समाचार चैनलों पर “राम मंदिर” का मुद्दा काफी गरमाया हुआ है…गरमाना भी चाहिए…चुनाव जो सामने है…
खैर छोड़िये, एक महान राम भक्त से सम्बंधित एक घटना पढ़ रहा था. अनायास ही आज कल के तथाकथित राम भक्तों पर तरस आ गयी … पंक्तियाँ पढ़िए और काव्य रस का आनंद लीजिए
एक बार गोस्वामी तुलसी दास जी से किसी ने पूछा- “जब मैं भगवान के नाम का जप करता हूँ तो मेरा मन उसमे नहीं लगता और ध्यान इधर उधर भटकता रहता है, क्या फिर भी मुझे उनके नाम लेने से मुझपर कुछ प्रभाव पड़ेगा?”
गोस्वामी जी कहते है :-
तुलसी मेरे राम को , रीझ भजो या खीज ।
भौम पड़ा जामे सभी , उल्टा सीधा बीज ॥
अर्थात भूमि में जब बीज बोये जाते है, तो यह नहीं देखा जाता कि बीज उल्टे पड़े है या सीधे, फिर भी कालांतर में फसल बन जाती है । इसी प्रकार, राम नाम सुमिरन कैसे भी किया जाये , उस का फल अवश्य ही मिला करता है !
This is really very beautiful. Has a deep meaning.
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Oh, yes I wanted to convey that deeper meaning enshrined in it.🙏
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Sorry, it does not work that. It is based on ritualistic blind faith. Perhaps, more explanation is needed.
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Well, what explanation do you need? Bhagvad Gita, an authoritative source of Sanatan Religion can also be termed as an instrument of blind faith or for that matter any other religious book.
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Thanks for your response to my comment. In the spirit of continuing a healthy dialogue, I would like to add that all the world religions and their scriptures are loaded with ritual advisories, and Hinduism is not an exception. However, in Hinduism, there is Sankhya School which seeks rationalistic and liberal examination before accepting or rejecting a concept. As the liberalism in Hinduism allows me, I have written several articles on the subject. These articles are titled: Seeking evolution in religions, Assembly of God in Hinduism, Man created a god or God created man, Nanak Dukhiya sab Sansaar and several more. Pl. check my websites: promodpuri.com and progressivehindudialogue.com
On a lighter note, I would say life itself is a ritual performance as directed by the divine Leela.
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Wonderful post 😊
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Thank You so much
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श्रीरामचंद्र जी कोई चर्चा का विषय नहीं है अपितु श्रीरामचंद्र जी आस्था का प्रतीक है।
कुछ लोग तो स्वयं अपने बाप पर बाप होने का प्रश्न चिन्ह लगा देते है। एैसे लोगों कि बात हि क्या करना।
श्रीरामचंद्र मेरे आराध्य है। किसी दो-चार लोगों के बहस करने से मेरी आस्था डीगने वाली नहीं है।
और अभय जी आपने गोस्वामी जी पंक्तियाँ लिख कर ह्रदय को आनंदित कर दिया। मैं एक बार फिर से उनकी पंक्तियाँ दोहरा देता हुं।
तुलसी मेरे राम को , रीझ भजो या खीज ।
भौम पड़ा जामे सभी , उल्टा सीधा बीज ॥
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मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी कि वे चर्चा का विषय बने, अपितु हर्ष होगा कि चर्चा के माध्यम से हम उन्हें जान पाए। पर समस्या यह हो चली है कि चर्चा चुनाव तक सीमित होता जा रहा है। उनपर लिखी गयी ग्रंथों को कोई पढ़ता नही, और पढ़ता भी है तो अपना मतलब निकलने हेतु।
ख़ैर, आपका बहुत बहुत धन्यवाद की अपने पढ़ा और मुझे हर्ष है कि आपको अच्छा लगा
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मेरे चर्चा का अर्थ है बहस/डीबेट
और शायद आप श्रीरामचंद्र की महीमा का बखान हो, शास्त्रार्थ कि बात कर रहे है
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जी बिल्कुल, चर्चा औपचारिक हो या अनौपचारिक, दोनो चलेगा!
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बिल्कुल सही कहा। प्रभु राम की चर्चा होती रहेंगी,होनी भी चाहिए।कुछ नाम के साथ लीन हो जाएंगे,कुछ कौतूहलवश सवाल करेंगे और कुछ सवाल करने के लिए ही चर्चा में शामिल होंगे।वे सब उन बीज की तरह हैं जिसका आपने उदाहरण दिया है।
ये प्रभु राम की अनुकम्पा है उनपर भी जो सवाल करते हैं।वरना इस कलियुग में सब को ये सुखद पल भी कहाँ मिलता है।
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बिल्कुल भाई जी! मुझे गोस्वामीजी की पंक्तियाँ अपने लिए भी बहुत सार्थक लगती हैं।
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मैं भी काफी प्रभावित हूँ और खुद को भाग्यशाली मानता हूँ कि उनके नाम का स्मरण प्रत्येक जम्हाई के साथ भी अनायास आ जाता है जिसमे ना दिल लगता है ना दिमाग और ना ही मन को कोई प्रयास करना पड़ता है।
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मैं भी खुद को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि रामचरित मानस पढ़ने को मिला।
कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास।
गाइ राम गुन गन बिमल भव तर बिनहिं प्रयास।।“
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वाह! ये हुई न बात। में आपके इतना तो नही पढ़ा, पर मेरे सीमित अध्ययन में मैं मंत्रमुग्ध हुए बिना नही रह सका!
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मैं भी ज्यादा नही पढ़ा मगर जितना भी जाना लगता है बहुत कम है।जहाँ प्रभु राम की चर्चा हो वहाँ कुछ और रास नहीं आता।
एक उदाहरण मैं नही जानता कितना उचित है मगर लिख रहा हूँ—-
एक स्त्री प्रभु राम के नाम का प्रताप नहीं जानती थी और ना ही कभी पूजा पाठ या मंदिर में गई थी। धर्म चर्चा से कोसो दूर एक दिन रास्ते मे जा रही थी पैर में कुछ गन्दगी लगी और मुख से राम राम राम निकल गया। उस स्त्री को भी मोक्ष मिल गया। ऐसा इस नाम की महिमा है।
जैसे गेहूं के बुआई के दरम्यान पैकेट में पड़े किसी अन्य पौधे का बीज बुआई के दरम्यान बिना मर्जी भी मिट्टी से जा मिला उग जाता है ठीक उसी प्रकार बिना सोचे समझे भी प्रभु राम का नाम जुबाँ पर आ जाये जीवन सफल हो जाता है।
आज तपस्या कठिन है।
“कलियुग केवल नाम आधारा, सुमिर सुमिर नर उतरही पारा” |
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वाह क्या उदाहरण है, उदाहरण को समझने के लिए आस्था होनी चाहिए
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बिल्कुल सही।
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Very nice one.
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Thanks mate! Good to see you back. I am sorry I could able to visit your blog since long
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Beautiful!
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Thank You!!!
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Beautiful story!
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Thank You!
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So true, faith has the power to shape reality!!
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What about if someone’s faith is his belief!😊
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Enlightening post👌
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Shukriya!
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भावनाओं से उपर उठिए तो सत्य का दर्शन हो,किसी भी मान्यता व भावना या अहंकार के प्रभैव सत्य असत्य निर्णय पक्षपात का द्योतक माना जाता है।
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सत्य वचन
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Beautiful and such deep thoughts shared Abhay
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Even I liked this to much hence I shared to you all!
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