मेरी तरफ से आप सभी को हिंदी दिवस की असीम शुभकामनायें. चुनौतियों से भरा प्रहर है. आज जब भारत में अंग्रेजी भाषा बुद्धिजीवी व्यक्तियों का परिचायक बन चुकी है, तो अन्य भाषाओं में विचार व्यक्त करना एक चुनौती है इस विषम परिस्थिति में दृढ विश्वास और गर्व के संग हिंदी भाषा का ध्वज वाहक बने रहिये और स्मरण रहे कि यह विश्वास काल्पनिक न हो, हिंदी रचनाओं का यदि हम अध्ययन संवेदनशीलता के साथ करेंगे तो, तो इसकी महानता अनायास ही दृष्टि में आएगी…
मातृभाषा हमारी अलग हो सकती है (मेरी भी अलग है, हिंदी नहीं) पर राष्ट्र को एकीकृत करने में हिंदी से श्रेष्ठ और कोई नहीं. तब जब कि आने वाले कुछ दशकों में हम विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के कगार पर हैं, तो स्मरण रहे की हमारी बोल-चाल की भाषा उधार की न रहे. क्योंकि उधार ली गयी चीजें सर्वदा बोझ ही रहती हैं
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने लिखा था, जो आज भी प्रासंगिक है:-
“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।। ”
भावार्थ:
निज यानी अपनी भाषा से ही उन्नति सम्भव है, क्योंकि यही सारी उन्नतियों का मूलाधार है।
मातृभाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा का निवारण सम्भव नहीं है।
विभिन्न प्रकार की कलाएँ, असीमित शिक्षा तथा अनेक प्रकार का ज्ञान,
सभी देशों से जरूर लेने चाहिये, परन्तु उनका प्रचार मातृभाषा में ही करना चाहिये।
You must be logged in to post a comment.