाये कीमत जान होटल से लौट पड़ा ………

    अरमानो की चिता जली,
    आँसू बन बरसे अंगारे,
    हाय गरीबी कितनी जालिम,
    लौट गए वे मन मारे,

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    1. धन्यवाद मधुसूदन जी, आपकी चंद अंतिम पंक्तियों का जवाब नहीं! कथा का भाव समेटे हुए!

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  2. We try to celebrate our success in a way that seems expensive and it is difficult to afford. I think the taste of success is sweeter than any celebration.
    This is a nice story to show the pictures of poverty. You have managed situations and events successfully.
    Thank you.

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    1. Those who remain in the state of constant deprivation, they also wish to emulate the methods of celebration of privileged class, and I think its human approach, so we can’t expect them to be idealist when they are jubilant!
      Thank you so much for reading it and for your kind words!

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  3. A nice reflection of deep sentiments and moral values.
    I feel the best part of growing in financial poverty is richness in morality and virtues. Growing in a grounded background,I feel maturity is a boon that boon that comes so early as we learn to mould ourselves according to the crisis and alter our demands accordingly rather than being blind and wild with our choices.

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    1. Well, its not always so! Poverty brings a lot harsh realities of life, which may militate against the dignity of individuals, in that case his act may also go against the acceptable norms of the society!

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