अपना शहर ..

आज वर्षों बाद फिर से मैं
तेरे शहर को आया
वो सारी गालियाँ थी पहले सी
पर घर कुछ बदला-बदला सा पाया

कुछ वृक्षों से पुरानी दोस्ती थी
वे झूम झूम कर लहराए
उनमे से तो कुछ ने स्वागत में
मुझ पर अपने पत्ते भी गिराए

सोचा कि तुमसे मिलूंगा
कई सतहों में थी जो दबी, बातें करूँगा
मन ही मन में तेरे घर का दरवाजा भी खटखटाया
पर घर के अंदर से मैंने, कोई प्रत्युत्तर नहीं पाया

क्या तुम अपने घर ही से
अपना मुख मोड़ गए ?
क्या मेरी तरह ही तुमने भी इस शहर को
अपने ही शहर को, छोड़ गए !!!

………अभय…….

 

 

30 thoughts on “अपना शहर ..”

    1. विरोधाभास को व्यक्त करने का एक प्रयास था! शुक्रिया मधु भाई 🙂

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        1. हा हा! उपमा अलंकार के गलत प्रयोग का जीवंत उदाहरण 😂
          आजकल ब्लॉग पर मेरी उपस्थिति बेहद सीमित है, यथोचित समय पर अवश्य विचरण करुंगा! आभार! 🙏

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  1. This is life ! When we leave a place, we leave memories as well. Time sadly creates such a rift that sometimes we tend to forget even the beautiful relations that we formed in that place such that when destiny bring us to the same place,there is nothing left other than the thoughtful remains even though the things and places may seem stagnant.
    Simple yet thoughtful👍

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