पर्यावरण संरक्षण
सड़के हो रही हैं चौड़ी
पेड़ काटे जा रहे!
बांध बनाकर नदियों के
अविरल प्रवाह हैं रोके जा रहे!
ध्रुवों से बर्फ है पिघल रहा
समुद्रों का जल भी है बढ़ रहा ,
कहीं तपिश की मार से,
पूरा शहर उबल रहा!
कहीं पे बाढ़ आती है
कहीं सुखाड़ हो जाती है,
तो कहीं चक्रवात आने से
कई नगरें बर्बाद हो जाती है
कहीं ओलावृष्टि हो जाती है
तो कहीं चट्टानें खिसक जाती है
प्रकृति का यूं शोषण करने से,
नाज़ुक तारतम्य खो जाती है
है देर अब बहुत हो चुकी
कई प्रजातियां पृथ्वी ने खो चुकी
सबका दोषी मानव ही कहलायेगा,
पर्यावरण संरक्षण करने को जो
अब भी वो कोई ठोस कदम नहीं उठाएगा!
………….अभय ………….
You must be logged in to post a comment.