51 thoughts on “Just sharing..”

      1. दोराहे,उहापोह,असमंजस—-रफ्तार में ब्रेक लगा ही देते है।बिल्कुल बात में दम है।वैसे अच्छा लगा दरवाजा खुला है।😀

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              1. हा हा
                ना वैरी ना मित्र हमारे,
                शब्दरहित संगीत हमारे,
                आ वैरी या मित्र बना ले,
                शब्दों से संगीत सजा दे,
                जीवन कोरा-कागज लिख,
                कुछ भी अपना दिल खोल के,
                मैं ठहरा जल मौन पड़ा हूँ,
                खिड़की,फाटक खोल के।
                मगर एक विनती है सबसे,
                असमंजस ना रखना मन से,
                हँसकर आना,हँसकर जाना,
                संसय मन मे कभी ना लाना,
                कहीं ठिठक ना जाना आकर,
                स्याही अपना घोल के,
                मैं ठहरा जल मौन पड़ा हूँ,
                खिड़की,फाटक खोल के।

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                1. कैसे करते हैं आप, शानदार जबरदस्त जिंदाबाद….
                  आदि शंकराचार्य कृत रचना याद आ गयी

                  मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम्
                  न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
                  न च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु:
                  चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥

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                  1. ये मैं नहीं करता,हो जाता है।कारण—-मैंने पहले भी कह चुका हूँ –आपके शब्दों के भाव में गहराई होती है जिसे पढ़ अनायास कुछ निकल जाता है।धन्यवाद सराहने के लिए।

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                    1. बड़प्पन है!
                      मेरा आग्रह है कि आप शंकराचार्य की इस रचना को पूर्णता में पढ़ें, अतुल्य है

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                    2. संस्कृत थोड़ा समझता हूँ।अगर इस रचना की हिंदी अनुवाद मिल जाये या आप बतादें तो बहुत मेहरबानी होगी।मैंने पढा अभी और समझने की उत्सुकता है।

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