ढोंग ..

ढोंग

ढोंग करना अच्छा लगता है
तब, जब कि हम
धनवान हों तो, निर्धन का
ज्ञानी हों तो, अज्ञानी का
विनम्र हो, फिर अभिमानी का
होश में हैं, बेहोशी का
मदिरा छुई नहीं, मदहोशी का
राज़ पता हो, फिर ख़ामोशी का
जगे हुए हों, फिर सोने का
हर्षित मन हो, फिर रोने का
हरपल संग हों, पर उन्हें खोने का
भक्त हो ,तो अभक्ति का
कोमल ह्रदय हो, तब सख्ती का
मुखर हो, फिर मौन अभिव्यक्ति का
ढोंग करना अच्छा लगता है
…..अभय……

24 thoughts on “ढोंग ..”

    1. Agyani to Gyani dikhne ka hamesha prayash karte hi rahte hain, par jab aap kuch jaante ho aur anjan banane ka prayash karte ho tab wo dhong ya swang rachna majedar hota hai
      Shukriya ki aapne padha aur saraha.

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  1. बेहतरीन रचना।👌👌👌
    तब और अच्छा लगता
    जब हमारे ढोंग को वे हकीकत समझते
    जगे थे हम वे सोए समझते।
    नशे में नहीं पर नशे में समझते,

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