
धम से गिरे
धरनी पर
शिखर से,
ज़ख्म गहरा हुआ
चोट हरा हुआ
पर गिरने का यह पहला
वाक़या तो न था
कई पहले भी लुढ़के
गिरे गर्त में
वर्षों तक
सिसकते रहे
मरणासन्न रहे
संवेदनहीन रहे
निर्जीव सा गौण रहे
व्योम सा मौन रहे
पर लड़ते रहे
जूझते रहे
झुलसते रहे
आपदाओं में
विपदाओं से
लोगों की विष भरी
बोली से
आलोचकों की अगणित
टोली से
तो तुम जो गिर गए
तो इसमें नया क्या था?
कि अब तुम उठते ही नहीं
कि तन के ज़ख्म भी
जब सूखते हैं
हम उसे कुरेदते नहीं हैं
तो मन के ज़ख्म पर
ये अत्याचार क्यों?
स्मरण रहे कि
जो शिखर पर तुम पहुंचे थे
तब भी पुरुषार्थ लगा था
फिर से पुरुषार्थ लगेगा
कि तुममें जो नैसर्गिक है
वो भला तुमसे कौन लेगा?
कि अब दुर्बलता छोड़ो
कि सब तैयार हैं
हिमालय की
सबसे ऊँची चोटी को
बस तेरा इंतज़ार है
…….अभय …….
कविता का भाव आप लोगों तक पहुंचा हो, तो अपने भाव मुझ तक पहुँचाना न भूलें 🙂
शब्द सहयोग:
गौण: Subordinate, Secondary
व्योम: Sky, Space
नैसर्गिक: Inherent
Reading your poem gives a beautiful feelings as they are always different variations on the feelings shared!! A deep understanding from core of the heart
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Thank you so much for reading my poems and regularly motivating me through your valuable comments. It means a lot!😊
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My pleasure
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Last two lines were amazing
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Shukriya 😊
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मन के हारे हार है मन के जीते जीत को चरितार्थ करती आपकी ये कविता।लीजिये आपकी प्रेरणा से एक और छोटी सी कविता बन गयी।
रब से तुम क्या मांग रहे हो,
खुद निर्बल क्यों मान रहे हो,
क्यों बैठे हो मौन तुझे क्या गम बोलो इंसान रे,
खुद से ज्यादा ताकत दे भेजा तुमको भगवान रे।
गिरते वही जो चढ़ते हैं,
कब पुरुषार्थी डरते हैं,
पर्वत,सागर,बियावान
जंगल में राहें गढ़ते हैं,
एक चूक धम गिरे धरा पर,
मुड़कर देखो शिखर कहाँ पर,
आंखों से दिखती मंजिल फिर क्यों मातम नादान रे,
खुद से ज्यादा ताकत दे भेजा तुमको भगवान रे।
देख ले तिनके चुन चुनकर,
चिड़ियाँ आसियाना गढ़ती है,
कितने तिनके गिर जाते
फिर भी क्या चिड़ियाँ थकती है,
सूक्ष्म चीटियाँ को देखो
कितनी अवरोधें आती हैं,
मगर राह को छोड़ कभी ना
चीटियाँ वापस जाती हैं,
कितने जीव का नाम गिनाऊँ,
किसके तुल्य तुझे दिखलाऊँ,
सर्वश्रेष्ठ हो तुम दुनियाँ में खुद को तुम पहचान रे,
खुद से ज्यादा ताकत दे भेजा तुमको भगवान रे।
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क्या बात है भाई! बस आपकी सृजनात्मकता का जवाब नहीं।
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हा हा।हौसला बढ़ाना कोई आपसे सीखे।सुक्रिया आपका।
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बहुत ही खूबसूरत कविता है।👌👌
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रचना के क्रम में मुझे भी अच्छी लगी थी। शुक्रिया
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भाव और शब्दों का चुनाव भी बेहतरीन है।
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कभी कभी आवाज़ आती है और कभी कभी सुन भी लेता हूँ! आप सबका धन्यवाद जो आप सब पढ़ते और सराहते हैं।
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मैं भी हिमाचल की यात्रा का वर्णन किया है। यात्रा वर्णन कुछ खास नहीं है पर रियल सीनरी और रीयल पिक देखिएगा उम्मीद करती हूं आपको पंसद आयेगा।
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