पर्यावरण संरक्षण

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पर्यावरण संरक्षण

सड़के हो रही हैं चौड़ी

पेड़ काटे जा रहे!

बांध बनाकर नदियों के

अविरल प्रवाह हैं रोके जा रहे!

ध्रुवों से बर्फ है पिघल रहा

समुद्रों का जल भी है बढ़ रहा ,

कहीं तपिश की मार से,

पूरा शहर उबल रहा!

कहीं पे बाढ़ आती है

कहीं सुखाड़ हो जाती है,

तो कहीं चक्रवात आने से

कई नगरें बर्बाद हो जाती है

कहीं ओलावृष्टि हो जाती है

तो कहीं चट्टानें खिसक जाती है

प्रकृति का यूं शोषण करने से,

नाज़ुक तारतम्य खो जाती है

है देर अब बहुत हो चुकी

कई प्रजातियां पृथ्वी ने खो चुकी

सबका दोषी मानव ही कहलायेगा,

पर्यावरण संरक्षण करने को जो

अब भी वो कोई ठोस कदम नहीं उठाएगा!

………….अभय ………….

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वो रास्ता..

Blast From the Past…

the ETERNAL tryst

contemplation Credit: Internet

वो रास्ता..

सच्चाईयों से मुँह फेरकर,

मुझपर तुम हँसते गए

दल-दल राह चुनी तुमने,

और गर्त तक धसते गए


खुद पर वश नहीं था तुम्हें ,

गैरों की प्रवाह में बहते गए

जाल बुनी थी मेरे लिए ही,

और खुद ही तुम फँसते गए


नमी सोखकर मेरे ही जमीं की,

गैरों की भूमि पर बरसते रहे

सतरंगी इंद्रधनुष कब खिले गगन में,

उस पल को अब हम तरसते रहे

……….अभय ………..

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आस्तिक हूँ या नास्तिक हूँ ?

मैं तुम्हें ढूंढता हूँ
तब , जब कि मैं खुद को खाई में पाता हूँ
मुझे तुम्हारा ध्यान कहाँ
जब मैं शिखर पे छाता हूँ ..

मैं संबंधों के सिलसिले में मशगूल
अक्सर तुम्हे भूल जाता हूँ ,
और जब तनहाई आती है
तो सिर्फ तुम याद आते हो..

तुम होते हो, तो एक यकीं होता है
कि चलो कोई तो हरपल है, जो मेरी फिक्र करता है
पर मैं विलासिता में मशगूल
तुम्हे नज़रंदाज़ करता हूँ ..

मैं शर्मसार हूँ , अपने दोहरे चरित्र से
पर निवेदन है कि तुम फिर से आ जाओ
अपने जाने पहचाने से, अनजाने को
फिर से आलिंगन कर जाओ

………अभय ………