द्वंद्व

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धूप शीतल
छाँव तप्त
जिसे वर मिला था
वही अभिशप्त

जो दृढ खड़ा था
संदेह में है
अकर्मण्यता से
नेह में है

जो पथप्रदर्शक था
पथभ्रष्ट है वो
शिथिलता से
आकृष्ट है जो

नित्य स्वरूप का उसे
कोई तो स्मरण कराये
इस हनुमान को
कोई जामवंत तक ले जाये

………अभय ……..

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28 thoughts on “द्वंद्व”

    1. यह भी एक पक्ष है! शुक्रिया अपने विचार व्यक्त करने के लिए!

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  1. वाह अभय जी क्या बात है? बहुत खूब। कम लिखते हैं पर हर रचना में नयी सोच। द्वन्द्व को अंतर्द्वन्द्व में परिवर्तित कर सीताऔर राम को लाना होगा और इस तरह तो फिर रमायण की रचना होगी तब तो हनुमान को जामवंत तक पहुँचाया जाएगा और वाल्मीकि की तरह कोई ऐसा नहीं जो घटने वाले घटनाओं को पहले लिख सके। इसके लिए कलयुग में यूनिक रमायण की रचना करनी पड़ेगी जिसमें कल्कि का अवतार हो। वैसे मैंने लिखना छोड़ दिया है कुछ दिनों के लिए इसलिए आपके रचना से मेरे अन्तर्मन में जो भाव आया कमेंट में लिख दिया। अब मैं आगे लिखने के लिए लोगों के अन्तर्द्वन्द्व अर्थात अन्दर चलने वाले द्वन्द्व को और अंतर्द्वन्द्व को पढती हूँ।

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    1. यौरकोट पर लिखे होते तो collab जरूर करती पर यहाँ अपनी बातों को कमेंट से ही रख दिया है। पता नहीं कहाँ तक सच है या मेरी केवल कोरा कल्पना ही है।

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    2. शुक्रिया आपका कि आपने अपनी प्रतिक्रिया दी और आपको मेरी रचना पसंद आयी!

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  2. दुनिया में ऐसी विरोधाभासी परिस्थिति अक्सर होती है . जहाँ ग़लत को सही और सही को ग़लत कहा जाता है. अच्छी अभिव्यक्ति .

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